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'सिया' सामाजिक न्याय प्रणाली का प्रतिबिंब

निर्देशक मनीष मुंद्रा ने फिल्म 'सिया' से की निर्देशन की शुरुआत

एक अखिल भारतीय फिल्म निर्माता बनने कीभी इच्छा व्यक्त की

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 24 November 2022 12:43:10 PM

movie siya

पणजी। 'सिया' एक असरदार फिल्म है, जो सामाजिक न्याय प्रणाली को प्रतिबिंबित करती है। ये उन लोगों के मानवीय पक्ष को चित्रित करने का प्रयास है, जिनके साथ अन्याय हुआ है। फिल्म 'सिया' के निर्देशक मनीष मूंदड़ा ने सिया की कहानी बताते हुए कहाकि इंसाफ केलिए एक ख़राब पितृसत्तात्मक व्यवस्था से लड़ने वाली एक लड़की की दिल दहला देने वाली कहानी है। आंखें देखी, मसान और न्यूटन जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्माण करने वाले मनीष मूंदड़ा पहलीबार 'सिया' केजरिए बतौर निर्देशक पदार्पण कर रहे हैं। गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव से इतर पीआईबी के टेबल टॉक्स सत्रमें मीडिया और प्रतिनिधियों से बातचीत करते हुए मनीष मूंदड़ा ने कहाकि ये फिल्म उस दर्द को समझने की एक ईमानदार कोशिश है, जिससे पीड़ितों को तब गुजरना पड़ता है, जब वे न्याय की तलाश में पूरी प्रक्रिया से दो-चार होते हैं। उन्होंने कहाकि हम सभीको भी पीड़ितों के उस दर्द और पीड़ा को महसूस करना चाहिए, ताकि बदले में हमें जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद मिल सके।
फिल्म सिया आत्मा को झकझोर देने वाली फिल्म है, जो दुष्कर्म पीड़िताओं की दहशत और दर्द को बयां करती है। यह फिल्‍म वास्तविक जीवन की घटना से प्रेरित है। उत्तर भारत की एक ग्रामीण युवती यौन उत्पीड़न केबाद इंसाफ की लड़ाई लड़ने का फैसला करती है। वह न्याय की खातिर लड़ने का साहस जुटाती है और शक्तिशाली लोगों के हाथों की कठपुतली बन चुकी दोषपूर्ण न्याय प्रणाली के खिलाफ मुहिम शुरू करती है। जिस तरह सिया वास्तविक जीवन की घटना पर आधारित है, ऐसेमें फिल्म निर्माण केलिए विषय की पसंद केबारे में मनीष मूंदड़ा ने कहाकि उन्हें फिल्में बनाना बहुत अच्‍छा लगता है, वे कमर्शियल ब्लॉकबस्टर नहीं बनाना चाहते, वे उन विषयों को चुनते हैं, जो उनके दिल और आत्मा को छूते हैं, अनंतकाल तक टिके रहने केलिए कहानी को दर्शकों की आत्मा को झकझोरना चाहिए। मनीष मूंदड़ा ने कहाकि हमारे समाज में जहां पीड़ितों को मुश्किल हालात में धकेल दिया जाता है, कानूनी लड़ाई लड़ने केबारे में मौजूद सबसे बड़ी दुविधा के कारण लोगों में पहला कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती, यदि वे किसी तरह कदम उठाने का फैसला करभी लेते हैं तो उन्‍हें अच्‍छी तरह से पता होता हैकि यह अकल्पनीय रूपसे पीड़ादायी होगा, जिसके लिए बहुत साहस की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहाकि यह हमारी सामाजिक न्याय प्रणाली को दर्शाता है, ऐसे मामलों के संबंध में हमारी चिंता ज्‍यादा समय तक नहीं रहती, हम उन्‍हें फौरन भुला देते हैं और पीड़ितों को किसी तरह की तसल्‍ली देने की बजाए आगे बढ़ जाते हैं।
नकारात्मकता के स्‍थान पर समाज में मौजूद विभिन्न सकारात्मक पहलुओं को दर्शाने के बारेमें मनीष मूंदड़ा ने कहाकि 'सिया' जैसी फिल्म के माध्‍यम से समाज की सच्चाई को प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण है। उन्‍होंने कहाकि यह केवल उदासीभर नहीं है, हमारी फिल्म भावपूर्ण है, यह सच्चाई के बारेमें है और सच्चाई में दर्द, खुशी, आशा और निराशा है। उन्होंने कहाकि प्रशंसा और आलोचना हमेशा होती है, लेकिन सकारात्मकता को प्रतिबिंबित करना और फिल्मों में समाज की सच्चाई दिखाना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहाकि यह फिल्म बनाने की मेरी शैली है, यथार्थवादी फिल्में हमेशा लंबी अवधि तक रहती है और यह लोगों के मानस को झकझोर देगी। पूरे भारत की फिल्में बनाने के अपने जुनून को साझा करते हुए मनीष मूंदड़ा ने एक अखिल भारतीय फिल्म निर्माता बनने की अपनी इच्छा व्यक्त की और कहाकि जब कोई मेरी सभी फिल्मों को समय केसाथ देखता है तो उसे सही मायनों में भारत का पता चलता है। फिल्म निर्माता के रूपमें अपने 8 साल के सफर और अब निर्देशक के रूपमें अपनी पहली फिल्म केबारे में बताते हुए मनीष मूंदड़ा ने कहाकि एक इंसान के रूपमें उन्होंने हमेशा विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है। उन्होंने कहाकि निर्देशन पक्ष की अपनी चुनौतियां और दबाव है, जो मुझे फिल्म निर्माण में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
फिल्म सिया 6 अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय फिक्शन फीचर डेब्यू के संग्रह के साथ एक निर्देशक श्रेणी की सर्वश्रेष्ठ डेब्यू फीचर फिल्म के तहत प्रतिस्पर्धा कर रही है, जो इस बात का उदाहरण हैकि अगली पीढ़ी के फिल्म निर्माता ऑनस्क्रीन क्या देख रहे हैं। इफ्फी 53 में भारतीय पैनोरमा के फीचर फिल्म वर्ग केतहत सिया की स्क्रीनिंग की गई। अभिनेत्री पूजा पांडे और विनीत कुमार सिंह ने फिल्म में मुख्य किरदार सीता और महेंद्र की भूमिका निभाई है। यह फिल्म जीवन की एक वास्तविक घटना से प्रेरित एक नाटक है, जहां उत्तर भारत के एक गांव की एक युवा लड़की, एक शक्तिशाली विधानसभा सदस्य द्वारा यौन उत्पीड़न केबाद न्याय केलिए लड़ने का फैसला करती है, जिससे देशके सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत होती है। निर्देशक मनीष मूंदड़ा राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता हैं और आंखों देखी (2014), मसान (2015), धनक (2016), न्यूटन (2017), राम प्रसाद की तेरहवीं (2021) और सिया (2022) जैसी फिल्मों के निर्देशक हैं। निर्माता दृश्यम फिल्म्स मनीष मूंदड़ा की फिल्म प्रोडक्शन स्टूडियो, जिसने न्यूटन (2017) जैसी पुरस्कार विजेता फिल्मों का निर्माण किया है, यह फिल्म 2018 में अकादमी पुरस्कार केलिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूपमें चुनी गई थी।

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