स्वतंत्र आवाज़
word map

क्या महिलाएं घात लगाए बैठे खतरों से सुरक्षित हैं?

कन्नड़ फिल्म 'नानू कुसुमा' के जरिए पूछे गए कुछ विचारोत्तेजक प्रश्न

आईसीएफटी-यूनेस्को गांधी पदक पाने के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 23 November 2022 02:21:27 PM

kannada film nanu kusuma

पणजी। जब हम किसी समाज में महिलाओं को सशक्त बताते हैं तो क्या वास्तव में इसका मतलब यह हैकि महिलाएं घात लगाकर बैठे सभी खतरों से सुरक्षित हैं? क्या इसे सही मायने में व्‍यावहारिक तौरपर लागू किया गया है। क्या हमने महात्मा गांधीजी के रामराज्य का सपना पूरा कर लिया है, जहां बचाव और सुरक्षा सम्मिलित हैं? कन्नड़ फिल्म 'नानू कुसुमा' (मैं कुसुमा हूं) के जरिए पूछे गए ये कुछ विचारोत्तेजक प्रश्न हैं। फिल्म 'नानू कुसुमा' के निदेशक कृष्णेगौड़ा ने 53वें आईएफएफआई से इतर पीआईबी के अनौपचारिक बातचीत सत्र में मीडिया और फिल्‍म समारोह के प्रतिनिधियों को बतायाकि 'नानू कुसुमा' हमारे पुरुष प्रधान समाज की वास्तविकता को दर्शाती है, जहां कठोर कानून होने के बावजूद महिलाओं केसाथ अन्याय होता है।
फिल्म नानू कुसुमा कन्नड़ लेखक डॉ बेसगरहल्ली रमन्ना की एक लघुकथा पर आधारित है। उन्होंने वास्तविक जीवन की एक घटना से प्रेरणा लेकर किताब लिखी थी। निर्देशक कृष्णेगौड़ा ने कहाकि महिला सशक्तिकरण और महिला सुरक्षा इस फिल्म का मूल तत्व है और उनकी रूचि उन विषयों पर फिल्में बनाने में है, जो समाज को एक संदेश दे सकें। फिल्म 'नानू कुसुमा' कुसुमा की कहानी है, जो एक ऐसे प्यार करनेवाले और ध्यान रखनेवाले पिता की बेटी है, जो अपनी बेटी को लेकर बहुत ऊंचे सपने देखता है, लेकिन नियति को कुछ औरही मंजूर था और एक दुर्घटना में उसके पिता की मौत हो जाती है और उसके जीवन में उथल-पुथल मच जाती है। कुसुमा, जो डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन वित्तीय संकट के कारण उसे मेडिकल स्कूल से बाहर होना पड़ता है।
कुसुमा को अनुकंपा पर अपने पिता की जगह सरकारी नौकरी मिल जाती है, लेकिन उसके जीवन में एक नाटकीय मोड़ आता है, जब उसका यौन उत्पीड़न होता है। कुसुमा का किरदार निभाना कितना मुश्किल काम था, इसकी चर्चा करते हुए अभिनेत्री ग्रीष्मा श्रीधर ने कहाकि लगातार एक विशेष मन:स्थिति में रहना बेहद कष्‍टदायक और थकाऊ रहा। उन्होंने कहाकि यह उन महिलाओं की कहानी है, जिन्हें बिना कुछ गलत किए ही लगातार शर्मिंदा महसूस कराया जाता है और जो खुदको तरह-तरह की समस्याओं से घिरी हुई पाती हैं। उन्होंने कहाकि यह कहना दिल तोड़ने जैसा हैकि इस विशेष विषय पर कंटेंट की कोई कमी नहीं है, जिसने इसे पेश करना और भी अधिक कठिन बना दिया। यह फिल्म भारतीय पैनोरमा के फीचर फिल्म अनुभाग केतहत दिखाई गई।
फिल्म नानू कुसुमा उन अन्य 8 फिल्मों केसाथ आईसीएफटी-यूनेस्को गांधी पदक पाने केलिए भी प्रतिस्पर्धा कर रही है, जो आईएफएफआई की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय फिक्शन फीचर फिल्मों का वार्षिक पदक है, जो यूनेस्को के आदर्शों को दर्शाती हैं। फिल्म 'नानू कुसुमा' के निर्देशक एवं निर्माता कृष्णेगौड़ा हैं, पटकथा कृष्णेगौड़ा एलदास और डॉ बेसगरहल्ली रमन्नानवरु की है। छायाकार अर्जुन राजा हैं, संपादक शिवकुमार स्वामी हैं, कलाकार में ग्रीष्‍मा श्रीधर, सनातनी, कृष्णेगौड़ा, कावेरी श्रीधर, सौम्या भागवत, विजय प्रमुख हैं। गौरतलब हैकि कृष्णेगौड़ा कन्नड़ फिल्म जगत में निर्माता, निर्देशक और अभिनेता भी हैं। तीन दशक से उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय किया है और 15 से अधिक फिल्मों का निर्माण किया है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]