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पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भारतवर्ष!

महामानव पर पत्रकार संजय द्विवेदी की खास किताब

यह वर्ष 'एकात्म मानवदर्शन' का स्वर्ण जयंती वर्ष भी

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Thursday 6 August 2015 04:08:42 AM

pandit deendayal par journalist sanjay dwivedi's special book

महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय। भारत में राष्ट्रवाद, व्यक्तित्व, चिंतन, त्याग और तप का एक महान और आदर्श चरित्र। अगर यूं कहें कि देश में जो भारतीय जनता पार्टी है, उसकी विचारधारा से जुड़े समाज का निर्माण करने के पीछे पंडित दीनदयाल उपाध्याय हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। भाजपा अन्य राजनीतिक दलों से जिस तरह अलग दिखती है, उसमें इस महामानव की राष्ट्रवाद जनित तपस्या है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संघर्ष और सपने के प्रतिफल में भारतीय जनता पार्टी आज देश का सबसे बड़ा राजनीति दल बन चुकी है। देश में टाउन एरिया, नगर पालिकाओं, नगर निगमों और राज्यों में अपनी सरकारें बनाते हुए आज केंद्र की सत्ता में भी पूर्ण बहुमत के साथ उसका कमल खिला है।
राजनीतिक पंडित हमेशा संभावना व्यक्त करते हैं कि यदि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या नहीं की गई होती तो आज भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ और होता। पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रेष्ठ लेखक, पत्रकार, विचारक, प्रभावी वक्ता और प्रखर राष्ट्रभक्त थे। सादा जीवन उच्च विचार के वे सच्चे प्रतीक थे। उन्होंने शुचिता की राजनीति के कई प्रतिमान स्थापित किए। उनकी प्रतिभा देखकर ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यदि मेरे पास एक और दीनदयाल उपाध्याय होता तो मैं भारतीय राजनीति का चरित्र ही बदल देता। ऐसे राष्ट्रनायक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की इस वर्ष जन्मशती प्रारंभ हो रही है। उन्होंने भारत वर्ष को मानव समाज की पश्चिम की सभी परिकल्पनाओं को नकारते हुए 'एकात्म मानववाद' जैसा अद्भुत और पूर्ण दर्शन दिया और जिया। यह वर्ष 'एकात्म मानवदर्शन' का स्वर्ण जयंती वर्ष भी है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 100वीं जयंती अगले माह 25 सितंबर 2015 से अगले वर्ष 2016 तक मनाई जाने वाली है। भाजपा तो उनपर सालभर कार्यक्रम करेगी ही देश के अन्य सामाजिक संगठन और लेखक, विचारक भी उनके विचारदर्शन पर मनन-चिंतन और व्याख्यान करने वाले हैं। ऐसे महत्वपूर्ण समय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के समग्र जीवन पर 'भारतीयता का संचारक, पंडित दीनदयाल उपाध्याय' नाम से राजनीतिक विचारक संजय द्विवेदी की महत्वपूर्ण पुस्तक सामने आई है।
पुस्तक खास है, इसलिए उसकी चर्चा यहां बड़ी प्रासंगिक है। पुस्तक का भाव है कि लंबे समय तक की गुलाब-जामुन के इर्द-गिर्द पसरी चासनी से पलते-बढ़ते वामपंथियों ने प्रोपेगंडा फैलाकर भारतीय जनता पार्टी और उसकी विचारधारा को 'राजनीतिक अछूत' की श्रेणी में रखा हुआ था। अकादमिक संस्थाओं और संचार के संगठनों में अपनी गहरी पैठ के कारण उन्होंने भारतीय जनता की राष्ट्रवादी और सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ तरह-तरह के षड्यंत्र अंजाम दिए। इन्हीं षड्यंत्रों को ध्वस्त करने का कठिन काम पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने किया। यह भी सच है कि संचार माध्यमों पर वामपंथियों के एकाधिकार के कारण ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय और उनके विचार को उतना विस्तार नहीं सका, जितना मिलना चाहिए था। वह समय अब आया है जिसकी सच्चाई देश के विभिन्न पंथों और विचारों के लोग स्वीकार कर रहे हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का असल मूल्यांकन अब हो रहा है। पुस्तक कहती है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आग्रह पर दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक जीवन से राजनीति में भेजे गए थे। उन्होंने भारतीय राजनीति को एक दर्शन दिया, एक नया विचार दिया और एक नया विकल्प दिया।
राष्ट्रवादी विचारधारा के मजबूत स्तंभ बने पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मानव जीवन के संबंध में दुनिया में प्रचलित परिकल्पनाओं की अपेक्षा कहीं अधिक संपूर्ण दर्शन दिया। पुस्तक ने उल्लेख किया है कि वामपंथियों के ढकोसलावादी सिद्धांतों की अपेक्षा पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन बहुत व्यावहारिक था। यही कारण है कि विरोधी विचारधाराओं के तमाम अवरोधों के बाद भी एकात्म मानवदर्शन ने लोक मान्यता हासिल की। इसमें संपूर्ण जीवन की एक रचनात्मक दृष्टि है, इसमें भारत का अपना जीवन दर्शन है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को टुकड़ों में नहीं, समग्रता में देखता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने दर्शन में बताते हैं कि मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर इन चारों का मनुष्य में रहना आवश्यक है, इन चारों को अलग-अलग करके विचार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, जब दीनदयाल उपाध्याय के विलक्षण व्यक्तित्व एवं उनके विचारदर्शन की व्यापक चर्चा का अवसर आया है तो राजनीति, मीडिया और जनसंचार के अध्येताओं को उनके संबंध में अधिक से अधिक संदर्भ सामग्री की आवश्यकता को यह किताब पूरी करते हुए दिखती है।
संजय द्विवेदी ने पुस्तक में 'भारतीयता का संचारक' राजनीतिज्ञों, संचारवृत्तिज्ञों और लेखकों की बौद्धिक भूख को कुछ हद तक शांत करने की कोशिश की है। पुस्तक को चार खंडों में बांटकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के समग्र व्यक्तित्व का उन्होंने आंकलन किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ख्याति विश्व को एकात्म मानवदर्शन का चिंतन देने और भारतीय जनता पार्टी के विचार-पुरुष के रूप में हैं। भारतीय राजनीति में उनके अवदान से फिर भी दुनिया भली-भांति परिचित है, लेकिन, पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में उनके योगदान को बहुत कम विद्वान जानते हैं। पुस्तक के पहले खंड में उनके विचार दर्शन पर चर्चा है, दूसरे खंड में उनके संचारक, लेखकीय और पत्रकारीय व्यक्तित्व पर विमर्श है, तीसरे खंड 'दस्तावेज' में डॉ सम्पूर्णानंद, श्रीगुरुजी और नानाजी देशमुख की उन पर लिखी-बोली गई सामग्री संकलित की गई है। इसी हिस्से में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दो महत्वपूर्ण लेख भी शामिल किए गए हैं, जिनमें से एक भाषा पर है तो दूसरा पत्रकारिता पर है। चौथे अध्याय में एकात्म मानववाद को प्रवर्तित करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के व्याख्यान संकलित किए गए हैं। पुस्तक का प्रस्तुतिकरण बहुत अच्छा है और संजय द्विवेदी की कलम से आप वाकिफ़ ही हैं-शानदार लिखते हैं, इसकी भी छाप इस किताब में नज़र आती है।
पुस्तक के दूसरे अध्याय से गुजरते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय की छवि 'भारतीयता के संचारक' के नाते सदैव के लिए अंकित हो जाती है, इस हिस्से में बताया गया है कि कैसे और किन परिस्थितियों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय विचार के प्रचार-प्रसार के लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया। संचार के माध्यमों पर वामपंथियों के कब्जे के बीच उन्होंने राष्ट्रवादी विचार को लोगों तक पहुंचाने के लिए स्वदेश, राष्ट्रधर्म और पाञ्चजन्य की शुरूआत की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कंपोजीटर से लेकर संवाददाता तक की भूमिका निभाई थी, इस अध्याय में देखने को मिलता है कि कैसे उन्होंने पत्रकारिता के सिद्धांतों की स्थापना की थी। पुस्तक दूसरे क्षेत्रों में भी उनके चिंतन के दर्शन कराती है। निश्चित ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आर्थिक चिंतन के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी उनके गहरे चिंतन की जानकारी हमें इससे मिलेगी। वे संभवत: पहले राजनेता रहे हैं, जिनके चिंतन का केंद्र अंतिम आदमी है। आदमी की बुनियादी जरूरतों के बारे में उन्होंने जिस गहराई से विचार किया, वहां तक भी पहले कोई नहीं पहुंचा था।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने जीवन में अधिक व्यावहारिक धरातल पर उतरते हुए कहते हैं कि प्रत्येक अर्थव्यवस्था में न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की गारंटी एवं व्यवस्था अवश्य रहनी चाहिए। न्यूनतम आवश्यकताओं में वे रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि उससे आगे जाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को भी सम्मिलित करते हैं। बहरहाल, अंत्योदय का विचार देने वाले राष्ट्रऋषि दीनदयाल उपाध्याय पर उनके जन्मशती वर्ष में एक संपूर्ण पुस्तक देना वास्तव में शोधार्थियों, राजनीतिज्ञों, पत्रकारों और लेखकों के लिए महत्वपूर्ण है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पुस्तक के बहाने पंडित दीनदयाल उपाध्याय का बिना किसी अवरोध-विरोध के ईमानदारी से विश्लेषण किया जा सकेगा। उनके समग्र व्यक्तित्व का दर्शन कराने में यह पुस्तक सफल दिखती है, आपका क्या कहना है?
(पुस्तक-भारतीयता का संचारक : पंडित दीनदयाल उपाध्याय (संपादक-संजय द्विवेदी) मूल्य : 500 रुपये (सजिल्द संस्करण), पृष्ठ : 324, प्रकाशक-विज़्डम पब्लिकेशन, सी-14, डी.एस.आई.डी.सी. वर्क सेंटर, झिलमिल कॉलोनी, शाहदरा, दिल्ली-110095)।

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