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Thursday 22 May 2025 02:14:46 PM
पणजी। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश की प्राचीन चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा हैकि सैकड़ों साल पहले हम 300 से अधिक शल्य क्रियाएं, प्लास्टिक सर्जरी, अस्थि चिकित्सा और यहां तककि सिजेरियन डिलीवरी भी करते थे। उपराष्ट्रपति ने गोवा राजभवन में आयुर्वेदाचार्य चरक और शल्य चिकित्सा के जनक महर्षि सुश्रुत की प्रतिमाओं का अनावरण किया और कहाकि चरक कुषाण साम्राज्य में राजवैद्य थे और 'चरक संहिता' के रचयिता हैं, जो आयुर्वेद का मूल आधार है, वहीं सुश्रुत शल्य चिकित्सा के जनक माने जाते हैं। उन्होंने कहाकि प्राचीन ग्रंथों के साक्ष्य आधारित सत्यापन, डिजिटलीकरण, अनुवाद और उन्हें आधुनिक संदर्भों में उपयोगी बनाने हेतु अनुसंधान एवं नवाचार पर बल दिया है। उन्होंने कहाकि हम अपनी जड़ों को फिरसे खोज रहे हैं और उन्हीं में दृढ़ता से स्थापित हो रहे हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि वे वैकल्पिक चिकित्सा पर विशेष जोर देते हैं, क्योंकि भारत इसका जन्मस्थल है, यह आजभी व्यापक रूपसे प्रचलित है। उन्होंने कहाकि हमारे प्राचीन ग्रंथ केवल पुस्तकालयों की अलमारियों केलिए नहीं हैं, ये शाश्वत विचार हैं और इन्हें आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से पुनः जीवित करने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि वेदों, उपनिषदों, पुराणों और इतिहास में झांकने का समय आ गया है और हमें हमारे बच्चों को हमारी सभ्यतागत गहराई की जानकारी देनी चाहिए। उन्होंने कहाकि उन्हें उनके समय के शल्य चिकित्सा उपकरणों की चित्रकारी देखने का अवसर मिला, जिनकी अत्यंत दूरदर्शी सोच थी और सुश्रुत धन्वंतरि के शिष्य थे, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित आयुर्वेदाचार्य माने जाते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहाकि चरक और सुश्रुत का जीवन आज की पीढ़ी केलिए प्रेरणा का स्रोत बनना चाहिए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि कुछ वर्गों में यह प्रवृत्ति देखी जाती हैकि भारतीय या प्राचीन कुछभी पिछड़ा है, यह मानसिकता अब आधुनिक भारत में स्वीकार्य नहीं है, दुनिया हमारी प्राचीन प्रणाली की महत्ता को पहचान रही है, समय आ गया हैकि हमभी इसे पहचानें। उन्होंने कहाकि यह धारणाकि केवल पश्चिम ही प्रगतिशील है, अब चलन से बाहर होनी चाहिए, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी माना हैकि भारत आज संभावनाओं का केंद्र है। उन्होंने कहाकि पश्चिम चकित रह जाएगा, यदि हम अपने प्राचीन ज्ञान को और गहराई से समझें, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि, जीवक, जो बुद्ध के निजी चिकित्सक भी थे, ऐसे अनेक आयुर्वेदाचार्य हैं, गणित और खगोल विज्ञान में हमारे पास आर्यभट्ट, बौधायन, वराहमिहिर हैं, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय वराहमिहिर उज्जैन वेधशाला में कार्यरत थे। उन्होंने कहाकि सुश्रुत के लेखन केवल शारीरिक रचना को नहीं दर्शाते, बल्कि वैज्ञानिक सोच, शुद्धता, प्रशिक्षण, स्वच्छता और रोगी देखभाल के उच्च मानकों को भी रेखांकित करते हैं।