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नकदी की कोई दिक्कत नहीं है-आरबीआई

घरेलू अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए नौ उपाय

कोविड से निपटने के लिए लोगों में उत्साह-आरबीआई

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 18 April 2020 11:09:36 AM

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मुंबई। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौजूदा समय में मुश्किलों से जूझ रही घरेलू अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए नौ कदमों या उपायों के दूसरे सेट की घोषणा की है। आरबीआई ने इससे पहले 27 मार्च 2020 को विभिन्न कदमों या उपायों के प्रथम सेट की घोषणा की थी। आरबीआई के गवर्नर ने एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेटलन के माध्यम से घोषणाएं करते हुए कहा है कि उस कोविड-19 महामारी पर विजय प्राप्त् करने के संकल्प के साथ लोग नए उत्सानह से लबरेज हैं, जिसने पूरी दुनिया को अपनी जानलेवा चपेट में ले लिया हुआ है। आरबीआई के गवर्नर ने बताया कि अतिरिक्त उपायों या कदमों के उद्देश्य इस प्रकार हैं-कोविड-19 से संबंधित अव्यवस्थाओं के कारण प्रणाली और उससे जुड़ी संरचनाओं में पर्याप्त तरलता बनाए रखना, बैंक ऋण के प्रवाह को सुगम बनाना और प्रोत्साहित करना, वित्तीय मुश्किलों को कम करना और बाजारों में सामान्य कामकाज सुनिश्चित करना।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि महामारी से उत्पन्न कठिन चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक अपने सभी साधनों या युक्तियों का उपयोग करेगा। उन्होंने कहा कि व्या पक उद्देश्य यह सुनिश्चित करने में मदद करना है कि सभी हितधारकों, विशेषकर वंचितों और कमजोर तबकों के लोगों तक वित्त का प्रवाह निरंतर बना रहे। उन्होंने उम्मीद जताई कि पूरा राष्ट्र एकजुट होकर स्थिति को ठीक करेगा और धीरज रखेगा। उन्होंने बताया कि 50,000 करोड़ रुपये की कुल प्रारंभिक राशि के साथ लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन का दूसरा सेट कार्यांवित किया जाएगा। यह कदम एनबीएफसी और एमएफआई सहित छोटे एवं मध्यम आकार की उन कंपनियों तक धन प्रवाह को सुगम बनाने के लिए उठाया जा रहा है, जो कोविड-19 के कारण आए व्यवधानों से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। टीएलटीआरओ 2.0 के तहत बैंकों द्वारा लिए जाने वाले धन को निवेश योग्य बॉंडों, वाणिज्यिक प्रपत्रों एवं गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के गैर परिवर्तनीय डिबेंचरों में निवेश किया जाना चाहिए और इसके तहत ली जाने वाली कुल राशि का कम से कम 50 प्रतिशत छोटी एवं मझोली एनबीएफसी तथा माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को दिया जाना चाहिए।
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के लिए पुनर्वित्त सुविधाएं-50,000 करोड़ रुपये की कुल राशि के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधाएं राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक और राष्ट्रीय आवास बैंक को प्रदान की जाएंगी, ताकि उन्हें विभिन्नसेक्टटरों की ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाया जा सके। इसके तहत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों एवं माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए नाबार्ड को 25,000 करोड़ रुपये, आगे उधार देने या पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए सिडबी को 15,000 करोड़ रुपये और आवास वित्तद कंपनियों को आवश्य्क सहायता प्रदान करने के लिए एनएचबी को 10,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। ये सुविधाएं इसलिए दी जा रही हैं, क्योंकि ये संस्थान कोविड-19 से उत्पान्नइ कठिन वित्तीय परिस्थितियों के मद्देनज़र बाजार से वित्त जुटाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस सुविधा के तहत लिए जाने वाले अग्रिम दरअसल आरबीआई के पॉलिसी रेपो रेट पर ही उपलब्ध होंगे, ताकि वे अपने उधारकर्ताओं को किफायती ब्यापज दरों पर ऋण दे सकें।
तरलता समायोजन सुविधा के तहत रिवर्स रेपो रेट में कमी-रिवर्स रेपो रेट को तत्काल प्रभाव से 4.0% से 0.25 प्रतिशत कम करके 3.75% कर दिया गया है, ताकि बैंकों को अपने अधिशेष धन को निवेश करने और अर्थव्यवस्था के उत्पादक सेक्ट रों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। आरबीआई गवर्नर ने बताया कि बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष यानी सरप्लस तरलता होने से ही यह निर्णय लेना संभव हो पाया है। उन्हों ने कहा कि निरंतर सरकारी खर्च किए जाने और आरबीआई द्वारा तरलता बढ़ाने के लिए किए गए विभिन्न उपायों की बदौलत ही तरलता में काफी वृद्धि हुई है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अर्थोपाय अग्रिम (डब्ल्यूएमए) की सीमा में 60% की वृद्धि की गई है जो 31 मार्च 2020 की निर्दिष्ट सीमा के अलावा है।इसका उद्देश्यन कोविड-19 को नियंत्रण में रखने एवं इसमें कमी लाने के प्रयासों के लिए राज्योंश को अधिक से अधिक सहूलियत प्रदान करना और उनके बाजार उधारी कार्यक्रमों की योजना बेहतर ढंग से बनाने में उनकी मदद करना है। डब्ल्यूएमए दरअसल आरबीआई द्वारा प्रदान की जाने वाली अस्थायी ऋण सुविधाएं हैं, जो सरकारों की प्राप्तियों और व्यय में अस्थायी असंतुलन को कम करने में उनकी मदद करती हैं। बढ़ी हुई सीमा 30 सितंबर 2020 तक उपलब्ध या मान्यस होगी।
आरबीआई ने 27 मार्च 2020 को घोषित उपायों के अलावा महामारी के मद्देनजर कर्जदारों के बोझ को कम करने के लिए अतिरिक्त नियामकीय उपायों की घोषणा की है। किसी परिसंपत्ति को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) मानने के संबंध में केंद्रीय बैंक ने निर्णय लिया है कि परिसंपत्तियों को एनपीए के रूप में वर्गीकृत करते समय उस भुगतान स्थगन अवधि पर विचार नहीं किया जाएगा, जिसे मंजूर करने की अनुमति उधार देने वाले संस्थानों को 27 मार्च 2020 की आरबीआई घोषणा के अनुसार दी गई है। इसका मतलब यही है कि उन खातों के लिए 90-दिवसीय एनपीए मानदंड पर विचार करते समय भुगतान स्थगन अवधि को ध्याीन में नहीं रखा जाएगा जिनके लिए उधार देने वाले संस्थानों ने स्थगन या मोहलत देने का निर्णय लिया है और जो 1 मार्च 2020 तक मानक या स्टैं डर्ड खाते थे। इसका अर्थ यही है कि 1 मार्च से 31 मई 2020 तक के इस तरह के खातों के लिए परिसंपत्ति वर्गीकरण पर विराम रहेगा। एनबीएफसी में निर्दिष्टलेखांकन मानकों के तहत लचीलापन होगा, ता‍कि वे अपने-अपने कर्जदारों को इस तरह की राहत प्रदान कर सकें। इसके साथ ही बैंकों से उन सभी खातों पर 10% का उच्च प्रावधान बनाए रखने को कहा गया है जिनके वर्गीकरण पर उपर्युक्तके अनुसार विराम रहेगा, ताकि बैंक पर्याप्त बफर राशि बनाए रख सकें।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने भुगतान न की जा रही उन परिसंपत्तियों या खातों से जुड़े विवादों के समाधान की चुनौतियों को ध्याान में रखते हुए समाधान योजना के कार्यान्वयन की अवधि 90 दिन बढ़ा दी है जो या तो अभी एनपीए हैं या जिनके एनपीए बन जाने की आशंका है। वर्तमान में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को 20 प्रतिशत का अतिरिक्त प्रावधान अनिवार्य रूपसे करना पड़ता है, यदि इस तरह के डिफॉल्ट की तारीख से 210 दिनों के भीतर कोई समाधान योजना लागू नहीं की गई हो। यह निर्णय लिया गया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक और सहकारी बैंक वित्त वर्ष 2019-20 से संबंधित मुनाफे से आगे कोई लाभांश भुगतान नहीं करेंगे, इस निर्णय की समीक्षा वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही के आखिर में बैंकों की वित्तीय स्थिति के आधार पर की जाएगी। ऐसा बैंकों को पूंजी संरक्षण में सक्षम बनाने के लिए किया गया है, ताकि वे बढ़ती अनिश्चितता के माहौल में अर्थव्यवस्था को आवश्याक सहयोग देने और नुकसान को झेलने की अपनी क्षमता को बरकरार रख सकें। विभिन्न संस्थानों के लिए तरलता की स्थिति बेहतर करने के उद्देश्यश से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए तरलता कवरेज अनुपात की आवश्यकता को तत्काल प्रभाव से 100% से कम करके 80% के स्तार पर ला दिया गया है। इसे धीरे-धीरे दो चरणों में बहाल किया जाएगा-1 अक्टूबर 2020 तक 90 प्रतिशत और 1 अप्रैल 2021 तक 100 प्रतिशत।
वाणिज्यिक परिचालन शुरू करने की तारीख के संबंध में वाणिज्यिक रियल एस्टेट परियोजनाओं को ऋण देने के लिए जो व्य वस्थाा उपलब्धस है, वह अब एनबीएफसी के लिए भी मान्यस होगी, ताकि एनबीएफसी और रियल एस्टेट सेक्टर दोनों को ही राहत प्रदान की जा सके। वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रमोटरों के नियंत्रण से परे कारणों से विलंबित वाणिज्यिक रियल एस्टेट परियोजनाओं को मिलने वाले ऋणों के मामले में डीसीसीओ को एक और वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, जो सामान्य परिस्थितियों में स्वी कृत एक वर्ष के समय विस्तार के अलावा है। एक और खास बात यह है कि इसे पुनर्गठन नहीं माना जाएगा। आईएमएफ के वैश्विक विकास अनुमानों के अनुसार भारत भी उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां विकास दर धनात्मअक (1.9%) रहने का अनुमान है, यह जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक विकास दर है। आरबीआई की घोषणाओं का उल्लेैख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि इन कदमों से तरलता में काफी वृद्धि होगी और ऋण आपूर्ति में सुधार होगा। उन्हों ने कहा कि इन कदमों से छोटे व्यवसायों, एमएसएमई, किसानों और गरीबों को मदद मिलेगी। इसके साथ ही इन कदमों के तहत डब्ल्यूएमए सीमा बढ़ा देने से सभी राज्यों को भी आवश्य क मदद मिलेगी।

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