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'विश्व भारती की सौ वर्ष की गौरवशाली यात्रा'

गुरूदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का मूल तत्व है-प्रधानमंत्री

विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन का शताब्दी समारोह

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 24 December 2020 05:45:11 PM

centenary celebration of visva bharati university santiniketan

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉंफ्रेंस के जरिए आज विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा है कि विश्व भारती की 100 वर्ष की यात्रा बहुत विशेष है और यह प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय मां भारती के लिए गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर के विचार, विजन और परिश्रम का मूर्तरूप है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि गुरूदेव के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में विश्व भारती, श्रीनिकेतन और शांतिनिकेतन निरंतर प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा देश पूरे विश्व में विश्व भारती से निकले संदेश को फैला रहा है, विश्व भारती नाम भारत और विश्व के बीच के संपर्क को जोड़ता है, विश्व भारती के लिए गुरूदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का मूल तत्व भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान विश्व कल्याण के लिए भारत कल्याण का मार्ग है, यह अभियान भारत को सशक्त बनाने का अभियान है और यह अभियान भारत को समृद्ध बनाकर विश्व को समृद्ध बनाने का अभियान है। गौरतलब है कि गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन नगर में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में की थी। इस अवसर पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने द्वीप प्रज्जवलित करके शताब्दी समारोह का शुभारंभ किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत अंतर्राष्ट्रीय सौरगठबंधन के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में विश्व का नेतृत्व कर रहा है, भारत पेरिस समझौते के पर्यावरण लक्ष्यों को प्राप्त करने में सही दिशा में चलने वाला एक मात्र बड़ा देश है। प्रधानमंत्री ने विश्वविद्यालय स्थापना की परिस्थितियों को याद करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के लक्ष्य इस विश्वविद्यालय के लक्ष्य के अनुरूप थे, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इन आंदोलनों की नींव काफी पहले रखी गई थी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को शताब्दियों से चले आ रहे अनेक आंदोलनों से ऊर्जा प्राप्त हुई, भक्ति आंदोलन ने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता को मजबूत बनाया। उन्होंने कहा कि भक्तिकाल के दौरान भारत के प्रत्येक क्षेत्र के संतों ने देश की चेतना जगाए रखने का प्रयास किया, भक्ति आंदोलन एक द्वार था, जो संघर्षरत भारत को सामूहिक चेतना और शताब्दियों के विश्वास से भर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि श्रीरामकृष्ण परमहंस के कारण भारत को स्वामी विवेकानंद मिले, स्वामी विवेकानंद में समर्पण, ज्ञान और कर्म तीनों समाहित थे। नरेंद्र मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने समर्पण के क्षेत्र को बढ़ाते हुए प्रत्येक व्यक्ति में देवत्व देखा तथा व्यक्ति और संस्थान सृजन पर बल देते हुए कर्म को अभिव्यक्ति दी, भक्ति आंदोलन काल के देशभर के महान संतों ने मजबूत आधारशिला रखी। प्रधानमंत्री ने कहा कि सैकड़ों वर्ष के भक्ति आंदोलन के साथ-साथ देश में कर्म आंदोलन भी चला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, झासी की रानी, रानी सिनेम्मा, भगवान बिरसा मुंडा के कार्यों जैसे अनेक उदाहरण दिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत की जनता गुलामी और साम्राज्यवाद से लड़ रही थी, अन्याय और शोषण जब चरम पर था, तब सामान्य नागरिकों ने कर्म यानी दृढ़ता और बलिदान को अपनाया और इससे भविष्य में हमारे स्वतंत्रता संघर्ष को बहुत बड़ी प्रेरणा मिली। प्रधानमंत्री ने कहा कि भक्ति, कर्म और ज्ञान की त्रिमूर्ति ने स्वतंत्रता आंदोलन की चेतना का पालन-पोषण किया। उन्होंने कहा कि समय की आवश्यकता वैचारिक क्रांति थी, ताकि ज्ञान की स्थापना पर स्वतंत्रता की लड़ाई जीती जा सके और साथ-साथ भारत के उज्जवल भविष्य के लिए नई पीढ़ी को तैयार किया जा सके। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस काम में अनेक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालयों ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है, इन शिक्षण संस्थानों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए जारी वैचारिक आंदोलन को नई ऊर्जा, नई दिशा और नई ऊंचाई दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भक्ति आंदोलन से हम एकजुट हुए, ज्ञान आंदोलन ने हमें बौद्धिक शक्ति दी और कर्म आंदोलन ने अपने अधिकारों के लिए लड़ने का साहस दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सैकड़ों वर्ष चला स्वतंत्रता आंदोलन बलिदान, तपस्या तथा समर्पण का अनूठा उदाहरण बन गया है, इन आंदोलनों से प्रभावित होकर हजारों लोग स्वतंत्रता संघर्ष में बलिदान देने के लिए आगे आए। प्रधानमंत्री ने कहा कि वेद से विवेकानंद तक राष्ट्रीय चेतना का प्रवाह गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद के चिंतन में भी मुखर था। उन्होंने कहा कि यह प्रवाह न तो अंतरमुखी था और न ही संकीर्ण था, फोकस भारत को विश्व से अलग नहीं रखने का था, इस विजन में यह बात थी कि विश्व भारत की श्रेष्ठ बातों का लाभ उठाए और विश्व की अच्छाई से भारत को सीखना चाहिए।

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