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मनु से मिला है इन्हें राजयोग !

हृदयनारायण दीक्षित

मनु, यह नाम दुनिया के लिए दर्शन, ज्ञान, नीति, उपदेश, शासन-प्रशासन, जीवन-शैली, यश और अपयश का भेद बताता है और योग्य आदमी का श्रेष्ठतम मार्ग-दर्शन करता है वहीं यह नाम उन लोगों के लिए नफरत और जातिगत दूषित और प्रतिक्रियावादी है जो समाजोचित व्यवस्था को अपने कपट, स्वार्थ और विद्वेष मन एवं स्थिति के अनुसार परिभाषित करके मनु व्यवस्था को कलंकित करने में लगे हुए हैं। ये वो हैं जिन्हें मनु व्यवस्था के कारण ही राज-समाज में आज शानदार अवसर मिलते जा रहे हैं। यदि मनु-स्मृति या मनु व्यवस्था न रही होती तो आज भी पीढ़ियों तक वही हालात होते जिनको लेकर मनु पर झूठा दोषारोपण किया जाता है। इन जहरीले जातिवादियों को मनु का आभारी होना चाहिए जो आज राजयोग भोग रहे हैं और एक नीचतापूर्ण भ्रामक शैली में जन-मानस को मनु के खिलाफ भड़काने की अनाधिकृत चेष्टा कर रहे हैं। इनमें बहुत से चलते तो हैं मनु के अनुसार मगर समाज व्यवस्था को अपने पक्ष में करने के लिए मनु की झूठी आलोचना करने से बाज नही आते हैं।
यश प्रतिष्ठा का देश-काल होता है। कोई अपने सीमित क्षेत्र या पूरे देश में चर्चित होता है तो कोई समूचे विश्व में। कोई अपने जीवन के थोड़े हिस्से में प्रतिष्ठित होता हे, उसका निधन हो जाता है, लोग उसे भूल जाते हैं। पुराने राजा और आधुनिक राजनीतिज्ञ ऐसे ही हैं लेकिन भारतीय इतिहास के महानायकों का यश देश-काल का अतिक्रमण करता है। मनु प्राचीन भारतीय इतिहास के निराले महानायक हैं, वे ऋग्वेद में हैं, अथर्ववेद में हैं, ब्राह्मणों, आरण्यकों में हैं, पुराणों में हैं, रामायण में हैं, महाभारत में हैं। वे जर्मनी में अध्ययन का विषय बने, वे विश्व के प्रथम विधि निर्माता कहे जाते हैं। चम्पा के एक अभिलेख में बहुत से मनु श्लोक मिलते हैं। बरमा का धम्मथट् मनु आधारित है। बालिद्वीप का कानून मनु आधारित था। भारतीय राजनीति का एक समूह उन्हें जाति व्यवस्था का जन्मदाता बताता है, गाली बकता है, समाज के एक हिस्से को ‘मनुवादी’ कहता है। उनकी तरफ से कोई प्रतिवाद नहीं करता। वे एक जीवंत महानायक की तरह यशस्वी हैं, निन्दा के पात्र भी हैं। भारतीय संस्कृति के विकास में मनु की एक खास भूमिका है लेकिन पहले कुछ सवाल उठाते हैं मसलन मनु कब हुए? क्या वे हमारी आपकी तरह एक प्राणी थे? मनु कौन थे? क्या मनुस्मृति नाम की पुस्तक उन्होंने ही लिखी थी? क्या वे वर्ण/जाति व्यवस्था के जन्मदाता थे? वगैरह-वगैरह। वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था नहीं थी। मनु ऋग्वेद के दिलचस्प पात्र हैं। ऋषि अपने समकालीन ऋषियों की तुलना में मनु को और भी प्राचीन बताते हैं। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल (सूक्त 80 मंत्र 16) में ऋषि इन्द्र की स्तुति करते हुए कहते हैं 'पिता मनु, ऋषि अथर्वा और दध्यंग ने पहले भी इन्द्रदेव की स्तुतियां गाईं थीं।' मनु ऋग्वैदिक ऋषियों के पिता हैं।
ऋग्वेद में कृषि तंत्र की चर्चा है। ऋषियों के अनुसार अश्विनी देव हल चलाते हैं। ऋषि बताते हैं अश्विनी देवों ने मनु की समृद्धि के लिए सर्वप्रथम हल चलाया। (8.22.6) यहां मनु मनुष्यता के पर्यायवाची हैं। भारत के देवता अवकाश भोगी या आराम तलब नहीं थे। मनुष्य के सत्कर्म यज्ञ हैं। अग्नि में मंत्रोच्चार सहित समिधा डालना भी यज्ञ है। ऐंगिल ने अग्नि की खोज को सभ्यता विकास का बड़ा काम बताया है। यज्ञ के लिए अग्नि खोजने का काम भी मनु ने किया। (7.2.3) अग्नि स्तुति में इससे भी बड़ी बात कही गयी 'हे प्रकाशरूपा अग्नि, मनु ने लोक कल्याण हितार्थ सदा के लिए आपकी स्थापना की।' (1.36.19) मनु ने ही अग्नि की खोज की थी। मनु ने ही दिव्य औषधियों की भी खोज की। (2.33.13) तैतिरीय संहिता में मनु के कथनों को दिव्य औषधि बताया गया। 'ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार मनु ने अपनी सम्पत्ति पुत्रों में बांटी। ‘निरूक्त’ (800-500 ईपू) में भी मनु कथनों का उल्लेख है। गौतम, वशिष्ठ और आपस्तम्ब ने मनु का उल्लेख किया है। सत्यकेतु विद्यालंकार ने ‘प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग’ (पृष्ठ 148) में बताया 'पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार पहला आर्य राजा वैवस्वत मनु था। इसके पहले अराजक दशा थी।' मनु के सबसे बड़े पुत्र का नाम इक्ष्वाकु था वह मध्य देश का राजा बना, राजधानी अयोध्या थी। इसी वंश में आगे दिलीप, रघु, दशरथ और राम हुए।' मनुस्मृति ऋग्वैदिक मनु/स्वायम्भुव मनु/वैवस्वत मनु की रचना नहीं है। मनुस्मृति की भाषा और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता आदि विषय मनु के लिखे नहीं हो सकते। मनुस्मृति में संशोधन हुए। अन्य ग्रंथों की तरह इसमें भी बहुत कुछ जोड़ा और घटाया गया।
डॉ रामबिलास शर्मा ने ‘पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद’ (पृष्ठ 230) में याद दिलाया है 'यूनानी परम्परा के अनुसार क्रीट में क्रोसोस नगर के प्रथम राजा ‘मिनोस’ थे। उन्हीं के नाम पर क्रीट की प्राचीन सभ्यता को ‘मिनोअन सभ्यता’ कहा जाता है।' इसी तरह मिस्र के प्रथम राजा मेनेस थे। क्रीट में मिनोस। भारत में मनु। डॉ शर्मा कहते हैं 'इन नामों में ध्वनित समानता आकस्मिक नहीं है। तीनों देशों में मनु, मेनेस, मिनोस सभ्यता के आदि प्रतिष्ठाता है। भारत में ही अनेक मनु हुए हैं, प्रवासी आर्य शासक अपने साथ यह नाम बाहर ले गये हों, यह बिल्कुल सम्भव है।' (वही पृष्ठ 232) सम्भव यह भी है कि मनु मेनेस, मिनोस तीनों एक ही हों। भारत रत्न डॉ पांडुरंग वामनकांण़े ने “धर्म शास्त्र का इतिहास (खण्ड 1 पृष्ठ 42) में बताया 'भारत वर्ष में मनुस्मृति का प्रथम मुद्रण सन् 1813 ई0 में हुआ। इसका व्याकरण पाणिनि सम्मत है।' जाहिर है कि यह ग्रंथ पाणिनी के बहुत बाद का है, 'मनुस्मृति की प्राचीनतम टीका मेधा तिथि (900 ई) की है। वेदांत सूत्र के भाष्य में शंकराचार्य ने (भी) मनु को उद्धृत किया है। कुमारिल के ‘तंत्रवार्तिक’ में मनुस्मृति को सभी स्मृतियों में प्राचीनतम बताया गया है। प्राचीन संस्कृत नाटक मृच्छकटिक में भी मनु का उल्लेख है। वलभीराज धारसेन के अभिलेख के अनुसार 570 ईस्वी में मनुस्मृति थी।'
ऋग्वेद में जलप्रलय की कथा नहीं है लेकिन अथर्ववेद में इसके संकेत हैं। ऋग्वेद में सरस्वती जल से भरी पूरी हैं। अथर्ववेद में वे सूखी नदी हैं। जल प्रलय ऋग्वेद के बाद लेकिन अथर्वेद के पहले की घटना है। अथर्वेद के विराट सूक्त (8.13.10) में विवस्वान पुत्र मनु को विराट का पुत्ररूप बताया गया। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक दिन प्रातः मनु हाथ धो रहे थे, उनके हाथ में मछली आ गयी। उसने कहा आप मुझे संरक्षण दें, मैं आपको संरक्षण दूंगी। मनु ने पूछा ‘सो कैसे?’ उसने कहा मैं छोटी हूं, मुझे घड़े में पालो, बड़ी होने पर समुद्र में ड़ाल देना। भविष्य मे प्रलय आएगी, तुम नाव बनाना। वैसा ही हुआ। तूफान आने पर वे नाव में बैठे। मछली अब बड़ा मत्स्य थी, उसने सींग से नाव खींची। वे उत्तरी पहाड़ पर गये, उतरे। प्रलय में सब कुछ नष्ट हो गया। मनु बच गये। महाभारत वन पर्व में मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को मनु की कथा सुनाई 'मनु नदी तट पर थे। यहां भी छोटी मछली से लेकर आगे की कथा ज्यों की त्यों है। थोड़ा सा फर्क है। मछली ने कहा कि नाव में सप्त ऋषियों को बैठाओ, सृष्टि में पाए जाने वाले सारे बीज रखो। द्युलोक आकाश लोक जलमय था। मत्स्य सींग से नाव को खींच कर हिमालय की चोटी तक ले गया। (संक्षिप्त महाभारत, खण्ड 1 गीता प्रेस, पृष्ठ 300)
महाभारत के शांतिपर्व में मनु और वृहस्पति की बातचीत है। महाभारत के अनुसार महर्षि बृहस्पति ने मनु से पूछा, 'जो इस जगत का कारण (तत्वज्ञान) और वैदिक कर्मो का अधिष्ठान है, मंत्रों द्वारा जिस का ज्ञान नहीं हो, वही तत्व बताइए।' मनु ने बृहस्पति से कहा, 'प्रिय विषय सुख है, अप्रिय दुख है। इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के निवारण के लिए कर्म है।' यहां कर्म पर जोर है। आगे कहते है 'मन और कर्म से संसार की सृष्टि हुई है। फलइच्छा के त्याग से अक्षय की प्राप्ति होती है।' फिर सृष्टि रचना के बारे में कहते है 'अक्षर से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी और पृथ्वी से पार्थिव जगत की उत्पत्ति हुई है।' मनु काल्पनिक नहीं हैं। वे भारत के जन-जन की स्मृति में सुरक्षित आदि मानव भी हैं। मनुष्य मनु स्य हैं। यानी मनुष्य ‘मनु के’ हैं। संस्कृत में स्य प्रत्यय का अर्थ का, की, के होता है। इसी तरह मनुज का मतलब है मनु की संतान।
मनु को जाति व्यवस्था का संस्थापक कहा जाता है और जाति व्यवस्था को मनुवाद। डॉ बी0आर0 अम्बेडकर ने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में ‘भारत में जातियां’ शीर्षक पर्चा (9 मई 1916) पढ़ा। उन्होंने कहा, 'मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं कि जाति धर्म का नियम मनु प्रदत्त नहीं है। जाति मनु के पहले से ही थी।' डॉ अम्बेडकर सम्भवतः मनुस्मृति के कथित रचनाकार/मनु का उल्लेख कर रहे थे। बेशक जातियां मनुस्मृति के पहले भी थीं लेकिन ऋग्वैदिक काल में जाति वर्ण का नाम निशान भी नहीं था। डॉ अम्बेडकर ने भी ‘दि अनटचेबुल्स’ में लिखा है कि वैदिक काल में जातियां नहीं थी। माक्र्सवादी चिंतक डॉ रामबिलास शर्मा ने ‘इतिहास दर्शन’ (पृष्ठ 25) में बताया 'कि ऋग्वेद में मनु के नाम और कार्यो का उल्लेख बार-बार हुआ है परन्तु जलप्रलय का उल्लेख या उसकी ओर संकेत एक बार भी नहीं हुआ। यह तथ्य ऋग्वेद के मनु को पुराण कथाओं के मनु से अलग करता है।' यानी मनु भारत, भारतीय इतिहास, पुराण और संस्कृति में एक अविच्छिन्न परम्परा के वाहक हैं। वे एक आदरणीय संस्था भी थे।

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