स्वतंत्र आवाज़
word map

'अभिव्यक्ति पर पहला हमला नेहरू ने किया'

देश में असहिष्णुता किसने शुरू की-संघ सह प्रचार प्रमुख

संविधान दिवस पर जयपुर प्रेस क्लब में कार्यक्रम

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 27 November 2015 03:49:54 AM

press club jaipur, constitution day program

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे नंदकुमार ने 65वें संविधान दिवस पर प्रेस क्लब में मीडिया से कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहला हमला पहले संविधान संशोधन के रूप में नेहरू सरकार ने साप्ताहिक पत्रिका पर प्रतिबंध लगाकर किया था। उन्होंने बताया कि मद्रास स्टेट से रोमेश थापर की क्रास रोड्स नामक पत्रिका में नेहरू की आर्थिक एवं विदेश नीतियों के खिलाफ एक लेख लिखा गया था, जिसके फलस्वरूप इस पत्रिका को मद्रास सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया। उन्होंने कहा कि यद्यपि रोमेश थापर न्यायालय में मद्रास सरकार के विरूद्ध मुकद्मा जीत गए थे तो भी 12 मई 1951 में संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा गया। यह संशोधन 25 मई को पारित हो गया जो वर्तमान में भी है।
उन्होंने कहा कि असहिष्णु कौन है और इसकी शुरूआत किसने की इस पर विचार करना चाहिए। संविधान को लोकतंत्र में ईश्वर के समान बताते हुए जे नंदकुमार ने कहा कि संविधान में पंथनिरपेक्षता शब्द आने से पूर्व भी भारत में सनातन पंरपरा से सर्वपंथ समभाव का व्यवहार होता था। सेकुलरिज्म पर उन्होंने कहा कि संविधान का निर्माण होते समय इस शब्द को शामिल करने की जरूरत महसूस नहीं की गई थी, किंतु 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने इसे संविधान में शामिल किया। देश में असहिष्णुता के लेकर छिड़ी बहस और अवार्ड वापसी के बीच उन्होंने कहा कि असहिष्णुता के नाम पर देश में बौद्धिक आतंकवाद फैलाया जा रहा है। असहिष्णुता का डर दिखाकर लोगों को एक किया जा रहा है तथा आक्रामक विरोध जताने के लिए उन्हें प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश आगे बढ़ रहा है और इसके विकास को अवरुद्ध करने के लिए यह सब साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता से शुरू हुई बहस असहिष्णुता पर आ गई है।
असहिष्णुता मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से सफाई नहीं दिए जाने के सवाल पर उनका कहना था कि जरूरी नहीं कि हर बात का स्पष्टीकरण प्रधानमंत्री ही दें, यह कुछ लोगों की साजिश है जो उकसा कर साध्वी प्राची और साक्षी महाराज के बयान का इंतजार कर रहे हैं। अवार्ड वापस करने वालों पर कटाक्ष करते हुए नंदकुमार ने कहा कि वे ऐसा करके देश की जनता का अपमान कर रहे हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि नयनतारा ने सिख दंगों के 18 माह बाद अवार्ड लिया था, उस समय उन्होंने कोई विरोध दर्ज नहीं करवाया, किंतु अब वे 18 वर्ष बाद अवार्ड वापस कर रही हैं। अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर उनका कहना था कि सबको अपने विचार प्रकट करने का अधिकार है, किंतु कानून को हाथ में लेने का नहीं।
सह प्रचार प्रमुख नंदकुमार ने दादरी जैसी घटनाएं रोकने का समर्थन किया तथा कहा कि ऐसी घटनाओं पर कार्रवाई होनी चाहिए। वैचारिक स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि जाने-माने अभिनेता दिलीप कुमार और मीना कुमारी को भी अपना नाम बदलना पड़ा था, किंतु आज सहिष्णुता का माहौल होने के कारण वे अपने मूल नाम से काम कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में ऐसा माहौल नहीं है। पाकिस्तानी साहित्यकार और पत्रकार व कनाडा के नागरिक तारिक फतह ने भी बयान दिया है कि अगर विश्व में मुसलमानों के रहने के लिए सबसे बेहतर माहौल है तो वह सिर्फ भारत में है। आमिर खान पर उन्होंने बताया कि भारत में उनकी पत्नी असुरक्षित महसूस करती है पर क्या वे पीके जैसी फिल्म पाकिस्तान में बना सकते थे, जब देश उनकी फिल्म को सहन कर सकता है तो वे देश में असुरक्षित कैसे हुए।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]