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पटना विवि के पुस्तकालय का शताब्दी समारोह

पुस्तकालयों की भूमिका को और भी बढ़ाया जाए-उपराष्ट्रपति

पटना विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास को याद किया

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Sunday 4 August 2019 04:01:29 PM

centennial festival of patna university library

पटना। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु आज पटना विश्वविद्यालय पुस्तकालय के शताब्दी समारोह में शामिल हुए। उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने में मगध के विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों और उनके ग्रंथालयों की महती भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और उनके समृद्ध ग्रंथालयों का चरित्र वस्तुत: वैश्विक था, जहां सुदूर देशों से विद्वान अध्ययन, अध्यापन और ग्रंथों पर शोध करने आते थे। ये विश्वविद्यालय भारत की बौद्धिक एकता के केंद्र थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने अपने ज्ञान को बौद्धिक संपदा नहीं माना, हमारा विश्वदर्शन वसुधैव कुटुम्बकम् के आदर्श से परिभाषित होता रहा है। वेंकैया नायडु ने कहा कि हमने अपने ज्ञान और विद्या को विश्व कल्याण के लिए सबसे साझा किया और इसी से भारतीय आध्यात्म और ज्ञान का विश्वभर में प्रसार हुआ। उन्होंने राष्ट्रीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पटना विश्वविद्यालय के योगदान को याद किया और कहा कि यहीं से पढ़कर निकले जयप्रकाश नारायण, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ विधानचंद्र राय, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा, न्यायमूर्ति वीपी सिन्हा और भारत के प्रथम अटॉर्नी जनरल लालनारायण सिन्हा जैसी महान विभूतियों का राष्ट्र निर्माण में अभिनंदनीय योगदान रहा है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने कहा कि वर्तमान में भी यहां से पढ़े केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्वनी कुमार चौबे, राज्यसभा सांसद जेपी नड्डा पटना विश्वविद्यालय का नाम रौशन कर रहे है। उपराष्ट्रपति ने पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों के संकलन को देखा और कहा कि अटलजी के राष्ट्रीय पाडुंलिपि मिशन का भी लाभ उठाएं, इस योजना के तहत आप न केवल इन पांडुलिपियों का संरक्षण कर सकेंगे, बल्कि उन्हें विश्वभर के शोधार्थियों को उपलब्ध भी करवा सकेंगे। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पुस्तकालयों को प्रासंगिक बनाए रखने पर विचार व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि गूगल युग में पुस्तकालयों को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि उनकी भूमिका को और बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रम और अध्यापन पद्धति में बदलाव लाने चाहिएं, जिससे छात्रों में पुस्तकालयों में संदर्भ ग्रंथों को पढ़ने के लिए रुचि जगे। उन्होंने सलाह दी कि पुस्तकालय, विश्वविद्यालय में साहित्यिक और सामयिक विमर्श का केंद्र होने चाहिए, जिससे पुस्तकालयों की बौद्धिक जीवंतता बनी रहे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक समृद्ध पुस्तकालय अथाह ज्ञान का मंदिर होता है, पुस्तकों में सिमटे असीम ज्ञान के सामने मनुष्य को अपनी लघुता का एहसास, उसे विनम्र बना देता है। उन्होंने कहा कि जीवन में पुस्तकों की महत्ता बताते हुए प्राचीन रोमन दार्शनिक सिसरो ने कहा था कि बिना किताबों का कमरा, बिना आत्मा के शरीर के समान है, यदि ज्ञान जिज्ञासा मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है तो पुस्तक और पुस्तकालय के प्रति आदर और आकर्षण होना स्वाभाविक है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में अभिव्यक्ति को व्यक्ति का मूल अधिकार माना गया है, लेकिन साथ ही विद्वानों का मत है कि बोलने से पहले सोचो और सोचने से पहले पढ़ो। उन्होंने कहा कि स्वाधीन भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि पुस्तकों के माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ते हैं। उन्होंने कहा कि नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में संस्कृत, पाली, तिब्बती भाषाओं में बौद्ध, वैदिक दर्शन, अध्यात्म, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र आदि विषयों पर पुस्तकों का समृद्ध भंडार था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर विश्वविद्यालय का कर्तव्य और उद्देश्य होता है कि वह अपनी ज्ञान परंपरा से अखिल विश्व को लाभांवित करे। उन्होंने कहा कि कोई भी विश्वविद्यालय पुस्तकालय के बिना पूर्ण नहीं है, पटना विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास में भी इस पुस्तकालय का योगदान उल्लेखनीय है।
वेंकैया नायडु ने कहा कि पटना विश्वविद्यालय पुस्तकालय अपने स्थापना के समय से ही राज्य तथा देश-विदेश के विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का केंद्र रहा है और मुझे बताया गया है कि यहां लगभग 6 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां, 3 लाख से अधिक किताबें, 25 हजार थीसिस एवं कई हजार शोध पत्र उपलब्ध हैं, जिन्हें मैंने भी देखा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार देशभर में विभिन्न भाषाओं, लिपियों, विषयों और बनावट की लगभग 1 करोड़ पाडुलिपियां हैं, ये पाडुंलिपियां न केवल हमारी ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत भी है। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि यह पुस्तकालय शोध-सिंधु तथा नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी से जुड़ चुका है, जिसमें लगभग 6 करोड़ किताबें, 15 लाख जर्नल तथा कई लाख थीसिस ऑनलाइन उपलब्ध है तथा विद्यार्थी अपनी सुविधानुसार इसका लाभ पुस्तकालय से प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तकालय के डिजिटाइज़ेशन की प्रक्रिया चल रही है, जिससे इस पुस्तकालय का लाभ दुनिया के किसी भी कोने से उठाया जा सकता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारुप तैयार किया गया है, जिसमें उदार शिक्षा और बहु-विषयक शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है, शिक्षा नीति में देश को ज्ञानी समाज बनाने और सभी को उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है, यह लक्ष्य समृद्ध पुस्तकालयों तथा बौद्धिक रूपसे जीवंत विश्वविद्यालयों के बिना पूर्ण नहीं होगा।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि विश्वभर के शिक्षण संस्थानों और पुस्तकालयों के बीच नेटवर्क स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे पुस्तकालय अपनी पुस्तकों, जर्नल या डिजिटल लाइब्रेरी को साझा कर सकें और मैं चाहूंगा कि पटना विश्वविद्यालय पुस्तकालय विश्व के सभी बड़े पुस्तकालयों से जुड़े, आज के उच्चस्तरीय सूचना और संचार तकनीकी के माध्यम से दुनिया के हर कोने का ज्ञान पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को मिले तथा पटना विश्वविद्यालय के पुस्तक और दुर्लभ पांडुलिपियों और पुस्तकें दुर्लभ संग्रह की सूचना विश्वभर में पहुंचे। शताब्दी समारोह में बिहार के राज्यपाल फागू चौहान, मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रासबिहारी प्रसाद सिंह और गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।

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