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चालाक लोमड़ी

नरेश प्रकाश

एक गड़रिये के पास बहुत-सी भेड़ें थीं। वह उन्हें सबेरे ही जंगल में चराने ले जाता था। शाम को घर लौटने पर उन्हें गिने बगैर वह खाना न खाता था। इसीलिए जब भी कोई भेड़ इधर-उधर भटक जाती तो वह उसे झट खोज लाता।
इसी तरह दिन बीत रहे थे। एक शाम को उसे पता चला कि उसकी भेड़ों में से तीन कम हैं। उसके माथे पर पसीना आ गया। उसने जंगल का कोना-कोना छान मारा, पर कहीं भी उसे भेड़ें नहीं मिलीं। बेचारा रात को बिना खाये ही सो गया। सबेरे वह फिर अपनी भेड़ों को लेकर जंगल में गया। शाम को भेड़ें गिनीं, तो फिर दो गायब। इसी तरह धीरे-धीरे भेड़ें कम होने लगीं।
गड़रिये ने भेड़ों के चोर को पकड़ने के लिए तरकीबें सोचनी शुरू कीं। कई दिन तक वह सोचता रहा, पर कुछ समझ में नहीं आया। एक दिन वह धूप में आंड़ू के पेड़ के नीचे बैठा था। अचानक उसका ध्यान पेड़ की ओर गया। उसने देखा कि पेड़ की शाखाओं पर बहुत सा गोंद इकट्ठा है और उधर से जो चींटियां आती-जाती हैं, चिपक जाती हैं। देर तक वह इस खेल को देखता रहा, फिर उसने उठकर अपनी उंगली पेड़ के गोंद में चिपका दी।
खुशी के मारे गड़रिया ऐसा उछला कि उंगली अलग हो गई। वह दौड़ा-दौड़ा घर गया। वहां से खुरपी और थाली ले आया। खुरपी से खुरच-खुरच कर उसने काफी गोंद इकट्ठा कर लिया। घर आकर उसने उस दिन भर पेट खाना खाया और गहरी नींद में सोया। सबेरे उठकर उसने गोंद की एक जीती-जागती सी भेड़ बनाई। अगले दिन उसे जंगल में ले गया और उसे उस जगह जाकर रख दिया जहां पर उसको चोर के आने की आशा थी। खुद पेड़ के पीछे छिप गया। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि एक लोमड़ी गोंद की भेड़ से चिपकी चिल्ला रही है।
गड़रिये ने लोमड़ी को मारने की सोची तो लोमड़ी ने कहा कि यदि तुम मुझे मारना ही चाहते हो तो मुझे जिंदा जला दो। ऐसा करने से मेरी मिट्टी खराब न होगी और तुम अपना बदला भी ले लोगे।

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