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असमिया संगीतज्ञ भारतरत्न भूपेन दा याद किए गए

डिब्रूगढ़ में 'बिस्तीर्ण परोरे: सदिया से धुबरी तक संगीतमय यात्रा' उत्सव

नरेंद्र मोदी व हिमंता सरमा की भूपेन हजारिका को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

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Monday 8 September 2025 02:16:33 PM

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नई दिल्ली/ डिब्रूगढ़। असमिया संगीतज्ञ भारतरत्न डॉ भूपेन हजारिका की जयंती पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें याद करते और उनके जीवन और संगीत पर प्रकाश डालते हुए उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री ने कहाकि भारतीय संस्कृति और संगीत से लगाव रखने वालों केलिए आज 8 सितंबर का दिन बहुत खास है, आज भारतरत्न डॉ भूपेन हजारिका की जन्म जयंती है, वे भारत की सबसे असाधारण और भावुक आवाज़ों में से एक थे। उन्होंने कहाकि ये बहुत सुखद हैकि इसवर्ष उनके जन्म शताब्दी वर्ष का आरंभ हो रहा है, यह भारतीय कलाजगत और जनचेतना में उनके महान योगदानों को फिरसे याद करने का समय है। प्रधानमंत्री ने कहाकि भूपेन दा ने हमें संगीत से कहीं अधिक दिया है, उनके संगीत में ऐसी भावनाएं थीं, जो धुन से भी आगे जाती थीं, वे केवल एक गायक नहीं थे, वे लोगों की धड़कन थे, कई पीढ़ियां उनके गीत सुनते हुए बड़ी हुईं हैं, उनके गीतों में करुणा, सामाजिक न्याय, एकता और गहरी आत्मीयता की गूंज है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भूपेन दा के रूपमें असम से एक ऐसी आवाज़ निकली जो चिरकाल तक किसी कालजयी नदी की तरह बहती रही। उन्होंने कहाकि भूपेन हजारिका भले ही हमारे बीच सशरीर नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ आजभी हमारे बीच है, भूपेन दा ने दुनिया का भ्रमण किया, समाज के हर वर्ग के लोगों से मिले और वे असम में अपनी जड़ों से हमेशा जुड़े रहे। प्रधानमंत्री ने बतायाकि असम की समृद्ध मौखिक परंपराएं, लोकधुनें और सामुदायिक कहानी कहने के तरीकों ने उनके बचपन को गढ़ा, यही अनुभव उनकी कलात्मक भाषा की नींव बने, वे असम की आदिवासी पहचान और लोगों के सरोकार को हर समय साथ लेकर चले। उन्होंने कहाकि बहुत छोटी उम्र से उनकी प्रतिभा लोगों को नज़र आने लगी, केवल पांच वर्ष की उम्र में उन्होंने सार्वजनिक मंच पर गाया, वहां लक्ष्मीनाथ बेझबरुआ जैसे असमिया साहित्य के अग्रदूत ने उनके कौशल को पहचाना, किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अपना पहला गीत रिकॉर्ड कर लिया, लेकिन संगीत उनके व्यक्तित्व का सिर्फ एक पहलू था।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि भूपेन दा भीतर से एक बौद्धिक व्यक्तित्व थे, जिज्ञासु, साफ बोलने वाले, दुनिया को समझने की अटूट चाह रखने वाले। उन्होंने कहाकि ज्योति प्रसाद अग्रवाल और विष्णु प्रसाद रभा जैसे सांस्कृतिक दिग्गजों ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला, उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया, सीखने की यही लगन उन्हें कॉटन कॉलेज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तक ले गई। प्रधानमंत्री ने बतायाकि वो बीएचयू में राजनीति शास्त्र के छात्र थे, लेकिन उनका अधिकतर समय संगीत साधना में बीतता था, बनारस ने उन्हें पूरी तरह संगीत की तरफ मोड़ दिया, काशी का सांसद होने के नाते मैं उनकी जीवन यात्रा से एक जुड़ाव महसूस करता हूं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि भूपेन दा ने अमेरिका में कुछ समय बिताया, वहां उन्होंने अपने समय के नामचीन विद्वानों, विचारकों और संगीतकारों से संवाद किया, वे पॉल रोबसन से मिले, जो दिग्गज कलाकार और सिविल राइट्स नेता थे, रोबसन का गीत ‘Ol’ Man River उनके कालजयी गीत ‘बिस्तीर्ण परोरे’ की प्रेरणा बना। अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला एलेनॉर रूजवेल्ट ने भारतीय लोकसंगीत प्रस्तुतियों केलिए उन्हें गोल्ड मेडल दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भूपेन हजारिका संगीत केसाथ ही मां भारती के भी सच्चे उपासक थे, उनके पास अमेरिका में रहने का विकल्प था, लेकिन वे भारत लौटे और संगीत साधना में डूब गए। उन्होंने कहाकि रेडियो से लेकर रंगमंच तक फिल्मों से एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्री तक हर माध्यम में वे पारंगत थे, वे जहांभी गए नई प्रतिभाओं को समर्थन दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि भूपेन दा की रचनाएं काव्यात्मक सौंदर्य से भरी हैं, उन्होंने सामाजिक संदेश भी दिए, ग़रीबों को न्याय, ग्रामीण विकास, आम नागरिक की ताकत जैसे अनेक विषय उन्होंने उठाए। प्रधानमंत्री ने कहाकि भूपेन दा ने गीतों में नाविकों, चाय बागान के मजदूरों, महिलाओं, किसानों की आकांक्षाओं को आवाज़ दी, उनकी रचनाएं लोगों को पुरानी स्मृतियों में ले जाती थीं, साथही उन्होंने आधुनिकता को देखने का एक सशक्त नज़रिया भी दिया, बहुत से लोग खासकर सामाजिक रूपसे वंचित तबकों के लोग, उनके संगीत से शक्ति और आशा पाते हैं। उन्होंने कहाकि भूपेन दा की जीवन यात्रा में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना का स्पष्ट प्रभाव दिखता है, उनकी रचनाओं ने भाषा और क्षेत्र की सीमाएं तोड़कर एकजुट किया है, उन्होंने असमिया, बांग्ला और हिंदी फिल्मों केलिए संगीत रचा, उनकी आवाज़ में जो पीड़ा है, वो बरबस हम सभी का ध्यान खींच लेती है।
‘दिल हूम हूम करे’ गीत में जो पीड़ा बहती है, वो सीधे दिल की गहराइयों को छू लेती है और जब वे पूछते हैं, ‘गंगा बहती है क्यूं’ तो ऐसा लगता है मानो हर आत्मा को झकझोर कर जवाब मांग रहे हों उन्होंने पूरे भारत के सामने असम को सुनाया, दिखाया, महसूस कराया- प्रधानमंत्री ने कहा। नरेंद्र मोदी ने कहाकि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगाकि आधुनिक असम की सांस्कृतिक पहचान को गढ़ने में उनका बहुत बड़ा योगदान है, वे असम के भीतर और दुनियाभर के असमिया प्रवासियों केलिए असम की आवाज़ बने। प्रधानमंत्री ने कहाकि वे राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे, फिरभी जनसेवा की दुनिया से जुड़े रहे और वर्ष 1967 में असम के नौबोइचा से निर्दलीय विधायक भी हुए, जो यह दिखाता हैकि लोगों को उनपर कितना गहरा विश्वास था, तथापि उन्होंने राजनीति को अपना करियर नहीं बनाया, भारत की जनता और सरकार ने उनके योगदान का सम्मान किया, उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण, दादासाहेब फाल्के अवार्ड समेत कई अवार्ड मिले, वर्ष 2019 में हमारे कार्यकाल में उन्हें भारतरत्न दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह मेरे और एनडीए केलिए भी सम्मान की बात है, जिसपर दुनियाभर में खासकर असम और उत्तर पूर्व के लोगों ने खुशी जताई। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह उन सिद्धांतों का सम्मान था, जिन्हें भूपेन दा दिल से मानते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भूपेन दा कहते थेकि सच्चाई से निकला संगीत किसी एक दायरे में सिमट कर नहीं रहता, एक गीत लोगों के सपनों को पंख लगा सकता है और दुनियाभर के दिलों को छू सकता है। प्रधानमंत्री ने साझा कियाकि मुझे 2011 का वह समय याद है, जब भूपेन दा का निधन हुआ, मैंने टीवी पर देखा उनके अंतिम संस्कार में लाखों लोग पहुंचे थे, हर आंख नम थी। उन्होंने कहाकि जीवन की तरह मृत्यु में भी उन्होंने लोगों को साथ ला दिया, इसलिए उन्हें जलुकबाड़ी की पहाड़ी पर ब्रह्मपुत्र की ओर देखते हुए अंतिम विदाई दी गई, वही नदी जो उनके संगीत, उनके प्रतीकों और उनकी स्मृतियों की जीवनरेखा रही है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि अब ये देखना बहुत सुखद हैकि असम सरकार भूपेन हजारिका कल्चरल ट्रस्ट के कार्यों को बढ़ावा दे रही है, यह ट्रस्ट युवा पीढ़ी को भूपेन दा की जीवन यात्रा से जोड़ने में जुटा है, भूपेन दा की सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने केलिए देश के सबसे बड़े पुल को भूपेन हजारिका सेतु नाम दिया गया है, वर्ष 2017 में जब मुझे इस सेतु के उद्घाटन का अवसर मिला तो मैंने महसूस कियाकि असम और अरुणाचल इन दो राज्यों को जोड़ने वाले, उनके बीच की दूरी कम करने वाले इस सेतु का भूपेन दा नाम सबसे उपयुक्त है।
डिब्रूगढ़ में भूपेन हजारिका उत्सव में डॉ हजारिका के जीवन पर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, मोरन, मोटोक, टी ट्राइब, सोनोवाल कछारी, देउरी और गोरखा समुदायों की परंपराओं को प्रदर्शित करने वाले समूह नृत्य प्रदर्शन शामिल हैं। इस अवसर पर देश के कुछ संगीत कलाकारों ने उन्हें वीडियो श्रद्धांजलियां अर्पित कीं, इनमें वायलिन वादक सुनीता भुयान खौंड, संगीत निर्देशक ध्रुबज्योति फुकन, अमृत प्रीतम, लोहित गोगोई, सैयद सादुल्ला, रामेन चौधरी, समर हजारिका और भक्ति गायक अनूप जलोटा शामिल थे। डॉ भूपेन हजारिका की जन्मशती सांस्कृतिक प्रतीक की सामूहिक स्मृति है। सुधाकंठ (ब्रह्मपुत्र के कवि) के रूपमें विख्यात डॉ भूपेन हजारिका ने अपनी सबसे गहरी प्रेरणा इसी विशाल नदी से प्राप्त की। उनके अमर गीत बिस्तीर्ण परोरे ने न केवल ब्रह्मपुत्र के भौतिक विस्तार को दर्शाया, बल्कि इसके किनारे रहने वाले लोगों के संघर्षों, आकांक्षाओं और एकता को प्रतिध्वनित किया। जब भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने इस नदी यात्रा की परिकल्पना की है तो इसका उद्देश्य ब्रह्मपुत्र नदी में डॉ भूपेन हजारिका के पदचिन्हों का अनुसरण करना, समुदायों को जोड़ना और उनके संदेश को आगे बढ़ाना है।
असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य के नेतृत्व में भूपेन हज़ारिका सम्मान तीर्थ में उनके जन्म शताब्दी समारोह की शुरुआत हुई और समाज के सभी वर्गों के लोग श्रद्धांजलि अर्पित करने केलिए एकत्रित हुए। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा विशेष रूपसे भूपेन हजारिका के श्रद्धांजलि और यादगार कार्यक्रमों में पहुंचे। उन्होंने कहाकि हम अपने प्रिय भूपेन दा के जन्म शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने असम के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक प्रेरणा भूपेन हजारिका को श्रद्धांजलि अर्पित करने केलिए उनके समन्वय तीर्थ पर माथा टेका। हेमंता बिसवा सरमा ने कहाकि आज हम एक ऐसे महापुरुष के जीवन का जश्न मना रहे हैं, जिन्होंने अपनी भावपूर्ण धुनों के माध्यम से असम को दुनिया तक पहुंचाया और मानवता को अपना राग और प्रेम को अपना राष्ट्रगान बनाया। उन्होंने कहाकि हम भारतरत्न डॉ भूपेन हज़ारिका की जयंती पर उनको याद करते हैं, जो अपने आप में एक काव्य था।

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