स्वतंत्र आवाज़
word map

अयोध्या में विवादित स्थल ही रामजन्मभूमि

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 30 December 2012 04:58:23 AM

ram janm bhoomi-राम जन्म भूमि

लखनऊ। अयोध्या में जहां रामलला की मूर्ति स्थापित है, वह स्थान ही रामजन्मभूमि है। वहां से कभी मूर्तियां नहीं हटाई जाएंगी और पूजा-अर्चना पूर्ववत चलती रहेगी। करोड़ों लोगों की धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था के चरम किंतु 'विवादित' शब्द से घिरे इस विश्व विख्यात स्थान पर कभी हिंदू धार्मिक स्थल हुआ करता था जिसे तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी जोकि इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ थी, जिसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के तीन न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और धर्मवीर शर्मा की पीठ ने साठ साल पुरानी इस कानूनी जंग का गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया और सर्वसम्मति से यह माना कि वर्तमान में जहां रामलला की मूर्ति स्थापित है वह स्थान ही रामजन्मभूमि है। न्यायाधीशों ने सभी पक्षकारों की दलीलों का हवाला देते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलील और अपील को दो के बहुमत से खारिज कर दिया है। खण्डपीठ ने अपने निर्णय में कहा है कि वर्तमान में जहां पर भगवान राम की मूर्ति स्थापित है वह स्थान श्रीराम लला विराजमान पक्ष को, पूर्व में नक्शे में प्रदर्शित राम चबूतरा और सीता रसोई पक्षकार निर्मोही अखाड़े को एवं कुल विवादित स्थान का 1/3 भाग पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपा जाता है। निर्णय में इंगित किया गया है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की खुदाई से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर यह सिद्व होता है कि विवादित ढांचा हिंदू धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया है। निर्णय के अनुसार आगामी तीन महीनों तक यथा स्थिति बनाई रखी जाएगी और तीन महीने के अंदर दोनो पक्ष अपनी अपील दायर कर सकते हैं। निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए तीसरे और बहुत पुराने पक्षकार हाशिम अंसारी ने संवाददाताओं से कहा कि हाईकोर्ट के फैसले का हम स्वागत करते हैं। पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी कहा कि आगे क्या होगा, इसका निर्णय सुन्नी वक्फ बोर्ड तय करेगा।

निर्णय के तुरंत बाद प्रेसवार्ता में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि इस निर्णय से न किसी की हार है और ना जीत हुई, वरन भगवान श्रीराम के मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। उन्होंने देश के मुसलमानों सहित सभी वर्ग समुदाय से यह आग्रह किया है कि वह शांति बनाए रखें और विगत कटुता एवं विषमता को भुलाकर राष्ट्रीय आस्था और पहचान के इस प्रतीक के निर्माण में पूर्ण मनोयोग एवं स्नेह भाव से जुट जाएं। एक सवाल पर उन्होंने पत्रकारों को बताया कि पूरा निर्णय प्राप्त होने के पश्चात ही संतों की उच्चाधिकार समिति इस पर विचार करेगी। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने निर्णय पर अपने को भ्रमित बताया परंतु शांति बनाये रखने की अपील की।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने एक प्रेस वार्ता में लखनऊ पीठ का फैसला आने के बाद शांति बनाये रखने की अपील की। उन्होंने यह भी कहा कि फैसले के परिप्रेक्ष्य में सरकार का कहना है कि विवादित भूमि 1983 से केन्द्र सरकार के अधीन है अतः उच्च न्यायालय के समस्त निर्देशों के पालन का पूर्ण उत्तरदायित्व भी केन्द्र सरकार का बनता है। उन्होंने इस संबंध में प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर आगे उचित कदम उठाने का आग्रह किया है।

न्यायालय ने बहुमत से यह फैसला सुनाया कि अयोध्या में विवादित भूमि को तीन समान भागों में हिंदुओं, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़े को बांट दिया जाए। विवादित जमीन के मालिकाना हक को अपने अलग-अलग फैसलों में जस्टिस एसयू खान और सुधीर अग्रवाल ने कहा कि तीन गुंबदों वाले ढांचे के बीच के गुंबद वाला भाग, जहां भगवान राम विराजमान हैं, हिंदुओं का है। न्यायाधीश खान और अग्रवाल ने कहा कि विवादित स्थल वाली 2.7 एकड़ भूमि को तीन समान भागों में बांटा जाए और उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को दिया जाए। हालांकि तीसरे न्यायाधीश डीवी शर्मा ने व्यवस्था दी कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है। उनके मुताबिक मुगल बादशाह बाबर की बनवाई विवादित इमारत इस्लामी कानून के खिलाफ थी और इस्लामी मूल्यों के अनुरूप नहीं थी।

न्यायाधीश खान ने कहा कि तीनों पक्षों को एक तिहाई भाग देने की घोषणा की गई है, बंटवारा करते समय अगर किसी पक्ष के हिस्से में मामूली अडजस्टमेंट किया जाता है तो इससे जिस पक्ष का नुकसान होगा उसकी भरपाई अधिगृहीत भूमि के कुछ भाग से की जाएगी।जस्टिस खान ने कहा, तीनों पक्षों - मुस्लिम, हिंदू और निर्मोही अखाड़ा - को संयुक्त रूप से उस विवादित क्षेत्र की संपत्ति (परिसर) का स्वामी घोषित किया जाता है, जैसा मुकदमा संख्या एक में अदालत से निर्धारित आयुक्त अधिवक्ता शिव शंकर लाल की तैयार नक्शा योजना एक में ए बी सी डी ई और एफ पत्रों में उल्लेख किया गया है। तीनों पक्ष एक तिहाई हिस्से का इस्तेमाल और पूजा अर्चना के लिए उसका प्रबंधन करेंगे। हालांकि जज ने माना कि मध्य गुंबद के नीचे का भाग, जहां वर्तमान में अस्थायी मंदिर में मूर्ति रखी गई है उसे अंतिम आदेश में हिंदुओं को दिया जाएगा।

न्यायाधीश खान ने अपने फैसले के दौरान व्यवस्था दी कि विवादित ढांचे को बाबर के आदेश से अथवा उनके द्वारा मस्जिद के तौर पर तामीर किया गया, लेकिन प्रत्यक्ष साक्ष्य से यह सिद्ध नहीं हो पाया कि निर्मित भाग सहित विवादित परिसर बाबर का था अथवा उसका था, जिसने इसे बनाया। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद बनाने के लिए कोई मंदिर नहीं गिराया गया, बल्कि उसका निर्माण मंदिर के खंडहरों पर किया गया, जो बहुत समय से वहां मौजूद थे।जस्टिस अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा, घोषित किया जाता है कि तीन गुंबदों वाले ढांचे के बीच वाले गुंबद का हिस्सा, जो भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में विवादित है और हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान है, वह याची (भगवान राम की तरफ का पक्ष) का है और प्रतिवादियों द्वारा किसी भी तरीके से उसमें बाधा अथवा दखल नहीं दिया जाए। जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि बाहरी प्रांगण में स्थित राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडार के ढांचों को निर्मोही अखाड़े के हिस्से में जोड़ा जाए और किसी व्यक्ति के इससे बेहतर मालिकाना हक की स्थिति में न होने पर उसे इसका कब्जा सौंप दिया जाए।

न्यायाधीश एसयू खान के फैसले की खास-खास बातें हैं - विवादित मस्जिद बाबर के आदेश से बनाई गई थी। यह साबित नहीं हो पाया कि जिस जगह पर विवादित ढांचा बनाया गया, उस पर बाबर या फिर जिसके आदेश से यह बना उसका मालिकाना हक था। मस्जिद मंदिर के खंडहर पर बनाई गई और इसमें खंडहर की सामग्री भी इस्तेमाल हुई। मस्जिद बनाने के समय तक हिंदू यह मानते रहे थे कि विवादित जमीन जिस परिसर में है वहां भगवान राम का जन्म हुआ था। सन् 1855 में राम चबूतरा और सीता रसोई का अस्तित्व सामने आने के पहले से हिंदू वहां पूजा-अर्चना कर रहे थे। इसलिए उस परिसर में पूजा और नमाज दोनों धार्मिक क्रियाएं हो रही थीं। दोनों ही पक्ष अपने मालिकाना हक के दावे को साबित नहीं कर पाए हैं इसलिए साक्ष्य अधिनियम के सेक्शन 110 के तहत दोनों पक्ष के कब्जे के आधार पर दोनों गुटों को संयुक्त टाइटल होल्डर्स माना जाएगा। विवादित स्थान पर 22 दिसंबर 1949 की रात को बाहर से लाकर रखी गई थीं मूर्तियां। कोर्ट ने विवादित जमीन पर 3 महीने तक यथास्थिति बहाल रखने के लिए कहा है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]