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हिंदू नायक अशोक सिंघल नहीं रहे

प्रधानमंत्री और देश विदेशवासियों ने शोक जताया

विहिप भाजपा और संघ सहित सर्वत्र शोक व संवेदनाएं

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Wednesday 18 November 2015 03:49:24 AM

ashok singhal

नई दिल्ली। अयोध्या में रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में हिंदू हृदय सम्राट कहे गए विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के तमाम सनातन धर्मावलंबियों, विश्व हिंदू परिषद, हिंदू संगठनों, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और देश-विदेश ‌के हिंदूवादियों एवं सामाजिक-राजनीतिक दलों ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है। अशोक सिंघल के निधन से विश्व हिंदू परिषद को भारी धक्का लगा है कि उसने अपना प्रमुख नेता खो दिया है, जिसने दुनिया के हिंदुओं को एक करने के लिए अपने बचपन से लेकर आखिर तक पूरा जीवन लगा दिया। अशोक सिंघल नब्बे के दशक में दुनिया की सुर्खियों में आए, जब भारत में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन अपने चरम पर था। कहना न होगा कि उन दिनों उनकी सिंह जैसी गर्जना से रामभक्त ऊर्जा से भर जाते थे। अशोक सिंहल को सन्यासी भी कह सकते हैं और एक योद्धा भी। वे जीवन भर स्वयं को संघ का एक समर्पित प्रचारक ही मानते रहे।
अशोक सिंघल का जन्म अश्विन कृष्ण पंचमी 27 सितम्बर 1926 को उत्तर प्रदेश के आगरा नगर में हुआ था। उनके पिता महावीर सिंघल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे। घर के धार्मिक वातावरण होने के कारण वे बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति गहरे निष्ठावान थे। उनका जीवन महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रभावित हुआ और आगे चलकर वे हिंदू नायक के रूप में भारत के हर क्षेत्र में देश-विदेश में संतों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से जुड़ गए। वर्ष 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय संघ के प्रचारक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया ने उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संपर्क कराया। कहा जाता है कि उन्होंने उनकी की माता को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनाई, जिसके बाद उन्होंने अशोक सिंघल को संघ की शाखा में जाने की अनुमति दे दी और अशोक सिंघल ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
भारतवर्ष में सन् 1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता जब सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे, तब उन जैसे देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा? अशोक सिंघल उस समय भी प्रचंड देशभक्त युवकों में थे। बचपन से ही उनकी रुचि शास्त्रीय गायन में भी रही और उन्होंने संघ के अनेक गीतों की लय भी बनाई। वर्ष 1948 में संघ पर जब प्रतिबंध लगा तो अशोक सिंघल उसके खिलाफ सत्याग्रह कर जेल गए। जेल से बाहर आकर उन्होंने बीई अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और पूर्णरूप से संघ के प्रचारक बन गए। अशोक सिंघल की सरसंघचालक गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लंबे समय तक वे कानपुर रहे। यहां उनका सम्पर्क रामचंद्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। वे अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार किया करते थे।
देश में वर्ष 1975 से 1977 तक आपातकाल और संघ पर प्रतिबंध लगा और वे इस दौरान इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे संघ के दिल्ली के प्रांत प्रचारक बनाए गए। वर्ष 1981 में डॉ कर्ण सिंह के नेतृत्व में दिल्ली में जो विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ, पर उसके पीछे की शक्ति भी अशोक सिंघल और संघ की थी। उसके बाद उन्हें विश्व हिंदू परिषद की जिम्मेदारी दी गई। परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृति, परावर्तन, गोरक्षा जैसे अनेक नए आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्वपूर्ण कार्य था श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति एवं मंदिर आंदोलन, जिससे परिषद का काम गांव-गांव तक पहुंच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आंदोलन एक मील का पत्थर साबित हुआ है। आज विश्व हिंदू परिषद की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक सिंघल का योगदान सर्वाधिक माना जाता है।
अशोक सिंघल विश्व हिंदू परिषद के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त-सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गये थे। परिषद के महामंत्री चम्पत राय भी उनके साथ थे। पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण था। इससे उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते 17 नवम्बर 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन को अपनी निजी क्षति बताया है। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने अशोक सिंघल के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। राज्यपाल ने कहा है कि अशोक सिंघल उनके पुराने परिचित थे, उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की, विश्व हिन्दू परिषद को भारत के बाहर पहुंचाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने कहा कि वे संघ के प्रचारक भी थे और भारतीय संस्कृति के अनन्य पक्षधर थे, जिन्होंने समाज सेवा को आजीवन अपना धर्म समझा, देश ने एक राष्ट्रभक्त खो दिया है।
अशोक सिंहल का पार्थिव शरीर कल विश्व हिन्दू परिषद के मुख्यालय रामकृष्णपुरम दर्शनार्थ रखा गया, जहां भारी संख्या में लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उनका पार्थिव शरीर केशवकुंज झण्डेवाला संघ कार्यालय में भी अंतिम दर्शन के लिए ले जाया गया। आज शाम निगमबोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी ने अशोक सिंघल को श्रद्धाजंलि देते हुए ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की है। विश्व हिन्दू परिषद में 80 के दशक की शुरूआत से मृत्युपर्यंत वे अलग-अलग पदों पर कार्यरत रहे। भाजपा ने कहा ‌है कि वे रामजन्मभूमि मुक्ति एवं राम मंदिर आंदोलन, रामसेतु और धर्म जागरण के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे। भाजपा ने कहा है कि अशोक सिंघल का पूरा जीवन ही भारत के चरणों में समर्पित रहा। सादगी, साहस, धर्म-निष्ठा और उत्कृष्ट राष्ट्रभक्ति जैसे गुणों से पल्लवित एक सिद्धांतवादी जीवन का आज अंत हो गया। रामजन्मभूमि आंदोलन, विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्र के लिए यह एक अपूर्णीय क्षति है।
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रदेश प्रभारी ओम प्रकाश माथुर, प्रदेश अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, गृह राज्यमंत्री किरेन ‌रिजिजू, रेलमंत्री सुरेश प्रभु, रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर, वित्त और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली, सूचना प्रौद्योगिकि मंत्री रविशंकर प्रसाद, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण, पर्यटन मंत्री डॉ महेश शर्मा, शहरी विकास मंत्री एम वैंकेया नायडु, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ कृष्‍णकांत पॉल, राजस्‍थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और देश-विदेश के नेताओं ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। उत्तर प्रदेश भाजपा नेताओं प्रदेश उपाध्यक्ष शिव प्रताप शुक्ला, प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल, प्रदेश महामंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, प्रदेश मंत्री वीरेंद तिवारी, अनूप गुप्ता, प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक, डॉ मनोज मिश्र, हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव, डॉ चन्द्रमोहन, आईपी सिंह, डॉ विवेक विक्रम सिंह, मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ला, सह मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित, अनीता अग्रवाल, मुख्यालय प्रभारी भारत दीक्षित, सह प्रभारी चौधरी लक्ष्मण सिंह, श्यामनंदन सिंह ने भी शोक संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
न्यूयॉर्क, अमेरिका, नीदरलैण्ड, अर्जेंटीना, आयरलैंड, आर्मेनिया, इंडोनेशिया, इक्वेडोर, इज़रायल, इथियोपिया, उत्तर कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, अफ्रीकी गणराज्य, केन्या, ग्रीनलैंड, जर्मनी, जापान, जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे, जॉर्जिया, तुर्कमेनिस्तान, तुर्की, त्रिनिदाद एवं टोबेगो, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण ओस्सेटिया, दक्षिण कोरिया, नेपाल, फ़्रांस, म्याँमार, बांग्लादेश, भूटान, मलेशिया, माली, मॉरिशस, मॉल्दोवा, रूसी संघ, वैटिकन शहर, श्रीलंका, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य, सिंगापुर, स्विट्ज़रलैंड, हाँगकाँग जैसे देशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों ने शोक संदेश भेजे हैं।

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