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'राजनीति से संस्कृति का बड़ा नुकसान'

चौदहवां आचार्य निरंजननाथ सम्मान समारोह

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Friday 18 January 2013 06:35:47 AM

acharya nirnjannath ceremony

राजसमंद। आज साहित्य और राजनीति के संबंधों को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत आ गई है, जहां साहित्य संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतिनिधि है, वहीं राजनीति, संस्कृति का नुकसान किये बगैर आगे नहीं बढ़ती, पतनशीलता के ऐसे दौर में अभिधा से काम चल ही नहीं सकता, इसीलिए जब शब्द कम पड़ने लगते हैं, तब शब्दों को मारना पड़ता है, ताकि नए शब्द जन्म ले सकें। ये विचार अणुव्रत विश्व भारती राजसमंद में पुरस्कृत साहित्यकार असग़र वजाहत ने आचार्य निरंजननाथ स्मृति सेवा संस्थान तथा साहित्यिक पत्रिका 'संबोधन' के अखिल भारतीय सम्मान समारोह में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ माल्यार्पण, गोपाल कृष्ण खंडेलवाल की सरस्वती वंदना, शेख अब्दुल हमीद की ग़ज़ल तथा मधुसूदन पांड्या के स्वागत भाषण से हुआ। सम्मान समिति के संयोजक क़मर मेवाड़ी ने आचार्य निरंजननाथ सम्मान की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सम्मान का उद्देश्य आचार्य साहब के साहित्यिक अवदान को स्मरण करते हुए हिंदी साहित्य की रचनात्मक ऊर्जा को रेखांकित करना है।
मुख्य अतिथि विख्यात साहित्यकार एवं 'समयांतर' पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि भारतीय समाज की उन आधारभूत विसंगतियों को असग़र वजाहत का लेखन सहजता से अभिव्यक्त करता है, जिन्हें हम जातिवाद, असमानता और दमन के रूप में जानते हैं, उनकी रचनाएं अपनी विषयवस्तु में ही नहीं बल्कि प्रस्तुतीकरण में भी भिन्न हैं, मुस्लिम समाज के बहाने उनकी रचनाएं सांप्रदायिक और प्रतिक्रियावादी होते भारत पर गंभीर टिप्पणी है, हिंदी कहानी को नया मुहावरा देने वाले असग़र वजाहत के नाटक और फिल्म के क्षेत्र में उनके मौलिक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
समारोह में असग़र वजाहत को उनके कहानी संग्रह 'मैं हिंदू हूँ', युवा आलोचक पल्लव को उनकी पुस्तक 'कहानी का लोकतंत्र' तथा आलोचक डॉ सूरज पालीवाल को उनके समग्र साहित्यिक अवदान के लिए मधुसूदन पांड्या ने शाल एवं श्रीफल, मुख्य अतिथि पंकज बिष्ट ने प्रशस्ति पत्र, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास ने प्रतीक चिन्ह तथा सम्मान समिति के अध्यक्ष कर्नल देशबंधु आचार्य ने सम्मान राशि भेंट कर सम्मानित किया। पल्लव ने अपने आलोचना कर्म को सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ते हुए कहा कि उनका लेखन लघु पत्रिकाओं का ही लेखन है। डॉ सूरज पालीवाल ने अपनी रचना प्रक्रिया बताते हुए कहा कि अपने लोगों के बीच सम्मानित होना सबसे बड़ा सम्मान है। अध्यक्षता कर रहे राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास ने कहा कि आचार्य निरंजननाथ सम्मान 'संबोधन' जैसी लघु पत्रिका के माध्यम से दिया जाने वाला देश का सबसे बड़ा एवं प्रतिष्ठित पुरस्कार है। इस पुरस्कार के लिए कर्नल देशबंधु आचार्य की हिंदी साहित्य के प्रति समर्पण की भावना अभिव्यक्त होती है।
समारोह में सदाशिव श्रोत्रिय, डॉ कनक जैन, हरिदास दीक्षित, त्रिलोकी मोहन पुरोहित, यमुना शंकर दशोरा, माधव नागदा, जीतमल कच्छारा, अफजल खां अफजल, बालकृष्ण गर्ग 'बालक', राधेश्याम सरावगी, नारुलाल बोहरा, सुरेशचंद्र कावड़िया, भंवर वागरेचा, देवेंद्र कुमार आचार्य, किशन कबीरा, भंवरलाल पालीवाल 'बॉस', एम डी कनेरिया, इश्वर चंद्र शर्मा, मनोहर सिंह आशिया, जवान सिंह सिसोदिया, दिनेश श्रीमाली, राजकुमार दक, कल्याण सिंह, पंडित उमाशंकर दाधीच एवं नगेंद्र मेहता की महत्वपूर्ण भागीदारी रही। कार्यक्रम का संचालन नरेंद्र निर्मल ने किया और कर्नल देशबंधु आचार्य ने भावी योजना पर प्रकाश डालते हुए सभी का आभार प्रकट किया।

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