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साहित्य को लेकर साहित्यकारों में चिंताएं

'वर्तमान समय और युवा साहित्य' विषय पर सम्मेलन

रेवतीरमण शर्मा

Friday 4 October 2013 08:59:59 AM

rajasthan sahitya academy

अलवर-राजस्‍थान। राजस्थान साहित्य अकादमी तथा बीएस मेमोरियल शिक्षा समिति के संयुक्त तत्वावधान में अलवर में ‘वर्तमान समय और युवा साहित्य’ विषय पर साहित्यकार सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त कर इस बात पर चिंता प्रकट की कि साहित्य को भ्रष्ट बनाया जा रहा है, उसे केंद्रीयकृत कर दिया गया है, जबकि इसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं है। सम्मेलन में और भी चिंताएं दिखाई दीं, जिनमें स्तरीय साहित्य पर भी विचार आए और रचनाकारों की भावी पीढ़ी से अपेक्षा की गई कि वह स्तरीय साहित्य लेखन और हिंदी साहित्य में शोध पर काम करे।
अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास ने कहा कि बाज़ारवाद से काफी नुकसान हो रहा है उसने समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए मूल तक पहुंच कर उन्हें समाप्त करने की कोशिश करने वाले लेखन की कमर तोड़ दी है। दिल्ली से आए कथाकार भगवानदास मोरवाल ने कहा कि साहित्य में दलाल संस्कृति पैदा हो गई है, जिसके कारण आलोचना के सामने चुनौतियां बढ़ी हैं। बनासजन के संपादक पल्लव ने कहा कि साहित्यकारों ने दिल्ली को साहित्य का केंद्र मान लिया है, जबकि हिंदी की रचनाशीलता कहीं अधिक व्यापक है।उन्होंने इधर के परिदृश्य में आई कुछ उल्लेखनीय किताबों की चर्चा करते हुए कहा कि इस दौर में राजस्थान के लेखकों ने भी खासी पहचान बनाई है। युवा लेखिका डॉ प्रज्ञा ने कहा कि खोखला लोकतंत्र साहित्य के लिए खतरा बन रहा है। इसकी जन विरोधी नीतियों की खिलाफत करने पर दमन कर दिया जाता है। डॉ प्रज्ञा ने युवा लेखन में गहरे वैचारिक सरोकारों की जरूरत बताई। वर्धा से आए समालोचक प्रोफेसर शंभू गुप्त ने कहा कि आचरण को लेकर बहस हो तो साहित्य जगत से आधा साहित्य निकालना होगा। उन्होंने कहा कि हर दससाल बाद साहित्य की पीढ़ी बदल जाती है, ऐसे में युवा विशेषण की अधिक प्रासंगिकता नहीं रह जाती।
समालोचक डॉ जीवन सिंह ने कहा कि जीवन में अनुभवों की परिपक्वता आने पर ही लेखक युवा होता है, अनुभव की कमी के बिना युवा लेखक वास्तविकता के करीब नहीं पहुंच पाते हैं, लेखक के परिपक्व होने पर ही साहित्य का युवापन शुरू होता है, फिर भी युवा लेखक अच्छा लेखन कर रहे हैं। चितौड़गढ़ से आए युवा लेखक डॉ कनक जैन ने कहा कि वर्तमान दौर में साहित्य गौण हो गया है, युवा लेखकों को यह समझते हुए अपनी भूमिका को प्रभावी बनाना होगा। कार्यक्रम में राजकीय महाविद्यालय गोविंदगढ़ की प्रवक्ता डॉ जयश्री ने भी विचार व्यक्त किए। सम्मेलन की अध्यक्षता प्रोफेसर जुगमंदिर तायल ने की और संचालन संयोजक रेवती रमण शर्मा व जगदीश शर्मा ने किया। विषय परिर्वतन डॉ नंद किशोर नीलम ने किया।

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