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मौत के मुंह से निकाला और फिर मौत के मुंह में धकेला

देवेन्द्र प्रकाश मिश्र

दुधवा। टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शामिल किशनपुर वनरेंज जंगल के समीप शिकारियों के खुड़का में फंसे घायल तेंदुआ को आजाद कराने के बाद और चंद घंटों में उपचार करके वनाधिकारियों ने उसे उसी अवस्था में रात के अंधेरे में जंगल के भीतर छोड़ दिया है। इससे इस घायल तेंदुए का जीवन संकट में पड़ गया है क्योंकि उसको खोज निकालना शिकारियों के लिए कोई मुश्किल नहीं होगा।
तेंदुए का घायल पंजा ठीक होने में कुछ तो समय लगेगा ही। शिकार के वक्त उसकी ताकत अगले दोनों पैरों में होती है, इसलिए वह कैसे शिकार करेगा? भूख शांत करने के लिए घायल तेंदुआ आसान शिकार की तलाश में निकटवर्ती इंसानी बस्तियों में आकर मवेशी या मानव पर हमला करके नरभक्षी हो सकता है या फिर वह स्वयं जिन शिकारियों के चुंगल से बचा है उनका फिर से शिकार बन सकता है। उत्तर प्रदेश के एकमात्र दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शामिल किशनपुर वनपशु विहार के जंगल से सटे गन्ने खेत में शिकारियों के बाघ के शिकार के लिए लगाए गए खुड़का में 31 जुलाई को चार वर्षीय तेंदुए का अगला बायां पैर बुरी तरह से जकड़ गया था। डब्ल्यूटीआई के पशु चिकित्सक डॉ मुस्ताक आदि ने मसक्कत के बाद ट्रैकुलाइजर गन से उसे बेहोश किया और उसे पिंजड़े में कैद करके दुधवा ले आए थे।
आगे की जानकारी के अनुसार प्राथमिक उपचार के बाद दुधवा के आला अफसरों एवं डब्ल्यूटीआई की टीम के बीच घंटों मंत्रणा हुई और वन विभाग के उच्चाधिकारियों के निर्देश पर मध्यरात्रि के बाद लगभग डेढ़ बजे उसे किशनपुर ले गए और खूंटा कुंआ के जंगल में छोड़ दिया। इस गुपचुप कार्यवाही से स्पष्ट हो जाता है कि वनाधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही ढंग से करने के बजाय झंझट में न पड़ने और जवाबदेही से बचने के लिए तेंदुए को जंगल में छोड़कर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर ली। रात के अंधेरे में हुए इस खेल ने तेंदुए के जीवन को और ज्यादा खतरे में डाल दिया है। लखनऊ प्राणी उद्यान के विशेषज्ञ वन्यजीव चिकित्सक डॉ उत्कर्ष शुक्ला का कहना है कि तेंदुए का पैर ज्यादा घायल नहीं होगा तभी उसे छोड़ा गया होगा। मगर वन्यजीव प्रेमी विकास पांडेय मानते हैं कि वन विभाग के अधिकारियों का यह कदम जल्दबाजी भरा है, भले ही तेंदुआ ठीकठाक था, इसके बाद भी उसको जंगल में छोड़ने से पहले एकबार वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट से उसकी जांच अवश्य करानी चाहिए थी।
सृष्टि कंजरवेशन एण्ड वेलफेयर सोसाइटी के सेक्रेटरी डी प्रकाश कहते हैं कि खुड़का इतने तेज प्रेसर से बंद होता है जिसमें हड्डी टूटने की सम्भावना अधिक रहती है, घायल तेंदुए के पैर का एक्सरे भी नहीं कराया गया। यह बात अपनी जगह सही है कि वनपशु जख्मों को चाटकर ठीक कर लेते हैं और उनके घाव भी प्राकृतिक रूप से जल्दी भर जाते हैं, किंतु अगर पंजे की हड्डी टूटी हुई हो तो बरसात का मौसम है जख्मों के सड़ने की संभावना अधिक रहती है। ऐसी दशा में घायल तेंदुए का उपचार या परीक्षण लखनऊ प्राणी उद्यान के विशेषज्ञ वन्यजीव चिकित्सक या भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर बरेली के विशेषज्ञों की देखरेख में होना चाहिए था।
वाइल्ड लाइफर केके मिश्र कहते हैं कि तेंदुए की असली ताकत अगले पैरों में होती है जिससे वह रफ्तार भी बढ़ाता है और शिकार पर प्रहार भी करता है। ऐसे में घायल तेंदुआ स्वाभाविक शिकार करने में जब असमर्थ होगा तो वह आसान शिकार के लिए इंसानी बस्ती में आ सकता है। मिश्र कहते हैं कि यह बात भी अपनी जगह सही है कि घायल बाघ और तेंदुआ आसान शिकार मानकर पालतू पशु या मानव पर हमला करते हैं। ऐसे में एक पैर से घायल तीन पैर वाला तेंदुआ आसान शिकार की तलाश में निकटवर्ती गावों में आकर मवेशियों या मानव पर हमला कर सकता है या फिर उन्ही शिकारियों का फिर से शिकार हो सकता है। घायल तेंदुए की निगरानी की क्या व्यवस्था की गई है? वन विभाग के अधिकारी इन प्रश्नों का जवाब देने में अब कन्नी काट रहे हैं।
किशनपुर वनपशु विहार का वनक्षेत्र पूर्व से ही शिकारियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है क्योंकि इसके आसपास कई बस्तियां हैं जिनमें इनको रहने की जगह और ग्रामीणों का सहयोग आसानी से मिल जाता है। साथ ही यह वनक्षेत्र नार्थ-खीरी फारेस्ट डिवीजन से सटा और जिला पीलीभीत के जंगलों के निकट है। भौगोलिक परिस्थितियों का फायदा उठाकर शिकारी आसानी से वन्यजीवों को मारते ही हैं साथ में बाघ और तेंदुए का शिकार करने में भी परहेज नहीं करते हैं। इस घटना से पहले करीब चार वर्ष पूर्व किशनपुर परिक्षेत्र में सक्रिय रहे शिकारियों के बाघ का शिकार करने का खुलासा हुआ था। तीन साल पहले नार्थ-खीरी फारेस्ट डिवीजन क्षेत्र के ग्राम कापटांडा में नरभक्षी हुए एक बाघ को गोली से मारा गया था। दो वर्ष पूर्व नरभक्षी घोषित बाघ को पिंजरे में कैद करके लखनऊ प्राणी उद्यान भेजा गया था।
इसके अतिरिक्त किशनपुर से सटे जिला पीलीभीत के ग्राम नहरोसा से बावरिया गिरोह की सक्रिय महिला सदस्य लाजो को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा चुका है। इसके बाद भी वन विभाग वन्यजीवों की सुरक्षा में लापरवाही बरत रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि शिकारियों ने आसानी से खुड़का लगाया और उसमें विलुप्तप्राय वन्यजीवों की सूची के सेड्यूल 'वन' श्रेणी के तेंदुए को फांस भी लिया था। इसकी भनक वनकर्मियों को नहीं लग पाई थी, ग्रामीणों की सूचना पर घायल तेंदुए की फिलहाल जान जरूर बच गई। दुधवा टाइगर रिजर्व के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की वन्यप्राणियों की सुरक्षा में लापरवाही की स्थिति आगे भी रही तो क्षेत्र में सक्रिय शिकारी गिरोहों के सदस्य दुधवा टाइगर रिजर्व को भी सारिस्का और पन्ना टाइगर रिजर्व की तरह बाघ विहीन बना देंगे।

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