स्वतंत्र आवाज़
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जागो, जागो, भोर हुआ है!

जगदीशचन्द्र शर्मा

प्यारे बच्चो! जाओ, जाओ, बड़ा सुहाना भोर हुआ है।
दिग्मंडल में बाल-विहंगों के गीतों का शोर हुआ है।
लो, पूरब से रवि ने अपनी कंचन-सी किरणें बिखराई।
मधु-पराग से भरी हुई नन्हीं-नन्हीं कलियां मुस्काई।
मुस्काया धरती का कण-कण, मुस्काई नूतन आशाएं।
जन-जन के मन में जागी हैं स्नेहमयी नव-अभिलाषाएं।
तुम भी जगती के आंगन में जी भर कर उल्लास बहाओ।
सबकी जीवन-फुलवाड़ी में प्यार भरा विश्वास जगाओ।
प्यारे बच्चों! जाओ, जाओ, बड़ा सुहाना भोर हुआ है।
दिग्मंडल में बाल-विहंगों के गीतों का शोर हुआ है!

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