कैट पीठों के विवाद पर जस्टिस रेड्डी ने दिया स्पष्टीकरण
मीडिया में प्रकाशित होने से विवाद की स्थिति बन गईस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 16 May 2020 06:01:45 PM
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में कैट पीठों के संबंध में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि 8 मई 2020 के डीओ के आधार पर प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक खबर प्रकाशित हुई थी, जिसमें बताया गया है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह को संबोधित किया। ऐसा समझा जाता है कि यह विषय केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की पीठों की स्थापना के संबंध में है। डीओ पत्र इसके लेखक एवं जिसे यह संबोधित किया गया है के बीच पत्र व्यवहार होता है और विशेष रूपसे जब उच्च गणमान्य व्यक्ति इससे जुड़े हों तो इसे सार्वजनिक नहीं किया जाता।
जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी ने स्पष्टीकरण में कहा है कि चूंकि खबर केवल पीठों की स्थापना के बारे में थी और यह केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के लिए प्रासंगिकता का मामला है, इसलिए मैंने इस विषय के बारे में जानने के लिए माननीय मंत्रीजी से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने न तो हार्डकापी के रूपमें और न ही ई-मेल के जरिये पत्र प्राप्त किया। जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी का कहना है कि मीडिया में जो प्रकाशित हुआ है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्य न्यायाधीश ने हस्तांतरित किए जाने पर केंद्रशासित प्रदेशों के सेवा मामलों को हैंडल किए जाने में न्यायाधिकरण की क्षमता को लेकर चिंता जाहिर की। एक तरफ समस्त न्यायाधिकरण में विचाराधीनता एवं दूसरी तरफ उच्च न्यायालय में सेवा मामलों की विचाराधीनता के संबंध में तुलनात्मक वक्तव्य भी प्रस्तुत किए गए। जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी का कहना है कि ‘बार एंड बेंच’ नामक वेबसाइट पर खबर के संलग्नक में कई वक्तव्यों की कोई आवश्यकता नहीं थी और किसी भी स्थिति में उच्च न्यायालय के लिए चिंता के विषय नहीं थे।
उन्होंने स्पष्टीकरण में उल्लेख किया कि राज्य के पुनर्गठन के पहले श्रीनगर एवं जम्मू में सर्किट बेंचों में मामलों की विचाराधीनता केवल 140 थी, सर्किट बेंचों का आयोजन आवधिक रूपसे होता था। उनका कहना है कि पिछले वर्ष मैंने श्रीनगर एवं जम्मू में एक प्रशासनिक सदस्य के साथ एक सुनवाई की थी, यह सुनवाई उपायुक्त के कार्यालय के एक कोने में 8X10 के आकार के एक कमरे में की गई थी, यहां तककि एक सेकेंड क्लास ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट भी ऐसे परिसरों में कार्य नहीं कर सकता था। जम्मू में स्थिति थोड़ी बेहतर थी। राज्य सरकार से स्थान के लिए कई बार आग्रह किए गए, जिसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला, इसके बावजूद ट्रिब्यूनल अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटा। जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी का कहना है कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद स्थान के आग्रह पर विचार किया गया और स्थानों की पेशकश भी की गई। कोई भी ठोस कदम उठाए जाने से पहले कोविड-19 लॉकडाउन शुरू हो गया। न्यायाधिकरण की पीठों से सीधे तौरपर पूर्ण कामकाज की उम्मीद नहीं की जा सकती, खासकर जब मामलों को उच्च न्यायालय से हस्तांतरित किया जाना अभी शेष हो।
जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी का कहना है कि न्यायाधिकरण की देशभर में 33 पीठें हैं और प्रत्येक पीठ के समक्ष विचाराधीनता तथा विभिन्न स्थानों पर पीठों की स्थापना की आवश्यकता को देखते हुए समय-समय पर समायोजन किए जा रहे हैं। जैसे ही स्थान उपलब्ध हो जाता है और मामले उच्च न्यायालय से हस्तांतरित हो जाते हैं, स्थिति की देखभाल करने की जिम्मेदारी न्यायाधिकरण की हो जाएगी। हालांकि सदस्यों की नियुक्ति में विलंब सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका की विचाराधीनता के कारण हुआ था, न्यायाधिकरण ने पिछले कुछ महीनों के दौरान 104 प्रतिशत की निपटान दर दर्ज की। अगर 31,000 सेवा मामले उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित थे और वादी कई वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे थे तो यह न्यायाधिकरण की तरफ से किसी गलती के कारण नहीं है। विभिन्न स्थानों पर पीठों की स्थापना करना और मामलों का निपटान सुनिश्चित करना न्यायाधिकरण की जिम्मेदारी है और उच्च न्यायालय को इतना चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है, जहां भी आवश्यक हो, उच्च न्यायालय का दिशानिर्देश और सहायता निश्चित रूप से ली जाएगी।