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एमएसएमई की परिभाषा से परेशानी-चैम्बर

'सरकार कारोबार के आधार एमएसएमई की परिभाषा बदले'

प्रस्तावित परिभाषा से ही लाभार्थियों को आर्थिक लाभ संभव

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 24 December 2019 03:40:44 PM

dr. dk aggarwal, president of phd chamber of commerce and industry

नई दिल्ली। पीएचडी चैंबर ने भारत सरकार से कारोबार के आधार पर एमएसएमई के वर्गीकरण की परिभाषा में संशोधन करने का आग्रह किया है। चैम्बर का कहना है कि ऐसा करना एमएसएमई क्षेत्र और पूरे देश के विकास हित में है। तर्क है कि प्रस्तावित परिभाषा एक सूक्ष्म उद्यम को एक इकाई के रूपमें परिभाषित करती है, जहां वार्षिक कारोबार पांच करोड़ रुपये से अधिक नहीं होता है। एक इकाई के रूपमें एक छोटा उद्यम जहां वार्षिक कारोबार पांच करोड़ रुपये से अधिक है, लेकिन 75 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। एक इकाई के रूपमें एक मध्यम उद्यम जहां वार्षिक कारोबार 75 करोड़ रुपये से अधिक है, लेकिन 250 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष डॉ डीके अग्रवाल ने कहा कि रोज़गार पैदा करने, ग़रीबी को कम करने और ग्रामीण से शहरी प्रवास को धीमा करने के राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने में एमएसएमई क्षेत्र महत्वपूर्ण है, इसलिए प्रस्तावित परिभाषा से आर्थिक लाभ को लक्षित लाभार्थियों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।
डॉ डीके अग्रवाल का कहना है कि एमएसएमई क्षेत्र आर्थिक विकास के स्तंभ हैं, क्योंकि वे सकल मूल्य में लगभग 32 प्रतिशत योगदान करते हैं, भारत के कुल निर्यात में 48 प्रतिशत से अधिक के योगदान के साथ लगभग 111 मिलियन लोग यानी विनिर्माण में 36.2 मिलियन, व्यापार में 38.71 मिलियन और अन्य सेवाओं में 36.28 मिलियन कार्यरत हैं। उनका कहना है कि वर्तमान में माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज की परिभाषा इस बात पर आधारित है कि एमएसएमई क्षेत्र माल का उत्पादन करते हैं या सेवाएं प्रदान करते हैं। एमएसएमई क्षेत्र के निर्माण के लिए संयंत्र और मशीनरी में निवेश और सेवा क्षेत्र एमएसएमई क्षेत्र के लिए उपकरण में निवेश के आधार पर यह परिभाषा वर्ष 2006 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम के माध्यम से पेश की गई थी।
डीके अग्रवाल का कहना है कि एमएसएमई क्षेत्र को परिभाषित करने के लिए नए मानदंड आगे बढ़ने से व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा मिल सकता है, इससे एमएसएमई क्षेत्र के साथ पहचान और व्यवहार की प्रक्रिया सरल और तेज हो जाएगी, इसके अलावा प्रस्तावित मानदंड उन मानदंडों के अनुरूप है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू और समझे जाते हैं। उन्होंने कहा कि संसद के आगामी सत्र में किए जाने वाले संशोधन का प्रस्ताव करते हैं, क्योंकि यह 90 प्रतिशत से अधिक पंजीकृत कंपनियों को हमारे विनिर्माण जीडीपी के विकास को बढ़ावा देने और साथ ही रोज़गार प्रदान करने और धीरे-धीरे एक मोड़ प्रदान करने में सक्षम करेगा। डीके अग्रवाल ने कहा कि भारत एक बार फिर से 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के विकास पथ पर वापस आ गया है।

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