जमशेदपुर में पारसी महा व ओल चिकी का शताब्दी समारोह
'ओल चिकी लिपि संथाली पहचान का एक सशक्त प्रतीक'स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Tuesday 30 December 2025 01:38:24 PM
जमशेदपुर (झारखंड)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जमशेदपुर में पारसी महा के समापन समारोह और ओल चिकी के शताब्दी समारोह में 'जाहर मा' केप्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए संथाली समुदाय की एक प्रार्थना पढ़ी। राष्ट्रपति ने कहाकि संथाली साहित्य को संथाली समुदाय की मौखिक परंपराओं और गीतों से ताकत मिलती है, संथाल समुदाय की अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति है। उन्होंने उल्लेख कियाकि भारत में अनेक जनजातीय समुदाय हैं, जिनमें संथाल भी प्रमुख हैं, संथाली लोग भारत के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मॉरीशस में भी निवास करते है। उन्होंने कहाकि हालांकि एक शताब्दी पूर्व संथाली भाषा केलिए लिपि के अभाव में रोमन, देवनागरी, ओडिया और बंगाली जैसी विभिन्न लिपियों का प्रयोग किया जाता था, परंतु इनमें कई संथाली शब्दों का सही उच्चारण नहीं हो पाता था।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उल्लेख कियाकि वर्ष 1925 में ओड़िशा के मयूरभंज जिले के राइरंगपुर केपास दांडबोस गांव में जन्मे इतिहासपुरुष पंडित रघुनाथ मुर्मु ने ओल चिकी लिपि का सृजन किया था, तबसे संथाली भाषा केलिए ओल चिकी लिपि का प्रयोग किया जाने लगा, यह लिपि संथाली समुदाय का एक सशक्त परिचय है। उन्होंने कहाकि विश्वभर में संथालों की पहचान ओल चिकी लिपि से हो रही है और ओल चिकी संथालों केबीच एकता स्थापित करने का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने कहाकि किसी लिपि का शताब्दी वर्ष समारोह एक अत्यंत ऐतिहासिक अवसर है, मुझे बताया गया हैकि ओड़िशा सरकार ने भी ओल चिकी लिपि के शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन किया है। उन्होंने कहाकि भारत केसाथ विदेशों में भी ओल चिकी लिपि को पहचाना जा रहा है, डिजिटिल प्लेटफार्मों में भी ओल चिकी लिपि का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है।
राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर ओल चिकी लिपि में लिखित संथाली भाषा में भारत के संविधान को जारी करने का मौका मिला। उन्होंने खुशी व्यक्त कीकि अब संथाली भाषी लोग अपनी मातृभाषा और ओल चिकी लिपि में लिखे संविधान को पढ़ और समझ सकेंगे। द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि किसी अन्य भाषा में शिक्षा प्राप्त करने केसाथ ओल चिकी लिपि में मातृभाषा संथाली सीखना भी संथाल समुदाय के समग्र विकास केलिए जरूरी है। उन्होंने यह देखकर प्रसन्नता व्यक्त कीकि लेखक और भाषाप्रेमी संथाली भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार केलिए कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रपति ने लोगों से पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहाकि पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली संथाली समुदाय एवं और दूसरे जनजातीय समुदायों से सीखी जा सकती है। राष्ट्रपति ने कहाकि संथाली साहित्य को संथाली समुदाय की मौखिक परंपराओं और गीतों से शक्ति मिलती है।
राष्ट्रपति ने कहाकि कई लेखक अपनी रचनाओं से संथाली साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। उन्होंने कहाकि जनजातीय समुदायों के लोगों को जागृत करना एक अनुकरणीय कार्य है। द्रौपदी मुर्मु ने जिक्र कियाकि राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट पहले अंग्रेजी और हिंदी में ही थी, इसवर्ष जुलाई 2025 से इसे 22 भारतीय भाषाओं में देखने की सुविधा प्रदान कर दी गई है। उन्होंने कहाकि झारखंड में उनके राज्यपाल के कार्यकाल में लोकभवन का नाम ओल चिकि लिपि में लिखा गया था, सरकारी कार्यालयों एवं संथाल बहुल क्षेत्रों के स्कूल, कॉलेज, कार्यालयों के नामों को भी ओल चिकि में लिखना एक सकारात्मक प्रयास है। उन्होंने कहाकि भाषा और साहित्य समुदायों को आपस में जोड़ते हैं। उन्होंने कहाकि विभिन्न भाषाओं केबीच साहित्यिक आदान-प्रदान उन भाषाओं और समुदायों को समृद्ध करता है, अनुवाद इस आदान-प्रदान को संभव बनाते हैं, इसलिए संथाली भाषा के छात्रों को और अन्य भाषाओं से परिचित कराना आवश्यक है। राष्ट्रपति ने कहाकि संथाली साहित्य को दूसरी भाषाओं के छात्रों तक पहुंचाने केलिए इसी तरह के प्रयास किए जाने चाहिएं। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ इस कार्य को प्रभावी ढंग से करेगा।