स्वतंत्र आवाज़
word map

गोआ फिल्मोत्सव में कश्मीरी प्रतिभाओं का कमाल

तारिक ए राथेर

Thursday 26 December 2013 12:45:33 AM

goa festival

पणजी। भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (इफ्फि) का 44वां संस्करण कश्मीरी फिल्म निर्माताओं के लिए आश्चर्यजनक मंच सिद्ध हुआ। समारोह ने उन्हें न केवल घरेलू बल्कि अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के समक्ष अपनी रचनाशीलता प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान किया। बीस नवंबर को प्रारंभ हुए 11 दिन के फिल्मोत्सव के दौरान कश्मीरी फिल्म निर्माताओं की तीन गैर फीचर फिल्में प्रदर्शित की गईं। एक अन्य कश्मीरी फिल्म निर्माता के असोसिएट डायरेक्टर के रूप में काम करते हुए बनाई गई 90 मिनट अवधि की अफगान-भारत फिल्म ‘ए मैंस डिज़ायर फार ए फिफ्थ वाइफ’, समारोह में ‘विश्व सिनेमा वर्ग’ के अंतर्गत शामिल की गई। यह फिल्म दरी भाषा में बनाई गई है।
इफ्फि-2013 में प्रतिष्ठित भारतीय पैनोरमा-गैर फीचर फिल्म वर्ग के अंतर्गत स्थान पाने वाली 3 कश्मीरी फिल्मों में राजा शबीर खान की ‘शेफड्र्स आफ पैराडाइज़’, राजेश एस जाला निर्मित ‘23 विंटर्स’ और शाजिया खान की ‘समां: मुस्लिम मिस्टीक म्युजिक आफ इंडिया’ शामिल है। शेफड्र्स आफ पैराडाइज़, गोजरी और उर्दू में बनाई गई 50 मिनट की फिल्म है, जिसमें 75 वर्षीय गफूर की कहानी है। वह एक ग्वाला (गुज्जर-बकरवाल समुदाय) है, जो अपने परिवार और भेड़ों के समूह के साथ गर्मी के मौसम में जम्मू कश्मीर के मैदानी भागों से लेकर कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों की पैदल यात्राएं करता है और सर्दी के मौसम में वापस लौटता है। कठिन भू-भाग, अपूर्वानुमेय मौसम और कश्मीर में गड़बड़ी की स्थितियां उसकी यात्रा को जोखिमपूर्ण बना देती हैं। यह फिल्म समारोह में दो बार दिखाई गई।
इस फिल्म को 3 मई 2013 को आयोजित 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के दौरान ‘स्वर्ण कमल’ (गोल्डन लोटस) पुरस्कार, एक प्रमाणपत्र और 1.50 लाख रुपये नकद पुरस्कार के रूप में दिए गए थे। इसे मराठी फिल्म ‘काताल’ के साथ संयुक्त रूप से सर्वोत्कृष्ट सिनेमेटोग्राफी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। फिल्म के निर्देशक राजा शबीर का कहना है कि कठिन प्रदेश, खराब मौसम, लंबी यात्रा और सीमित संसाधनों को देखते हुए फिल्म का निर्माण करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था। फिल्म की शूटिंग बिना कार्मिकों के की गई और मुझे स्वयं ग्वाले के साथ करीब 300 किलोमीटर लंबे परंपरागत पर्वतीय रास्तों पर पैदल चलना पड़ा। कश्मीर विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और इतिहास में पढ़ाई पूरी करने के बाद राजा शबीर खान ने 2003 में कोलकाता में सत्यजित रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एसआरएफटीआईआई) में दाखिला लिया और बाद में वे एक वर्ष के लिए मुंबई चले गए। उनकी पहली डाक्यूमेंटरी फिल्म, ‘ऐंजल्स ऑफ ट्रबल्ड पैराडाइज़’ को सिलिगुड़ी में लघु और डाक्यूमेंटरी फिल्मों के तीसरे अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव के दौरान जूरी के विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कश्मीरी और हिंदी में बनी 25 मिनट की फिल्म ‘23 विंटर्स’ को इफ्फि में दो बार दर्शाया गया। इसमें एक ऐसे मनोरोगी कश्मीरी पंडित की काल्पनिक कहानी है, जो कई वर्षों तक दिल्ली में रहने के बाद घाटी की यात्रा करता है। वास्तविक रूप में सेट की गई यह फिल्म एक वास्तविक नायक, बोटा अभिनीत है, जो एक अति यथार्थवादी जीवन जी रहा है। फिल्म में उसके त्रासदीपूर्ण अतीत को दर्शाया गया है, जो उसके वर्तमान निर्वासित जीवन को परेशान करता है, फिर भी फिल्म में यह दर्शाया गया है कि इस सबके बावजूद उसकी उम्मीदें बरकरार रहती हैं। राजेश एस जाला के अनुसार वे 11 वर्ष से फिल्में बना रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से डाक्यूमेंटरी शामिल हैं। वे अपनी फिल्मों में मानवीय भावनाओं, सामाजिक सरोकारों और अंतर-निहित संघर्षों को उजागर करते हैं। उन्होंने प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय टीवी चैनलों के लिए अनेक डाक्यूमेंटरी फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया है।
‘समां: मुस्लिम मिस्टीक म्यूजिक आफ इंडिया’ इफ्फि में एक बार प्रदर्शित की गई यह 52 मिनट की हिंदी और अंग्रेजी फिल्म है। इसमें भारत में मुस्लिम संगीत परंपरा को तलाशने और यह उजागर करने का प्रयास किया गया है कि दोनों ने एक दूसरे को कैसे प्रेरित और प्रोत्साहित किया है। फिल्म में उस संबंध की खोज की गई है, जो साधक को रचनाकर्ता के साथ तादात्मय स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है। साधक कलाकार समां बांधने के कारण शांति, धीरता और आनंद की अनुभूति करता है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी सलीम खान, शाजिया खान और मोहम्मद यूनस ज़रगार ने की है। निलोफर शमा उत्तर कश्मीर में बारामूला से संबद्ध हैं, जिन्होंने ‘ए मैंस डिज़ायर फार ए फिफ्थ वाइफ’ के लिए असोसिएट डायरेक्टर के रूप में काम किया है। इस फिल्म का निर्देशन और पटकथा लेखक इसके प्रमुख अभिनेता मोहम्मद सेदिक आबेदी ने किया है, जिनके पास अफगानिस्तान स्थित जिहूम फिल्म एंड आल्तिन फिल्म कंपनीज़ में काम करने का 19 वर्ष का व्यावसायिक अनुभव है।
फिल्म की कहानी में हजार वर्ष पुरानी एक रस्म को दर्शाया गया है, जो उत्तरी अफगानिस्तान के एक गांव में अदा की जाती है। इसमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कहानी उजागर की गई है। पहले से चार पत्नियां रखने के बावजूद एक पुरुष प्राचीन परंपराओं के साथ पांचवीं बार शादी करना चाहता है। कहानी में यह दर्शाया गया है कि समाज में महिलाएं कितनी कमजोर और शोषित हैं। इसमें सदियों पुरानी संस्कृति के सभी घटक दर्शाए गए हैं। मीडिया से बातचीत के दौरान फिल्म में तीसरी पत्नी की भूमिका अदा करने वाली ताजीकिस्तान की अभिनेत्री निलोफर शमा ने तहमिना राजा बोआ के साथ बातचीत में कहा कि उन्होंने अपना करियर दूरदर्शन के साथ एक स्वतंत्र निर्माता-निर्देशक के रूप में किया था। वे 70 से अधिक वृत्तचित्रों, 85 टीवी धारावाहिकों, 5 विज्ञापन फिल्मों, 5 टेलीफिल्मों और 5 लघु फिल्मों एवं अनेक टॉक शो का निर्देशन कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि अफगान फिल्म के लिए काम करना उनके लिए भय, उत्साह और साहस की मिलाजुली अनुभूति रही है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]