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समलैंगिकता पर राष्ट्रपति वीटो का प्रयोग करें

नेशनल पैंथर्स पार्टी की अपील

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समलैंगिकता के खिलाफ प्रदर्शन-performance against homosexuality

नई दिल्ली। समलैंगिकता को जायज़ ठहराने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में पैंथर्स पार्टी ने संसद और जंतर मंतर पर जोरदार धरना-प्रदर्शन करके राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से गुजारिश की है कि वे दिल्ली उच्च न्यायालय के दो जजों की खंडपीठ के दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन-संबंधों को कानूनी संरक्षण को निरस्त करने के लिए अपने वीटो का प्रयोग करें। नेशनल पैंथर्स पार्टी के चेयरमैन प्रो भीमसिंह ने पैंथर्स पार्टी की तमाम शाखाओं को निर्देश जारी किये हैं कि वे इस भयावह, अपमानजनक और अस्वीकार्य आदेश का जमकर विरोध करें, क्योंकि इससे कुछ विदेशी मुल्कों को भारत की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिकता को नष्ट करने का ही मौका मिलेगा।
प्रो भीम सिंह ने राष्ट्रपति से गुजारिश की कि वे हस्तक्षेप करें और दिल्ली उच्च न्यायालय के दो जजों की खंडपीठ के धारा-377 को हटाने के आदेश के विरुद्ध आदेश जारी कर भारत को एंग्लो-अमेरिकन देशों के सांस्कृतिक हमलें से बचाएं। यह याचिका उन्होंने राष्ट्रपति भवन में पेश की। याचिका पेश करने वालों में दिल्ली प्रदेश और हरियाणा की पैंथर्स समितियों के नेता बीएस- साजन- राजीव खोसला, अफजल खान, सुनीता चौधरी और रमेश कुमार शामिल थे। याचिका में कहा गया कि पैंथर्स पार्टी ने धरना-प्रदर्शन दिल्ली उच्च न्यायालय की दो जजों की खंडपीठ के फैसले के आधार पर अब दो समलैंगिक वयस्क कानूनी रूप से यौन सम्बंध स्थापित कर सकेंगे। ऐसा लगता है कि यह निर्णय देते समय माननीय न्यायाधीशों ने बुद्धिमत्ता का प्रयोग नहीं किया। इस तरह तो एक दिन पशुओं के साथ भी यौन संबंधों को कानूनी जामा पहनाया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता के अध्याय में समलैंगिक पुरूष यौन संबंधों को पाप बताया गया है। यह अध्याय अंग्रेजों के जमाने में संहिता में नहीं जोड़ा गया था, बल्कि यह शताब्दियों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विरासत रही है और भारत, ब्रिटिशों और अमेरिकनों से हजारों वर्ष पूर्व राष्ट्र का रूप धारण कर चुका था। यह एक कटु सत्य है कि आज भी भारत एक सांस्कृतिक नेता के रूप में दुनिया में विद्यमान है और तथाकथित पश्चिमी सभ्यता वेदों और उपनिषदों की गहराई से जन्मी भारत की सांस्कृतिक विरासत से ईर्ष्या करती है।
दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला चीन भी समलैंगिक यौन संबंधों को अपमानजनक एवं मानसिक बीमारी ही मानता है। रूस में तो समलैंगिक संबंधों को पूंजीवादी साज़िश के रूप में देखा जाता है और माना जाता है कि यह दक्षिणपंथियों की साजिश है कि वे रूस की क्रांतिकारी भावना और आध्यात्मिक शक्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा करें।
तिरपन मुस्लिम देशों में तो पुरूष और पुरूष के बीच समलैंगिक संबंधों पर एकदम पाबंदी है। पांच बड़े मुस्लिम देशों में तो इस जुर्म के लिए सजा-ए-मौत तक निर्धारित है। इन देशों में सऊदी अरब, अफगानिस्तान और पाकिस्तान शामिल हैं। ये तो सिर्फ एंग्लो-सैक्सन देश और अमेरिका ही है, जिसने समलैंगिकों के बीच मान्यता दी है, जिनमें अमेरिका ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश शामिल हैं। यहां भी पूर्व राष्ट्रपति बुश ने तो समलैंगिक संबंधों के कानून पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था और बराक ओबामा को सम्भवत: सीआईए दबाव में इस पर दस्तखत करने पड़े।
अमेरिका में दस करोड़ से ज्यादा स्त्री-पुरूषों को समलैंगिको के रूप में पंजीकृत किया गया है। इजराइल में मुस्लिम-विरोधी यहूदियों में जहां इसे मान्यता प्राप्त है, वहीं इस्लाम के तमाम पैगम्बरों ने इसका भर्त्सना की है। इजराइल ने तो सम्भवतः अमेरिकी और ब्रिटेन के समलैंगिक यहूदियों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए इसे मान्यता दी है और यही मुख्य कारण है कि मुस्लिम देश यहूदी राज्य का विरोध करते रहे हैं।
भारत हजारों वर्षों से संतों और ऋषि मुनियों की सांस्कृतिक विरासत है और मानव गौरव की आध्यात्मिक मान्यताओं का देश रहा है। कहीं भी भारतीय इतिहास में कोई पुरूष के साथ यौन सम्बंध करता नहीं दिखाया गया है। भारतीय फलसफे की पक्की धारणा है कि पारिवारिक जीवन सौहार्द और सम्मानपूर्वक होना चाहिए। राम से लेकर कृष्ण तक, बुद्ध से लेकर गुरू नानक देव तक ने परिवारों के सौहार्दपूर्ण उत्थान का उपदेश दिया है। भारतीय परिवार, नारी को अर्धांग्नि के रूप से स्वीकारता है। उच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय संस्कृति का घोर अपमान है, इस पर राष्ट्रपति का वीटो अतिआवश्यक है।
अगर यह निर्णय कानून बना तो भारत की हजारों साल की संस्कृति-सभ्यता नष्ट हो जाएगी। यह निर्णय इतना असंतोषजनक, अप मानजनक और अस्वाभाविक है कि भारतीय सभ्यता का कोई भी आदमी इसे स्वीकार नहीं कर सकता। इस निर्णय से तो धनाड्य और विकृत मानसिकता के समाज-विरोधी तत्वों और भारत के शत्रुओं को ही सहायता मिलेगी। याचिका में इससे उत्पन्न एक गहन समस्या की चर्चा करते हुए कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति, भारत की रक्षा सेनाओं के सेनापति भी होते हैं। दो न्यायाधीशों के इस निर्णय का भारतीय रक्षा सेनाओं की वीरता, आचरण और अनुशासन पर कितना बड़ा दुष्प्रभाव पड़ेगा? हिमालय क्षेत्र के जम्मू-कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर त्रिपुरा तक के नौजवानों पर बेहद खतरनाक असर पड़ेगा, जो अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए बड़े-बड़े शहरों में काम करने चले जाते हैं। जरा सोचिए कि इन समलैंगिक संबंधों वाले लोगों के बच्चों पर क्या असर पड़ेगा, जिनके पुरूष भागीदार अपनी पत्नियों को शर्मनाक और बर्बाद अवस्था में छोड़ गये हैं। प्रदर्शन में भाग लेने वालों में अजीतसिंह, मोहम्मद सरवर, कु- इंदु, ज्योति, मंदीप चौहान, भोज कुमार, दिनेश कुमार, कुलदीप वर्मा, विमल कुमार आदि भी शामिल थे।

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