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हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की सालगिरह

Tuesday 15 January 2013 07:55:58 AM

डॉ कन्हैया त्रिपाठी

डॉ कन्हैया त्रिपाठी

profesor gajbhiye

सागर, मध्य प्रदेश। प्रोफेसर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की स्थापना 18 जुलाई 1946 को हुई थी और 15 जनवरी 2009 को इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिला। यह विश्वविद्यालय आज अपनी केंद्रीय विश्वविद्यालय की मान्यता की चौथी सालगिरह मना रहा है। यदि अमरकंटक के अनुसूचित जनजातीय विश्वविद्यालय को छोड़ दिया जाए तो यह मध्य प्रदेश का इकलौता ऐसा केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिसके ऊपर मध्य प्रदेश की संपूर्ण युवा आबादी को उच्च शिक्षा देने-दिलाने की जिम्मेदारीहै। जरूरत को देखते हुए कायदे से मध्य प्रदेश की जनसंख्या के अनुसार यहां पर कम से कम दस केंद्रीय विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है, तब कहीं जाकर यहां के लोग शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे।
डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिलने के साथ एक विजनरी कुलपति भी मिला, एक ऐसा कुलपति जो डॉ गौर के सपनों को साकार करने में एक कामयाब कुलपति के रूप में देखे जा रहे हैं। प्रोफेसर गजभिये न केवल रसायनशास्त्र के जाने माने प्रोफ़ेसर हैं, बल्कि उनका नैनो टेक्नोलॉजी में बहुत ही जबरदस्त हस्तक्षेप भी है। वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पूर्व डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में अराजक स्थितियां थीं,अब उनका लगभग अंत हो चुका है। कभी यहां दलित, आदिवासी और हासिये पर खड़े शिक्षा से वंचित छात्र आज उत्कृष्ट वातावरण विकसित होने के कारण उच्च शिक्षा में अपना नाम पैदा कर रहे है। यहां उनकी शैक्षणिक अभिरुचि और संख्या में इजाफा देखा जा सकता है। यदि उच्च शिक्षा में लड़कियों की संख्या में बढ़ोत्तरी को देखा जाए तो यह बहुत ही भारी परिवर्तन है।
विगत चार वर्ष में अनुशासन, शैक्षणिक बदलाव, प्रबंधन, निर्देशन, जागरूकता और गुणवत्ता में व्यापक परिवर्तन न केवल इस विश्वविद्यालय की उपलब्धि हैं, बल्कि मध्य प्रदेश के मानव विकास सूचकांक की बढ़ोत्तरी का संकेत है। डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय मे भवन निर्माण, छात्रावास का निर्माण जहां प्रगति पर है, वहीं इस विश्वविद्यालय में लगभग ग्यारह विद्यापीठों की स्वीकृति और उसका सुव्यवस्थित संचालन हो रहा है। विगत कुछ वर्षों में दूसरे देशों के विश्वविद्यालयों से समझौतों ने भी इसका कद अंतर्राष्ट्रीय बना दिया है। डॉ गौर का सपना था कि बुंदेलखंड के लोग शिक्षित होकर देश-विदेश में अपना करें। उन्होंने सिद्ध किया है कि अपना सामाजिक संदर्भ शाश्वत रखना है तो हमें अपने कर्तव्यों के प्रति नैतिक होना होगा।

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