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चुनौतियों के सामने खड़ा एक समाजवादी!

मुलायम सिंह यादव का आम आदमी से करीबी जुड़ाव

हिंदुस्तान में समाजवादी आंदोलन की अंतिम कड़ी

राजनीतिक संवाददाता

मुलायम सिंह यादव-mulayam singh yadav

लखनऊ। देश में समाजवादी आंदोलन की अंतिम कड़ी के सबसे ज्यादा सक्रिय नेता और विचारवान राजनेता मुलायम सिंह यादव एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संघर्ष में खड़े हैं। विवादों और आलोचनाओं से घिरे इस प्रख्यात समाजवादी को करीब से जानने वाले कहा करते हैं कि राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में घोर संघर्ष से अपना रास्ता बनाने, जबरदस्त उतार-चढ़ाव, जटिल स्थितियों में एक असाधारण राजनीतिक कौशल और रणनीतियों से मुलायम सिंह यादव ने न केवल राजनीतिक मंच पर अपनी जरूरत का एहसास कराया है बल्कि हमेशा उन्‍होंने अपने नफे नुकसान की चिंता किये बिना राजनीतिक या प्रशासनिक निर्णय लिए हैं। मुलायम सिंह यादव के लिए चुनावी साल भारी राजनीतिक चुनौतियों के साथ सामने होगा क्योंकि उन्हें अपनी नीतियों के साथ राज्य की जनता के बीच जाना है।
समाजवादी डॉ राममनोहर लोहिया और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को अपना राजनीतिक आदर्श मानने वाले मुलायम सिंह यादव के लिए स्वतंत्र टीकाकारों का कहना है कि उनमें अपने पूर्वज राजनेताओं के आदर्श आज भी पहले की तरह मौजूद हैं जिनका दर्शन उनके विधान सभा, लोकसभा, जनसभाओं में विभिन्न कार्यक्रमों या भाषणों में दिखाई देता है। उन्होंने समाजवाद और आज की तेज तर्रार जीवन शैली में समन्वय स्थापित करने की कोशिश की है। हालॉकि राजनीति की नई पीढ़ी के लिए समाजवाद की प्रासंगिकता कम होती जा रही है। फिर भी मुलायम सिंह यादव आम आदमी के काफी करीब समझे जाते हैं। उन्होंने अपना जन्म दिन भी हमेशा सादगी से मनाया और जन कल्याण के कार्यक्रमों को प्रेरित किया है। प्रदेश में उनकी राजनीतिक गतिविधियों से दूसरे दलों में भी हमेशा कोई न कोई प्रतिक्रिया होती रही है।
इटावा के सेफई गांव में एक साधारण किसान के घर जन्में मुलायम सिंह यादव तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री और एक बार देश के रक्षा मंत्री हुए हैं। उत्तर प्रदेश में उनका शासन काल भारी उतार चढ़ाव वाला रहा है। उन्होंने अपने प्रत्येक कार्यकाल में किसी न किसी बड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना अवश्य किया है। देश को कई प्रधानमंत्री देने वाला यह राज्य प्रदेश के नेताओं का भविष्य बनाता और बिगाड़ता रहा है। राज्य के भावी राजनीतिक परिदृश्य पर उतरने के नए समीकरणों के साथ उनका संघर्ष शुरू हो चुका है। पिछड़ों दलितों और मुसलमानों का समर्थन पाने के लिए मुलायम सिंह यादव की तैयारियां सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती हैं। मुलायम सिंह यादव के बीते मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल को देखें तो उनकी सरकार केंद्र में एनडीए की सरकार के समय में बड़ी ही विचित्र स्थिति में बनी थी। आज एनडीए की जगह पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार है। मुलायम सिंह यादव का बीता मुख्यमंत्रित्व काल जहां भारी राजनीतिक ‌विवादों का नाम रहा वहीं राजनैतिक चुनौतियों और खतरों से भी इनका सामना हुआ है।
मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश में विधान सभा, विधान परिषद और लोकसभा उपचुनावों में भारी सफलता मिली थी। जिस कारण उनके विरोधी उनके खिलाफ किसी भी मुहिम को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए। लेकिन सरकार के कुछ विवादास्पद फैसलों और सम्पत्तियों के विवाद से उन्हें भारी राजनीतिक नुकसान पहुंचा जिससे वह राज्य की सत्ता से बाहर हो गए। उन्होंने हमेशा सामाजिक और सांप्रदायिक मामलों में काफी सतर्कता बरती है जिस कारण उन पर इस प्रकार का कोई आरोप नहीं लग सका। इनके कार्यकाल में कोई सांप्रदायिक झड़पें भी नही हुईं। आर्थिक मामलों में जरूर भारी परेशानियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने पूंजी निवेश के क्षेत्र में कुछ कार्य करके इस असर को कम करने का प्रयास किया था, मगर सरकार बदलते ही सब कुछ रूक गया। मुलायम सरकार और केंद्र में कई बार टकराव की स्थितियां पैदा हुई, लेकिन उन्होंने इस टकराव को अपने राजनैतिक कौशल से रोकने में काफी बुद्घिमानी से काम ‌लिया है।
मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक मिशन को साधने के लिए भाजपा और बहुजन समाज पार्टी को एक साथ निशाने पर रखा है। राजनैतिक दलों में जातिगत समीकरणों की जटिलता और दलीय हिसाब से दलितों एवं पिछड़ों व अतिपिछड़ों के राजनीतिक झुकाव पर काफी निगरानी और छीनाझपटी होती रही है। मुलायम सिंह यादव को इन वर्गों पर पकड़ बनाने में काफी हद तक सफलता मिली है। हाल के ‌दिनों में प्रदेश और देश की राजनीतिक में जो परिवर्तन आये उनका लाभ मुलायम सिंह यादव ने उठाने की कोशिश की है। केंद्र में यूपीए की सरकार के विश्वासमत को समर्थन देकर मुलायम ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत किया। पिछले चार सालों में मुलायम का यूपीए सरकार से भयंकर ‌विवाद रहा है जिसमें लालू यादव ने मुलायम की ताकत को सीमित किए रखा लेकिन स्थितियां बदलते ही मुलायम की राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका बढ़ गई।
राजनैतिक रूपसे उनका आने वाला समय और ज्यादा चुनौती पूर्ण माना जा रहा है क्योंकि राज्य में पिछले साल मई में विधान सभा चुनाव का अनुभव खट्टा मीठा रहा है। उसमें बहुत से साथी साथ छोड़ गए और नए मित्र कोई करतब नहीं दिखा सके। मुलायम सिंह यादव को सबसे बड़ी राहत इस बात से मिली है कि उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति के एक प्रबल दावेदार और भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह राजनीतिक हाशियें पर हैं और उतर प्रदेश के बाहर उन्हें लगातार चुनौतियां देते रहे लालू प्रसाद यादव भी अब उनके विरुद्ध नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव ने जहां उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम किया हुआ है वहीं उन्होंने पड़ोसी राज्य बिहार में राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करके समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी की ओर ले जाने की कोशिश की है। मुलायम को उत्तर प्रदेश की जनता एक और अवसर देने जा रही है अब देखना है कि नई भूमिका में वे और क्या करते हैं।

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