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संघर्षमुक्त विश्व व्यवस्था की जरूरत-वेंकैया

वियतनाम में वेसाक दिवस पर बौद्धधर्म के गुणों की चर्चा

उपराष्ट्रपति नेे किया प्रबुद्ध वैश्विक नेतृत्व का आह्वान

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Monday 13 May 2019 01:39:57 PM

m. venkaiah naidu addressing the gathering at the 16th united nations day of vesa

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शांति और टिकाऊ विकास पर आधारित संघर्षमुक्त विश्वव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए एक प्रबुद्ध वैश्विक नेतृत्व का आह्वान किया है और जोर देकर कहा कि बौद्धधर्म ऐसे रूपांतरण को बढ़ावा देता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बौद्धधर्म के मूल सिद्धांतों का पालन लोगों के मस्तिष्क को संघर्ष और तनावमुक्त कर सकता है और मनुष्य के भीतर बहुत वांछित सकारात्मक नेतृत्व प्रदान कर सकता है, जो एक न्यायसंगत और उत्तरदायी विश्वव्यवस्था के साथ-साथ समस्याग्रस्त मानवता का उद्धार कर सकता है। वेंकैया नायडू ने वियतनाम के उपराष्ट्रपति के निमंत्रण पर वियतनाम के हा नामा प्रांत के ताम चुग पगोडा में वेसक के 16वें संयुक्तराष्ट्र दिवस पर मुख्य संबोधन में बौद्धधर्म के गुणों और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने वैश्विक नेतृत्व के प्रति बौद्ध दृष्टिकोण और स्थायी समाजों के लिए साझा जिम्मेदारियां विषयवस्तु पर भी चर्चा की। इसके प्रतिभागियों में वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुच, राष्ट्रीय वियतनाम बौद्धसंघ के अध्यक्ष और वैसाक समारोह 2019 के संयुक्तराष्ट्र दिवस के अध्यक्ष डॉ थिक थिएन नहोन एवं और भी कई देशों के करीब 1600 से अधिक प्रमुख बौद्ध प्रतिभागी शामिल में थे। वेसाक भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान और परिनिर्वाण का प्रतीक है, जिनके उपदेशों ने पिछले 2,500 वर्ष में दुनियाभर के लोगों को प्रभावित किया है। वेंकैया नायडू ने कहा कि सदाचारी व्यवहार, ज्ञान, करुणा, भ्रातृत्व और तृष्णा को कम करने का बौद्ध दृष्टिकोण एक नई विश्वव्यवस्था के ढांचे की बुनियाद प्रदान करता है, जहां हिंसा और संघर्ष को न्यूनतम किया जाता है और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किए बिना विकास जन्म लेता है।
बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित कलिंग युद्ध के बाद निर्मम सम्राट अशोक से धार्मिक अशोक में रूपांतरण का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि चरमपंथी स्थितियों से बचने के लिए बुद्ध के मध्यम मार्ग को अपनाने से सत्य की प्राप्ति होती है, जो हमें संघर्ष से बचने, विभिन्न दृष्टिकोण के मेल-मिलाप और आम सहमति प्राप्त करने की ओर ले जाता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह व्यक्ति को कट्टरता, हठधर्मिता और उग्रपंथ से दूर रखता है और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए आवश्यक जीवन के अधिक संतुलित दृष्टिकोण की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि बौद्धधर्म कट्टरता और धार्मिक अतिवाद की समकालीन बुराइयों का प्रतिकार करता है। वेंकैया नायडू ने कहा कि संघर्ष की उत्पत्ति की जड़ें व्यक्ति के मस्तिष्क से उत्पन्न घृणा हिंसा के विचार में निहित हैं और आतंकवाद के बढ़ते खतरे इस विनाशकारी भावना का प्रकटीकरण हैं। वेंकैया नायडू ने कहा कि घृणा की विचारधाराओं के समर्थकों को विचारहीन मृत्यु और विनाश से बचने के लिए रचनात्मक रूपसे संलग्न होने की आवश्यकता है और बुद्ध के अनुसार शांति से बढ़कर कोई आनंद नहीं है।
वैश्विक नेतृत्व के सामने समकालीन चुनौतियों का उल्लेख करते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि शांति और स्थायी विकास आपस में जुड़े हुए हैं और वे एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने विश्व के नेताओं से आग्रह किया कि वे करुणा और ज्ञान के आधार पर संवाद, सद्भाव और न्याय को बढ़ावा देने के लिए साथ मिलकर काम करें, क्योंकि सीमित प्राकृतिक संसाधनों को देखते हुए स्थायी समाज केवल टिकाऊ उपभोग और उत्पादन के माध्यम से ही संभव है। उपराष्ट्रपति ने महसूस किया कि पूरे मानव इतिहास में अंधाधुंध महत्वाकांक्षा, अतार्किक घृणा और क्रोध के तत्वों की प्रधानता रही है और उन्होंने रक्त और आँसू की कई दुखद कहानियां लिखी हैं। उन्होंने कहा कि भारत का दृष्टिकोण विश्व को एक बड़े परिवार के रूपमें मानने का रहा है और उसके स्वप्न शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के विषय पर बुने गए हैं। इस अवसर पर म्यांमार के राष्ट्रपति विन म्यिंट, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, राष्ट्रीय वियतनाम बौद्धसंघ के सबसे आदरणीय सुप्रीम पैट्रिआर्क, वियतनाम की नेशनल असेंबली की अध्यक्ष गुयेन थी किम नगन, भूटान की राष्ट्रीय परिषद के अध्यक्ष टाशी दोरजी और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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