स्वतंत्र आवाज़
word map

सीबीएसई की सख्ती से सुधार की आशा

इक्कीस साल पहले की सिफारिशें गायब

लिमटी खरे

सीबीएसई-cbse

नई दिल्ली। केंद्रीय विद्यालय संगठन के बोर्ड ऑफ गवर्नर की अनुशंसा के आधार पर 1988 में तत्कालीन सांसद चंदूलाल चंद्राकर की अध्यक्षता में बनी समिति का प्रतिवेदन गायब है जिसमें समिति ने सीबीएसई में दाखिला के तौर-तरीकों को बदलने के लिए सिफारिशें की थीं। इक्कीस साल बाद इस रिपोर्ट को खोजने की मुहिम में लगा है मानव संसाधन विकास मंत्रालय। यह बात भी तब प्रकाश में आई जब संसद की आश्वासन समिति ने जनवरी 2009 में इसे लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय को फटकार लगाई थी। सन् 1992 में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने सदन में इस समिति की रिपोर्ट को लागू करने का आश्वासन भी दिया था।

कितने आश्चर्य की बात है कि शिक्षकों की व्यवस्था के लिए राज्य सरकारें अतिरिक्त धन की मांग करती हैं। मतलब साफ है कि राज्यों की सरकारों को पता है कि उनके यहां अशिक्षा का अंधेरा इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के समाप्त होने के बाद भी पसरा है। उस अंधेरे को दूर करने की दिशा में राज्य सरकारों का कोई ठोस प्रयास नहीं किया जाना घोर आश्चर्य का विषय माना जा रहा है। शिक्षा के अधिकार कानून में गरीब गुरबों के बच्चों को शिक्षा मुहैया करवाने की शर्त अवश्य ही रखी गई है किन्तु किसी में इतना साहस नहीं है कि वह फाईव स्टार से लेकर विलासिता वाली संस्कृति वाली शालाओं के संचालकों का कालर पकड़कर उनपर गरीब बच्चों को भी उसी शाला में दाखिला दिलाने का दबाव बना सकें। नर्सरी में दाखिले के लिए सरकार ने स्पष्ट किया हुआ है कि निजी स्कूल गरीब बच्चों को 25 फीसदी स्थान अवश्य ही देंगे लेकिन शालाओं को दुकान और प्रतिष्ठान बनाने वाले शाला संचालक इसकी सरेआम धज्जियां ही उड़ा रहे हैं।

इस साल के आरंभ में केंद्रीय विद्यालय संगठन ने बच्चों के बस्तों का बोझ कम करने का फैसला लिया गया था। संगठन ने अपने समस्त केंद्रीय विद्यालयों को ताकीद की थी कि बच्चों के बस्ते के बोझ को किसी भी कीमत पर कम करना होगा। टाईम टेबल इस तरह का तैयार करने पर बल दिया गया था कि बच्चे कम किताबें लेकर शाला जाएं। केवीएस का यह फैसला भी पहले के उन फैसलों की तरह ही ढेर हो गया जिनमें कहा गया था कि बच्चों को होमवर्क और बस्ते के बोझ से मुक्त कराया जाएगा।

विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए निजी शालाओं के संचालकों की यह कोशिश होती है कि वे किसी भी तरह से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की संबद्धता प्राप्त कर लें। साम दाम दण्ड और भेद की नीति अपनाकर निजी शालाओं के संचालक अपनी जुगत में कामयाब भी हो जाते हैं किन्तु उसके बाद विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाने की दिशा में शाला संचालक कोताही बरतते आए हैं। सीबीएसई का रवैया भी बेहद ढुलमुल ही रहा है। शालाओं के निरीक्षण की औपचारिकताएं कागजों पर ही निभा दी जाती हैं। सीबीएसई के अध्यक्ष और भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी विनीत जैन ने सीबीएसई से संबद्ध शालाओं पर सख्ती शुरू की है। विद्यार्थियों से मनमानी फीस लेने पर सीबीएसई को आपत्ति है। सीबीएसई नया सर्कुलर जारी कर कहा है कि फीस के मामले में अब शालाएं मनमाना रवैया नहीं अपना सकतीं। कोई भी शाला किसी भी तरह की केपीटेशन फीस या पालकों से एच्छिक डोनेशन भी नहीं ले सकती हैं। सीबीएसई का कहना है कि अगर कोई विद्यार्थी बीच सत्र में शाला छोड़कर जाता है तो शाला प्रबंधन को उसकी बाकी फीस हर हाल में वापस करनी ही होगी।

राईट टू एजूकेशन में एक कक्षा में बच्चों की संख्या 35 निर्धारित की गई है फिर भी सीबीएसई ने इस संख्या को चालीस से अधिक होने पर एतराज जताया है। बोर्ड ने शिक्षा के स्तर में सुधार की गरज से कंटिन्यूअस एण्ड कॉम्प्रिहेंसिव इवैल्यूएशन स्कीम सीसीई लागू की है। इसमें पढ़ाई में किताबों के अलावा एक्सट्रा केरिकुलर एक्टीविटीज पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है किन्तु एक कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर इस योजना को शायद ही अमली जामा पहनाया जा सके। इन गतिविधियों के तहत आर्ट, डांस, म्यूजिक आदि के मामले में भी शाला को ध्यान देना होगा, प्रथक से क्लास रूम की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। हर शाला को एक खेल का कालखण्ड रखना भी अनिवार्य होगा इसके लिए शाला के पास खेल का मैदान होना भी अनिवार्य किया गया है। सीबीएसई का कहना है कि दाखिला प्रक्रिया भी पूरी तरह से पारदर्शी होना चाहिए। फीस बढ़ाने के मामले में सीबीएसई का तर्क है कि कोई भी शाला अगर शैक्षणिक शुल्क में बढ़ोत्तरी करती है तो वह पालकों को विश्वास में लेकर ही किया जाए अन्यथा शिकायत होने पर शाला प्रबंधन के खिलाफ कार्यवाही हो सकती है।

केंद्रीय सूचना आयोग ने भी निर्देश जारी किए हैं कि शालाओं में पूरी पारदर्शिता अपनाई जाए। आयोग का कहना है कि हर शाला की अपनी एक वेबसाईट होना आवश्यक है जिसमें शाला का सीबीएसई एफीलेशन स्टेटस आधारभूत अधोसंरचना, शिक्षकों के नाम, पद, उनकी शैक्षणिक योग्यता, प्रत्येक कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या, शाला का ईमेल आईडी शाला प्रबंधन समिति के सदस्यों का विवरण, शाला का दूरभाष नंबर वेबसाईट पर होना आवश्यक है। शाला को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह वेब साईट लगातार अपडेट की जाए ताकि अभिभावकों को सारी जानकारियां मिल सकें।

सीबीएसई के दिशा निर्देशों में साफ किया गया है कि प्रत्येक शाला को अपना वार्षिक प्रतिवेदन भी वेबसाईट पर डालना अनिवार्य होगा। इस प्रतिवेदन के साथ शाला को अपने इंफ्रास्टक्चर के अलावा वार्षिक गतिविधियां रिजल्ट आदि को भी अद्यतन किया जाना अनिवार्य है। सीबीएसई के मान्यता प्राप्त स्कूलों के पास प्राणी विज्ञान, रसायन शास्त्र, भौतिकी विज्ञान, गणित एवं कम्पयूटर की प्रयोगशाला को अनिवार्य किया गया है। बच्चों की संख्या निर्धारित से अधिक पाए जाने पर या पारदर्शिता का अभाव मिलने पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान किया जा रहा है। सीबीएसई बोर्ड के निरीक्षण दल भी समय-समय पर शालाओं का निरीक्षण करेंगे।

सीबीएसई के अध्यक्ष विनीत जैन के प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए कि उन्होंने व्यवसाय का रूप अख्तियार कर चुकी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश शुरू की है। हालॉकि इस व्यवस्था में नीतिगत सुधार की जिम्मेदारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की है और शिक्षा का अधिकार कानून भी बना दिया गया है किन्तु इसे अमली जामा पहनाने की बारी आई है तो मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]