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दस वर्ष में बड़ा आर्थिक बोझ बनेगा कैंसर

कैंसर की रोकथाम की क्षमता ही इस बीमारी का उपचार

भारत में मुंह का कैंसर परिदृश्य पुरुषों में सबसे आम है

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 20 June 2021 03:44:34 PM

oral cancer

मुंबई। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कैंसर विश्वस्तर पर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत कैंसर के मामले निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पाए गए हैं। भारत का कैंसर परिदृश्य पुरुषों में सबसे आम मुंह के कैंसर के बोझ से दब गया है। वास्तव में भारत में 2020 में वैश्विक घटनाओं का यह लगभग एक तिहाई हिस्सा था। टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक डॉ आरए बडवे ने कहा है कि ग्लोबोकैन के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशक में नए मामलों के निदान की दर में आश्चर्यजनक रूपसे 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे यह एक वास्तविक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है और तो और लोगों की इसकी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच कम है, साथ ही जानकारी के अभाव में अधिकतर इस रोग के बारे में रोगियों को तब पता चलता है, जब कैंसर बढ़कर अगले चरण में पहुंच जाता है और तब जिसका इलाज करना अक्सर मुश्किल होता है।
लगभग 10 प्रतिशत रोगी ऐसे होते हैं, जिनमें कैंसर रोग अगली अवस्थाओं में फैल चुका होता है और ऐसे में वे उपचार के योग्य नहीं बचते, ऐसे में केवल उनके लक्षणों के लिए बस जीवित रहने तक जितना सम्भव होता है देखभाल का परामर्श ही दिया जा सकता है। एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह भी है कि जो लोग इसके लिए किसी न किसी प्रकार का उपचार प्राप्त करते भी हैं, उनमें से अधिकांश बेरोज़गार हो जाते हैं और अपने मित्रों और परिवार पर आर्थिक बोझ बन जाते हैं। यहां तककि स्वास्थ्य बीमा या सरकारी सहायता प्राप्त रोगियों, जिन्हें आमतौर पर स्वास्थ्य देखभाल की लागत से इन योजनाओं के चलते कुछ राहत मिल जाती है, वे भी गंभीरतम चुनौतियों का सामना करते हैं, क्योंकि अधिकांश सहायता योजनाएं उपचार के लिए आवश्यक वास्तविक राशि को पूरा उपलब्ध नहीं कराती हैं, जिससे अंततः रोगी के अतिरिक्त खर्चे बढ़ जाते हैं और रोगियों की एक बड़ी संख्या स्वयं और उनके परिवार कर्ज के कभी न खत्म होने वाले चक्र में फंस जाते हैं।
डॉ पंकज चतुर्वेदी की अध्यक्षता में टाटा मेमोरियल सेंटर की एक टीम ने इन मुद्दों से निपटने के लिए इस बीमारी के उपचार पर आनेवाली लागत का विश्लेषण शुरू किया है। कैंसर के उपचार की लागत के विश्लेषण से उन नीति निर्माताओं को ऐसी अमूल्य जानकारी मिलेगी, जो कैंसर के लिए संसाधनों का उचित आवंटन करते हैं। यह भारत में और विश्वस्तर पर कुछ मुट्ठीभर लोगों के बीच इस तरह का पहला अध्ययन है, जिनके अनुमानों की गणना एक आमूलचूल दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए की गई थी, जहां प्रत्येक सेवा के उपयोग की लागत के लिए संभावित एवं वास्तविक आंकड़े एकत्र किए गए, क्योंकि इसका उपयोग किया गया था। इस विशाल डेटा संग्रह के परिणामस्वरूप मुंह के कैंसर के इलाज की प्रत्यक्ष स्वास्थ्य लागत का निर्धारण किया गया है अर्थात एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता द्वारा वहन की जाने वाली प्रति रोगी लागत प्रत्यक्ष रूपसे मुंह के कैंसर के इलाज के लिए लगती है।
टाटा मेमोरियल अस्पताल में रिसर्च फेलो और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ अर्जुन सिंह ने कहा कि उन्नत चरणों के इलाज की इकाई लागत 2,02,892 रुपये, प्रारंभिक चरणों की 1,17,135 रुपये की तुलना में 42 प्रतिशत अधिक पाई गई है, साथ ही सामाजिक-आर्थिक स्तर में वृद्धि के कारण इकाई लागत में औसतन 11 प्रतिशत की कमी आई है। उपचार में चिकित्सा उपकरणों की लागत, पूंजीगत लागत का 97.8% हिस्सा है, जिसमें सबसे अधिक योगदान रेडियोलॉजी सेवाओं का है, इसमें सीटी, एमआरआई और पीईटी स्कैन शामिल हैं। अध्ययन में उन्नत चरणों में सर्जरी के लिए उपभोग्य सामग्रियों सहित परिवर्तनीय लागत प्रारंभिक चरणों की तुलना में 1.4 गुना अधिक थी। सर्जरी में अतिरिक्त कीमो और रेडियोथेरेपी को शामिल करने से उपचार की औसत लागत में 44.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मुंह के कैंसर के लगभग 60-80 प्रतिशत मामले इस रोग की बढ़ी हुई अवस्था में अपने विशेषज्ञ ऑन्कोलॉजिस्ट के पास जाते हैं।
अध्ययन के परिणामों के अनुसार प्रारंभिक और उन्नत कैंसर की प्रति यूनिट लागत को गुणा करने पर भारत ने 2020 में लगभग 2,386 करोड़ रुपये मुंह के कैंसर के इलाज पर खर्च किए, यह बीमा योजनाओं से भुगतान, सरकारी और निजी क्षेत्र के खर्च, जेब से भुगतान और धर्मार्थ दान या इन सबको मिलाकर किया गया खर्च है, जो इस एक बीमारी के लिए 2019-20 में सरकार के स्वास्थ्य देखभाल बजट आवंटन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लागत में किसी भी तरह की मुद्रास्फीति के बिना इससे देश पर अगले दस वर्ष में 23,724 करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ पड़ेगा। मुंह के कैंसर के उपचार का यह तनावपूर्ण आर्थिक प्रभाव दृढ़ता से सुझाव देता है कि इसकी रोकथाम की क्षमता ही इस रोग के उपचार के लिए प्रमुख शमन रणनीतियों में से एक होनी चाहिए। लगभग सभी मुंह के कैंसर किसी न किसी रूपमें तंबाकू और सुपारी के उपयोग के कारण होते हैं या तो सीधे या द्वितीयक सेवन के रूपमें।
भारत देश के लिए इस खतरे को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय करना और तंबाकू के सेवन से होने वाली सैकड़ों बीमारियों में से सिर्फ एक के कारण होने वाले आर्थिक बोझ को कम करना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्नत चरण की बीमारी में केवल 20 प्रतिशत की कमी के कारण प्रारंभिक पहचान रणनीतियों से सालाना लगभग 250 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। चिकित्सक, दंत चिकित्सक और सभी स्वास्थ्य कर्मी इस रोग का पता लगाने की पहली पंक्ति है, जो सही समय पर तंबाकू और सुपारी का सेवन करने वाले जैसे उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की जांच कर सकते हैं। जांच किए गए रोगियों को उत्तरवर्ती उपचार दिलाने, तंबाकू नशामुक्ति रणनीतियों को लागू करने और समय पर देखभाल और सहायता प्रदान करने में कुछ संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते भी हैं। कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों पर रोक जैसी मौजूदा नीतियों को और मजबूत करने से इन सबके लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण, रोगियों की इन सुविधाओं तक पहुंच, जरूरतमंद लोगों के लिए साक्ष्य आधारित बीमा और मुआवजा प्रदान करने के लिए आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

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