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उत्तराखंड में 'वन एवं पर्यावरण' जागरुकता

'चिपको आंदोलन ने दिखाई पर्यावरण संरक्षण की राह'

न्यायपालिका के सदस्यों हेतु संवेदीकरण सेमिनार

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 2 November 2016 04:05:49 AM

uttarakhand governor dr krishan kant paul

देहरादून। उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी देहरादून में अकादमी के आयोजित ‘वन एवं पर्यावरण’ मुद्दे पर उच्च न्यायपालिका के सदस्यों हेतु संवेदीकरण सेमिनार कार्यक्रम का बतौर मुख्य अतिथि उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में उत्तराखंड ही वह राज्य है, जिसने अनोखे व सफल ‘चिपको आंदोलन’ से देश और दुनिया को पर्यावरण संरक्षण की राह दिखाई और लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए प्रेरक संदेश देने की पहल की। राज्यपाल ने समसामयिक महत्वपूर्ण विषय पर तीन दिवसीय सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए उत्तराखंड की कामयाब पहल का आज और महत्व बढ़ गया है, जिसे हमें कायम रखना है।
राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल ने आईजीएनएफए के सेमिनार को इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण और बेहतर प्रयास बताते हुए कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विकास और पर्यावरण के बीच प्रकृति के अनुरूप संतुलन बनाना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण एवं विकास की दृष्टि से ऐसे सेमिनार बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। राज्यपाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के दृष्टिगत पर्यावरण संरक्षण के लिए वातावरण में बढ़ते कार्बनडाई ऑक्साइड को एब्जार्व करने की ओर ध्यान केंद्रित किए जाने तथा इसी अनुपात में ‘फोटो सिन्थेसिस प्रोसेस’ को तेजी से विकसित करना भी आवश्यक है, इसके लिए इस क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान होने चाहिएं। कार्बन ट्रेडिंग पर कई सटीक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में इसके फायदे कम, नुकसान ज्यादा दिखाई दे रहे हैं, जिस पर सभी विकसित देशों को पुर्नविचार करना होगा।
पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से ‘वन अधिकार अधिनियम 2006’ को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि विशेष रूप से जनजातियों को केंद्र में रखकर बनाया गया यह एक्ट यदि सही तरीके से अमल में लाया गया तो यह बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। उन्होंने पुनः कहा कि उत्तराखंड ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी संवेदनशीलता व जागरूकता को ‘चिपको आंदोलन’ के माध्यम से पूरे विश्व को संदेश दिया है। राज्यपाल ने इस बात पर बल दिया कि वन-पर्यावरण संरक्षण के लिए ग्रामीणों तथा वन पंचायतों को वनों के और नजदीक लाना होगा, जिनकी जीविका संबंधी आर्थिक गतिविधियां वनों पर आधारित होंगी, उनमें वनों के संरक्षण व संवर्धन के प्रति जिम्मेदारी का भाव स्वाभाविक रूप से आएगा जैसा कि प्राचीनकाल से होता आया है। सेमिनार में देशभर के हायर ज्यूडिसियरी के 15 से 20 वर्ष के अनुभवी 25 सदस्य प्रतिभाग कर रहे हैं। इस अवसर पर आईजीएनएफए के निदेशक डॉ शशि कुमार, अपर निदेशक डॉ मोहित गेरा ने सेमिनार के उद्देश्यों, आईजीएनएफए के इतिहास व गतिविधियों पर विस्तृत प्रकाश डाला। कोर्स को-ऑर्डिनेटर डॉ पी विश्वकन्नन ने आभार व्यक्त किया।

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