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रचनाशीलता ही कहानी की असली जान

चित्तौड़गढ़ में संभावना का स्वयं प्रकाश पर राष्ट्रीय सेमीनार

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Friday 01 February 2013 08:57:42 AM

rashtriya seminar chittorgarh

चित्तौड़गढ़। यथार्थ को संजोते हुए जीवन की वास्तविकता का चित्रण कर समाज की गतिशीलता को बनाए रखने का मर्म ही कहानी है। सूक्ष्म पर्यवेक्षण क्षमता शक्ति एक कथाकार की विशेषता है और स्वयं प्रकाश इसके पर्याय बनकर उभरे हैं, उनकी कहानियों में खास तौर पर कथा और कहने की अलग शैली दिखती है। यही कारण है कि पाठक को कहानियां अपने आस-पास के परिवेश से ही मेल खाती हुई अनुभव होती हैं। अपनी विलग अंदाज की भाषा शैली के कारण स्वयं प्रकाश पाठकों के होकर रह जाते हैं, वे अपनी कहानियों के जरिए किसी विचारधारा को थोपते या ढोते नहीं हैं, बल्कि वे समकालीन विमर्श और स्थितियों को ठीक ढंग से उकेरने का कौशल रखते हैं। एग्जीक्यूटिव क्लब जिंक नगर, चित्तौड़गढ़ में आयोजित समकालीन हिंदी कथा साहित्य एवं स्वयं प्रकाश विषयक राष्ट्रीय सेमीनार में प्रकट विचारों में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से मुख्यतः ये बातें उभरकर सामने आईं।
विभिन्न सत्रों में आयोजित इस सेमीनार में माना गया कि रचनाशीलता ही कहानी की जान है। वही कहानी सार्थक है, जो मन में उत्कंठा जगाती है। अपने वक्तव्य के माध्यम से डॉ माधव हाड़ा ने कहा कि आज जब लेखक को स्वयं लेखक होने की चिंता खाए जा रही है, वहीं मनुष्य एवं मनुष्य की चिंता स्वयं प्रकाश की कहानियों में परिलक्षित होती है। उद्घाटन सत्र का सबसे रौचक पक्ष कथाकार स्वयं प्रकाश का ‘कान दाव’ कहानी पाठ रहा, जिसमें स्वयं प्रकाश के कहानी को कहने और पढ़ने के कौशल से भी श्रोता वाकिफ हुए। इस कहानी पाठ के जरिए स्वयं प्रकाश ने सांप्रदायिकता पर गहरी चोट की।
सेमीनार के दूसरे सत्र में जबलपुर विश्वविद्यालय की मोनालिसा और राजकीय महाविद्यालय मंडफिया के प्राध्यापक डॉ अखिलेश चाष्टा ने पत्रवाचन कर स्वयं प्रकाश की कहानियों को समकालीन परिदृश्य में गहरे तक विश्लेषित किया। विमर्श के दौरान पार्टीशन, चौथा हादसा, नीलकांत का सफर जैसी कहानियों की खूब चर्चा रही। इसी सत्र के मुख्य वक्ता युवा कवि, अलोचक और अनुवादक अशोक कुमार पांडेय ने अपनी वामपंथीय विचारधारा से ओत-प्रोत अभिभाषण के जरिए समकालीन कथा साहित्य के कई उदाहरण रखे। उन्होंने समय के साथ बदलती परिस्थितियों और संक्रमण के दौर में भी स्वयं प्रकाश के लेखन का प्रमुख स्‍थान बने रहने पर खुशी जाहिर की। सत्र की अध्यक्षता करते हुए कवि और चिंतक डॉ सदाशिव श्रोत्रिय ने कहा कि कोई भी व्यक्ति दूसरों की पीड़ा और व्यथा को समझकर ही साहित्यकार बन सकता है और सही अर्थों में समाज को कुछ दे सकता है। उन्होंने अपने भीनमाल प्रवास को आत्मिय अंदाज में एक संस्मरण पढ़कर सबके सामने रखा। इस सत्र का संचालन माणिक ने किया।
तीसरे सत्र में कहानी के नए रूपबंध और स्वयं प्रकाश जैसे विषय को लेकर चर्चा हुई। इस सत्र में दिल्ली की रेखा सिंह ने पत्र वाचन किया। मुख्यवक्ता के रूप में युवा आलोचक कामेश्वर प्रसाद सिंह ने स्वयं प्रकाश को उनके समय के दूसरे कथाकारों के साथ रखकर देखा। काशीनाथ सिंह, नामवर सिंह और राजेंद्र यादव जैसे प्रख्यात लेखकों का हवाला देते हुए उन्होंने स्वयं प्रकाश की कहानी परंपरा को व्याख्यायित किया। सत्र का संचालन करते हुए युवा विचारक डॉ रेणु व्यास ने कहा कि स्वयं प्रकाश की कहानी के पात्रों में हमेशा पाठक भी शामिल होता है, यही उनकी कहानी की ताकत होती है। समापन सत्र में डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि जब तक मनुष्य और मनुष्यता है, तब तक साहित्य की आवश्यकताओं की प्रासंगिकता रहेगी। उन्होंने कहा कि मानवता सबसे बड़ी विचारधारा है और हमें यह समझना होगा कि वामपंथी हुए बिना भी प्रगतिशील हुआ जा सकता है। सामाजिक यथार्थ के साथ मानवीय पक्ष स्वयं प्रकाश की कहानियों की विशेषता है एवं उनका संपूर्ण साहित्य, सृजन इंसानियत के मूल्यों को बार-बार केंद्र में लाता है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात आलोचक प्रोफेसर नवलकिशोर शर्मा ने बहुत बारीक ढंग से स्वयं प्रकाश की कहानियों पर आलोचना के अंदाज में व्यक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन करते हुए राजकीय महाविद्यालय डूंगरपुर के प्राध्यापक हिमांशु पंडया ने कहा कि गलत का प्रतिरोध प्रबलता से करना ही स्वयं प्रकाश की कहानियों को अन्य लेखकों से अलग खड़ा करता है। चित्रकार और कवि रवि कुमार ने कहा कि किसी भी कहानी में विचार की अनुपस्थिति असंभव है और साहित्य व्यक्ति के अनुभव के दायरे को बढ़ाता है। सेमीनार में प्रतिभागियों के अपने अनुभव सुनाने के क्रम में विकास अग्रवाल ने स्वयं प्रकाश के साथ बिताए अपने समय को संक्षेप में याद किया। उद्घाटन सत्र में आयोजक संस्थान की गतिविधियों के बारे में हिंदू कॉलेज दिल्ली के सहआचार्य डॉ पल्लव ने आत्मीय अंदाज में संस्मरणनुमा वक्तव्य दिया। समापन पर संभावना के अध्यक्ष डॉ केसी शर्मा ने औपचारिक रूप से अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए आगे भी इस तरह के आयोजन जारी रखने का विश्वास जताया।
रावत भाटा के रंगकर्मी रवि कुमार की स्वयं प्रकाश की कहानियों के खास हिस्सों पर केंद्रित करके पोस्टर प्रदर्शनी सेमीनार का मुख्य आकर्षण रही। यहां बनास जन, समयांतर, लोकसंघर्ष सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं की एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। शुरूआत में अतिथियों को माल्यार्पण और शॉल ओढ़ाकर श्रमिक नेता घनश्याम सिंह राणावत, जीएनएस चौहान, जेपी दशोरा, अजयसिंह, योगेश शर्मा ने अभिनंदन किया। सभी सत्रों में अतिथियों का अभिनंदन प्रवीण कुमार जोशी, फजलुर्रहमान, प्रकाश खत्री, रेखा जैन, हरीश लड्ढा, योगेश शर्मा, जयप्रकाश भटनागर, नंदकिशोर निर्झर, डॉ एएल जैन, रामेश्वर शर्मा, अब्दुल जब्बार, गजेंद्र मीणा ने किया। आभार आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास ने व्यक्त किया। डॉ कनक जैन इस राष्ट्रीय सेमीनार के संयोजक थे।

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