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झूठे और फरेबियों से घिरीं मायावती !

भ्रष्टाचार और नैतिक पतन ने खत्म किए दावे

दिनेश शर्मा

मायावती और जूलियन असांजे/ mayawati-julian assange

नई दिल्ली। विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे पर टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में भयानक हमले करने के बाद, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और उनकी 'सलाहकार मंडली' ने आश्चर्यजनक चुप्पी साध ली है। विकीलीक्स के एक खुलासे के सामने औंधे मुंह गिरी मायावती, इस पूरे मामले की सच्चाई जान चुकी हैं। गरजने और बंदर घुड़की के अलावा उनमें विकीलीक्स को एक कानूनी नोटिस भेजने का भी साहस नहीं बचा है। मायावती को नहीं मालूम था कि उनकी रसोई से लेकर उनके घर और मुख्यमंत्री कार्यालय तक की, उन्हीं के 'खास लोग' बड़ी ख़तरनाक 'मुखबिरी' कर रहे हैं। मायावती को प्रधानमंत्री का सब्जबाग दिखाने वाले और दूसरों के सामने उनके दावे को असंभव बताने वालों की जब पोल-पट्टी खुली तो पूरे देश ने देखा कि वे किस कदर बौखलाए। यूं तो मायावती के आस-पास के 'भरोसेमंदों' की सत्यनिष्ठा और वफादारी पर शुरू से ही अनेक गंभीर प्रश्न खड़े हैं, लेकिन विकीलीक्स के खुलासे ने यह सप्रमाण साबित कर दिया है कि मायावती कुछ झूठे, फरेबी और गद्दार किस्म के अयोग्य लोगों से घिरी हुई हैं, जोकि उनके निजी और राजनीतिक कॅरियर के लिए अत्यंत घातक माने जाते हैं।
उस दिन मायावती से मीडिया के सामने फिर झूठ और बेतुका प्रलाप कराया गया। विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे के खिलाफ सत्यानाशी सलाहकारों ने मायावती से लिखा हुआ उत्तेजनात्मक 'आरोप पत्र' पढ़वाया। यह इस बात का प्रमाण है कि मायावती के 'श्रीमुख' से किस प्रकार की बातें कहलावाई जाती हैं और कौन कहलवाते हैं। मायावती को मीडिया पर पूरे देश ने देखा होगा कि वह जूलियन असांजे के खिलाफ किस तरह उकसाई और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल कर रही थीं। उस समय उन्हें न किसी बड़े पद पर बैठे होने की मर्यादा का भान था और न तथ्यों की कोई जानकारी थी। वे भूल गईं थीं कि वे मुलायम सिंह यादव, समाजवादी पार्टी या अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ नहीं, बल्कि अमरीका के विदेश मंत्रालय या अमरीकी राजदूत के खिलाफ बोल रही हैं, उन्हें कुछ भी शिकायत है, तो उसे वे अमरीकी प्रशासन के सामने रखें। मायावती भूल गईं कि अमरीकी प्रशासन भारत सरकार के नियंत्रण में नहीं है, वे भूल गईं कि अमरीकी प्रशासन कोई भारतीय नेता, मंत्री या हुकमरान नहीं हैं, जिनकी अमरीकी हवाई अड्डों पर उतरते ही, कपड़े उतरवा कर तलाशी ली जाती है और इस मामले में भारत और भारतीयों की एक भी नहीं सुनी जाती है, वह अमरीका है, जो मायावती या शशांक शेखर सिंह जैसों की तो कोई परवाह ही नहीं करता है।

अमरीकी दूतावास से अमरीकी विदेश मंत्रालय को वर्ष 2007 से 2009 के बीच भेजे गए संदेशों में भारत के नेताओं, नौकरशाहों, विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट और गणमान्य कहे जाने वाले लोगों के संबंध में कई ऐसी दिलचस्प और शर्मनाक जानकारियां हैं, जो आमतौर पर भारत में लोगों को पता नहीं हैं। दस्तावेज़ में मायावती के धन एकत्रित करने के तरीक़ों से लेकर उनके अभद्र व्यवहार की भी चर्चा है। अमरीकी कूटनीतिक पत्राचारों में मायावती को एक बहुत 'भ्रष्ट' और 'अहंकारी' नेता कहा गया है। मायावती के वकील सतीश चंद्र मिश्र की ओर से पत्राचार में कहा गया है कि मुख्यमंत्री मायावती पर प्रधानमंत्री बनने की धुन सवार है, जबकि उनके कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह के हवाले से कहा गया है कि मायावती कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकतीं...। विकीलीक्स वेबसाइट के माध्यम से यह पत्राचार दुनिया के सामने आने के बाद, मुख्यमंत्री मायावती ने मीडिया से बड़े ग़ुस्से में कहा था कि विकीलीक्स का मालिक या तो पागल हो गया है, या फिर हमारे राजनीतिक विरोधियों के हाथों में खेल कर हमारी पार्टी की छवि को धूमिल करने के लिए इस किस्म की शरारतें कर रहा है, मायावती ने कहा कि विकीलीक्स के मालिक के देश की सरकार से मैं आग्रह करती हूं कि उन्हें पागलखाने भेज दिया जाए और यदि वहां के पागलखाने में जगह न हो तो मैं उन्हें अपने यहां आगरा के पागलखाने में भर्ती करने के लिए तैयार हूं।
मायावती के इस बयान पर जूलियन असांजे ने कहा था कि यह पत्राचार अमरीकी कूटनयिकों और अमरीकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के बीच हुआ है और ये कोई फ़र्जी नहीं हैं, मायावती को जो शिकायत है, उसके लिए उनको अमरीकी सरकार से संपर्क करना चाहिए और वे उनसे अपने कहे पर माफ़ी मांगें, लेकिन मायावती ने माफी नहीं मांगी और ना ही अमरीकी सरकार ने इस पत्राचार का आजतक कोई खंडन ही किया है। मायावती ने ऐलानियां कहा था कि वे अपने इन विश्वासपात्रों को अब और भी ज्यादा जिम्मेदारियां देंगी, लेकिन मायावती ने अभी तक अपनी यह बात पूरी नहीं की, जिससे लगता है कि उस समय मायावती यह सब तैश में बोली थीं। उन्हें यह एहसास हो गया है कि उनके लोगों ने वास्तव में वह सब जरूर बोला है, मगर वे मजबूर हैं और कुछ कर नहींसकतीं, क्योंकि सामने कोई विकल्प नहीं है।
मायावती ने सच्चाई जानकर अब इस मामले पर चुप्पी साध ली है, वैसे भी मायावती अपने चारों ओर कसे ऐसे घेरे से कोई भी पंगा लेने की स्थिति में नहीं हैं। मायावती के सारे कच्चे चिट्ठे और उनकी कॉपियां उनके वकील सतीश चंद्र मिश्रा के पास हैं और उनके हेलीकाप्टर एवं विमान, उनके कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह एवं उनके विश्वासपात्र पायलट्स के कब्जे मे हैं, इसलिए मायावती के लिए क्या अन्य कोई सुरक्षित रास्ता है? इसका प्रमाण भी मायावती ने मीडिया के सामने सार्वजनिक कर दिया, जिस दिन पूरी बौखलाहट और हड़बड़ाहट मे वे इन दोनों 'रत्नों' को और ज्यादा पद एवं अधिकार देने की बातें कर रही थीं। इसके पीछे कुछ तो है, जो गंभीर है? एक बड़े राज्य की मुख्यमंत्री और एक बड़े वोट बैंक से शक्तिशाली मायावती, इन दोनों के सामने असहाय स्थिति में हैं तो उनकी क्या मजबूरी है? इसका उत्तर केवल मायावती के पास है या ये दोनों जानते हैं। चूंकि विकिलिक्स, शशांक शेखर सिंह के गले की हड्डी बन गया है, इसलिए उन्होंने मायावती के कंधे पर बंदूक रखी और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, चाहे स्वयं मायावती भी उसकी चपेट में क्यों न आ जाए।
प्रश्न है कि क्या अमरीका, मायावती या उनकी सरकार के खिलाफ है? विकीलीक्स पर जो कुछ है, वह क्या खुद विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे का गढ़ा हुआ है? दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी माध्यम से पढ़ीं मायावती ने विकीलीक्स को सीधे पढ़ा है या वे केवल सुनी सुनाई एवं चुगलखोरी सुनकर शुरू हो गईं एवं हमेशा की तरह अपने विरोधियों एवं कार्यशैली की आलोचना करने वालों के खिलाफ भद्दे तरीके से बोलने की हदें पार कर गईं? मायावती को यह किसने समझाया कि उनके बारे में विकीलीक्स पर जो चल रहा है, वह असांजे का अपना विचार या विश्लेषण या झूठ है? विकीलीक्स एक वेबसाइट है, जिसने अपनी पेशेवर कुशलता से विभिन्न देशों की वे महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचनाएं हांसिल कर ली हैं, जो उन देशों की सरकारों के बीच अधिकारिक रूप से आदान-प्रदान या हस्तांतरित की जाती हैं। भारत में दूसरे देशों के दूतावास, अपने स्थानीय संपर्क सूत्रों अथवा सीधे, देशभर की सरकारी-सामाजिक राजनीतिक, आर्थिक भौगोलिक एवं सुरक्षा गतिविधियों तक का अधिकारिक स्तर पर संकलन करते और कराते हैं और यथा महत्व के अनुसार अधिकारिक रूप से उसे अपने देश को भेजते हैं। इन सूचनाओं की सच्चाईयां कई स्तरों से पुष्ट करने के बाद ही भेजी जाती हैं, अपवाद स्वरूप किसी सच्चाई में फर्क हो भी सकता है, कोई राजदूत गलत सूचनाएं भेजकर अपने विश्वास को ख़तरे में नहीं डालेगा, क्योंकि वह दूसरे देश के लिए कूटनीतिज्ञ है लेकिन अपने देश के लिए उसकी जो जवाबदेही एवं जिम्मेदारी है, उसे वह हल्के में लेकर अपने को जोखिम में डालने की शायद ही गलती करे।
विकीलीक्स के पास जो भी सूचनाएं हैं, वे वही हैं, जो विभिन्न राजनयिकों या उनके खास प्रतिनिधियों ने एकत्र करके अपने देश की सरकारों को भेजी हैं। लगभग सभी देश अपने राजदूतों एवं उनके जासूसों के माध्यम में उस देश के महत्वपूर्ण लोगों एवं राजनीति से जुड़े लोगों, महत्वपूर्ण आंदोलनों, स्थानों या सरकारी योजनाओं की स्थितियों की भी नियमित सूचनाएं मंगाते हैं, जैसे कि अमरीका, अण्णा हजारे या बाबा रामदेव के आंदोलन परटीवी चैनलों को देखकरनहीं बोला, अपितु वह अपने राजदूत की विदेश मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट पर बोला। भारत भी दूसरे देशों में यही प्रक्रिया अपनाता है, इसलिए पूरे देश में जिन लोगों के बारे में सूचनाएं एकत्र की जाती हैं, उनमें मायावती भी एक हैं। चूंकि वे देश के सबसे बड़े एवं संवेदनशील राज्य की मुख्यमंत्री हैं, प्रतिक्रियावादी राजनीति करती हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के लालच में और मुसलमानों को रिझाने के लिए संसद में परमाणु डील के खिलाफ मतदान किया था, तो उनमें भी अमरीका की दिलचस्पी स्वाभाविक है। भारत के संवेदनशीन मामलों में कौन अपनी टांग अड़ा रहा है, किसकी क्या दिलचस्पी है, यह जानना भी अमरीका या भारत के लिए जरूरी माना जाता है। उसके लिए यह भी जानना जरूरी है कि भारत के कौन राजनीतिक दल उसकी किसी योजना का विरोध या समर्थन कर रहे हैं, उनके पीछे उनकी क्या राजनीतिक रणनीतियां या मजबूरियां हैं, इसके अलावा उनके साथ या उनके पीछे या स्वतंत्र रूप से कोई और देश या कोई कूटनीतिक गुट या आतंकवादी गुट या धार्मिक गुट तो नहीं खड़ा है? यह विषय अमेरिका या ब्रिटेन चीन या पाकिस्तान या किसी भी देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए विभिन्न देश अपने राजदूतों के माध्यम से महत्वपूर्ण गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और सूचनाएं संकलित कराते हैं।
हो सकता है, अमरीकी राजदूत ने मायावती के संबंध में जो सूचनाएं एकत्र कराईं और उनके अधिकारियों या जासूसों ने, भारत में उन पत्रकारों या उन लोगों से जाने अनजाने में संपर्क किया हो, जो किन्हीं कारणों से मायावती के प्रति प्रतिकूल भावनाएं रखते हों और उन्होंने अमरीका के संपर्क सूत्रों को बढ़ा चढ़ाकर या गलत सूचनाएं दी हों, जिन्हें अमरीकी सूत्रों ने सही मान कर अपने देश के विदेश मंत्रालय को भेजा हो, लेकिन जहां तक अमरीकी प्रतिनिधि का उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह से मिलने एवं उनसे मायावती के संबंध में वार्ता का प्रश्न है तो अमरीकी प्रतिनिधि से जो बातें शशांक शेखर सिंह ने बोली हैं, वे गलत नहीं हो सकतीं, या जो बात मायावती के वकील सतीश मिश्रा ने अमरीकी प्रतिनिधि से कही है, वह भी गलत नहीं हो सकती। इन लोगों के पास सरकार का एक शक्तिशाली तंत्र है, जो किसी भी सूचना या टेप को रिमूव कर सकता है, वैसे भी मायावती सरकार में चार सौ बीसी के एक नहीं, बल्कि अनेक उदाहरण हैं कि वह अपने सरकारी रिकार्ड में हेर-फेर करने में माहिर है। मुख्यमंत्री के रूप में मायावती का कालीदास मार्ग या माल एवेन्यू का बंगला राजनीतिक विरोधियों से निपटने और भ्रष्टाचार जनित दलाली की चौबीस घंटे योजनाएं बनाने के लिए बदनाम है। मायावती के विरोधियों को फंसाया जाए, चुप किया जाए, बसपा का कोई आदमी फंसे तो उसे कैसे बचाया जाए, धन कमाने की रणनीतियां यहीं और इन्हीं परिसरों में बनती हैं।
सभी जानते हैं कि मायावती से मिलने की अमेरिकी प्रतिनिधि की पेशकश पहले शशांक शेखर सिंह के पास ही गई होगी, क्योंकि मायावती से मिलने से पहले शशांक शेखर सिंहसे ही मिलना होता है। एक फाइल भी इनके बिना मायावती तक नहीं जा सकती, शशांक शेखर सिंह जिसे चाहेंगे वही मायावती से मिलेगा, यहां तक कि मंत्रीगण या सचिव भी बगैर शेखर की अनुमति के मायावती तक नहीं पहुंच सकते। शशांक शेखर सिंह की रणनीतियों से मायावती सरकार की अनेक अवसरों पर फजीहत हो चुकी है, इसलिए वे जब चालाकियां करते हैं तो उनका भंडाफोड़ भी ऐसे ही होता है, जैसे अमेरिकी फाइलों से विकीलीक्स को मिली सूचनाओं ने किया है। शशांक शेखर को यह यकीन नहीं होगा कि वह अमरीकी प्रतिनिधि से जो कह रहे हैं, वह सूचना अमरीकी विदेश मंत्रालय को जाएगी, जोकि एक सरकारी दस्तावेज होगी और उसी के आधार पर अमरीका, भारत के नेताओं या मंत्रियों के बारे में अपनी धारणा स्थापित करता है। आखिर अमरीका के पास एक व्यापक एवं विश्वव्यापी सूचना तंत्र है और शशांक शेखर सिंह जैसे लोग उसके जासूस या 'मुखबिर' के रूप में ही कार्य करते हैं। कहने को वह कैबिनेट सचिव हैं एवं मायावती के खास हैं, लेकिन उन्हें यह ही नहीं पता कि जो व्यक्ति मायावती की विदेश नीति जानना चाह रहा है, उसका असली मंतव्य क्या होगा?
शशांक शेखर सिंह ने अमेरिकी प्रतिनिधि को व्यस्तता के बहाने मायावती से मिलने से रोका। शेखर ने इस मुलाकात में 'कुछ और' हासिल करने की सोची होगी, चाहे मायावती की अमेरिका से प्रशंसा करवाना हो या मायावती को अमेरिका आमंत्रित कराना हो। शशांक शेखर, मायावती की प्रशंसा एवं निकटता की निरंतरता बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसी रणनीति से वह अमेरिकी प्रतिनिधि को चला रहे थे एवं उसके सामने वे वह सब कह गए जो वास्तव में सच है। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यह बात एक दिन खुलेगी या ये सूचना किसी वेबसाइट के हाथ लगेगी, जिसे दुनिया भर में पहुंचने में कुछ सेकेंड लगेंगे। अमेरिकी प्रतिनिधि से शशांक शेखर ने जो कहा, अमरीका के विदेश मंत्रालय ने उसका आजतक कोई खंडन भी नहीं किया है, जिससे इस वार्ता की पुष्टि होती है, इस पर मायावती या शशांक शेखर या सतीश मिश्रा आज जो भी प्रलाप करें, यह सूचना आज की तारीख में अमेरिका का अधिकृत दस्तावेज है और इसी सूचना की कॉपी विकीलीक्स के पास है, जो उसने अपनी वेबसाइट पर डाली है।
मायावती ने जूलियन असांजे को नाहक ही निशाना बनाया है। असांजे ने तो उस कॉपी का केवल अपनी साइट में ब्रेकिंग समाचार के लिए इस्तेमाल किया है। मायावती को बराक ओबामा प्रशासन अथवा भारत में अमेरिकी राजदूत को निशाना बनाना चाहिए कि वह भारतीय राजनेताओं की कार्यप्रणालियां एकत्र कर अमेरिका भेज रहा है। मायावती ने असांजे के खिलाफ ज़हर उगलकर एक गैरजिम्मेदार नेता का परिचय तो दिया हीहै, साथ ही यह भी सिद्ध कर दिया है कि उन्हें अभी भी सिस्टम की कोई जानकारी नहीं है, भले ही वे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की चौथी बार मुख्यमंत्री हैं और यह भी सिद्ध हुआ है कि उनके निकटस्थ अधिकारी और महत्वपूर्ण लोग उन्हें गुमराह करते हैं। मायावती के विश्वासपात्र ही जब अमेरिकी प्रतिनिधि से उनकी ऐसी महत्वपूर्ण बातें या गुप्त विचार प्रकट कर सकते हैं कि मायावती प्रधानमंत्री शायद ही बनें और न्यूक्लियर डील का विरोध तो महज़ एक नाटक था, तो वे किसी भी योजना को अंजाम दे सकते हैं।

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