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भोजपुरी पर जल्द ही अच्छी ख़बर-मनोज तिवारी

देवरिया में विश्व भोजपुरी सम्मेलन में भोजपुरी संस्कृति पर्व-2025

भोजपुरी प्रेमियों का देवरिया में भोजपुरी संस्कृति पर्व में समागम

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 21 December 2025 05:04:48 PM

a gathering of bhojpuri enthusiasts at the bhojpuri cultural festival in deoria.

देवरिया। भारत की विख्यात भोजपुरी भाषा की हृदयस्थली देवरिया में दो दिवसीय विश्व भोजपुरी सम्मेलन में भोजपुरी संस्कृति पर्व-2025 पर हज़ारों भोजपुरी प्रेमियों का भव्य समागम हुआ। यह आयोजन 13-14 दिसंबर को था, जिसका प्रख्यात भोजपुरी गायक अभिनेता और दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी मृदुल, विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत दुबे, सम्मेलन के संयोजक सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी और प्रख्यात भोजपुरी मनीषियों ने दीप प्रज्वलन करके शुभारंभ किया। सांसद मनोज तिवारी का सारगर्भित और विविध आयामी उद्बोधन हुआ, जिसने भोजपुरी सम्मेलन को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहाकि भोजपुरी, भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा की संवाहक है और आशा व्यक्त कीकि भोजपुरी को बहुत जल्दी संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिल सकता है। मनोज तिवारी ने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भोजपुरी भाषा और संस्कृति से बहुत गहरा लगाव है, इसलिए भोजपुरी को बहुत जल्दी संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिल सकता है।
सांसद मनोज तिवारी ने कहाकि प्रधानमंत्री स्वयं भोजपुरी के हृदयस्थल काशी के प्रतिनिधि हैं, वह अनेक बार जनता को भोजपुरी में संबोधित कर चुके हैं। उन्होंने कहाकि केंद्र सरकार के शीर्ष नेतृत्व को यह लोकभाषा बहुत पसंद है, इसीलिए भाजपा भोजपुरी संस्कृति के प्रतिनिधियों को बहुत महत्व देती है। मनोज तिवारी ने कहाकि बिहार के चुनाव इस बातके साक्षात प्रमाण हैंकि भोजपुरी की महत्ता के कारण ही भाजपा नेतृत्व ने उन्हें अत्यधिक सम्मान देकर भोजपुरी को बढ़ावा दिया है। मनोज तिवारी ने सम्मेलन के संयोजक सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी के प्रयासों की प्रशंसा की और कहाकि यह भोजपुरी संस्कृति पर्व भारतीय लोक भाषाओं के उन्नयन के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने प्रख्यात भाषा विद्वान पंडित विद्यानिवास मिश्र और डॉ अरुणेश नीरन को कई बार याद किया। अजीत दुबे ने कहाकि देवरिया में तीस वर्ष पूर्व जो बीज पंडित विद्यानिवास मिश्र एवं डॉ अरुणेश नीरन ने सेतु की सन्निधि में रोपित किया था, वह विराट स्वरूप में दिख रहा है। उन्होंने कहाकि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में स्थापित करने के आंदोलन में मनोज तिवारी के प्रयास विश्वास दिलाते हैंकि 30 करोड़ लोगों में बोली जाने वाली इस लोकभाषा को अब उसका स्थान मिलेगा।
भोजपुरी संस्कृति पर्व के संस्थापक संपादक आचार्य संजय तिवारी ने कहाकि भोजपुरी केवल एक लोकभाषा नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान साहित्य की लोक संप्रेषण शक्ति है, इसकी लोक चेतना से भारत की स्वाधीनता का पूरा इतिहास भरा पड़ा है। उन्होंने कहाकि भोजपुरी वस्तुतः वेद की लोकवाणी है, यहां हमें यह ध्यान देना चाहिएकि इस मातृभाषा का सम्मान स्वयं से करना शुरू करें। आचार्य संजय तिवारी ने कहाकि इसको सबसे सटीक रूपमें मराठा संस्कृति से सीखा जा सकता है, जैसे प्रत्येक मराठा भाषी आपस में केवल मराठी में ही बात करते हैं, चाहे वे जहां भी हों। आचार्य संजय तिवारी ने कहाकि मगर भोजपुरी केसाथ ऐसा नहीं है। उन्होंने कहाकि दो भोजपुरी भाषा-भाषी जहां भी मिलते हैं, वे वहींके अनुसार भोजपुरी का इस्तेमाल करते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि हम भोजपुरी भाषी चाहे जहां भी हों, केवल अपनी भोजपुरी भाषा में ही संवाद करें। उन्होंने कहाकि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल होने की उम्मीदों से समाज में उत्साह है। उन्होंने कहाकि उन मनीषियों को साधुवाद जो भोजपुरी भाषा की प्रतिष्ठा और महत्व को सरमाथे रखते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त कीकि जल्द ही भोजपुरी आठवीं अनुसूची में शामिल कर ली जाएगी।
सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी ने कहाकि यह भारतीय सनातन संस्कृति की देवारण्य की पावन भूमि है, जिसपर 30 वर्ष पूर्व राजकीय इंटर कॉलेज के प्रांगण में विश्व भोजपुरी सम्मेलन की नींव रखी गई थी। सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी ने कहाकि विश्व भोजपुरी सम्मेलन का भाषा आंदोलन अपनी गति केसाथ चल रहा है, जो भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषाओं में शामिल होने से कुछ ही दूर है। उन्होंने कहाकि विगत वर्षों में भोजपुरी भाषा के राजनीतिक भावनात्मक उपयोग की कोशिश अनेक राष्ट्रीय नेताओं से लेकर राष्ट्रीय राजनीति के पुरोधाओं ने की है। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोजपुरी के गढ़ से ही चुनकर लोकसभा में आते हैं, काशी से बिहार तक प्रधानमंत्री के अनेक भाषण भोजपुरी से ही शुरू होते हैं। उन्होंने यह भी कहाकि भोजपुरी भाषी जनता का भावनात्मक जुड़ाव सभीको मिला, लेकिन अभीतक इतनी मीठी भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिल सका। सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी ने कहाकि जब हम भोजपुरी की बात कर रहे हैं तो भोजपुरी कोई सामान्य बोली या संकेतांकभर नहीं है, वह देवभाषा संस्कृत की लोकभाषा है, भारत की लोक संस्कृति यदि सबसे अधिक किसी भाषा और साहित्य में अभिव्यक्त हुई है तो वह भोजपुरी है। उन्होंने कहाकि भारत के स्वाधीनता संग्राम में भोजपुरी भाषियों का निर्णायक योगदान है।
देवरिया के नगर विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने भोजपुरी की महत्ता पर प्रकाश डाला। यह सम्मेलन अरुणेश नीरन को समर्पित किया गया। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष विनय मानी त्रिपाठी ने लोकभाषा के महत्व पर व्यापक चर्चा की। विराट साहित्य पुरुष पंडित विद्यानिवास मिश्र के संरक्षण में विश्व भोजपुरी सम्मेलन की स्थापना देवरिया में हुई थी। देश दुनिया में भोजपुरी साहित्य, संस्कृति और भाषा पर अनुकरणीय कार्य कररहे प्रख्यात विद्वान, संस्कृति कर्मी, लेखक, साहित्यकार, रंगकर्मी, गायक, कवि और संस्कृति के अध्येताओं ने एक मंच पर भोजपुरी को गौरवांवित किया। क़रीब एक दर्जन कलाकारों ने अपनी भोजपुरी प्रस्तुतियां दीं। आशा व्यक्त की गईकि यह वैश्विक आयोजन भोजपुरी को भाषा के रूपमें उसका स्थान अवश्य सुनिश्चित कराएगा। गौरतलब हैकि देवरिया ही भोजपुरी भाषा की केंद्रीय भूमि है, इसलिए यहां भोजपुरी आयोजन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
भोजपुरी एक बड़े भूभाग की भाषा है, यह बिहार के पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, सासाराम और भभूआ जिलों तथा उत्तरप्रदेश के बलिया, देवरिया, कुशीनगर, वाराणसी, गोरखपुर महाराजगंज, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, मिर्जापुर के लोगों की मातृभाषा है। झारखंड में यह पलामू, गढ़वा और लातेहार जिलों के कुछ भागों में बोली जाती है। नेपाल के रौतहट, बारा, पर्सा, बिरग, चितवन, नवलपरासी, रूपनदेही और कपिलवस्तु में भोजपुरी बोली जाती है। भोजपुरी मारीशस, फिजी, सूरीनाम, ट्रीनीडाड, नीदरलैंड जैसे कई देशों की बड़ी आबादी बोलती-समझती है। समारोह में प्रख्यात गायिका कल्पना पटवारी, भरत शर्मा व्यास, मदन राय, शिल्पी राज, आलोक कुमार, भोजपुरी साधक, प्रख्यात शिक्षाविद एवं संस्कृति पर्व की कार्यकारी संपादक डॉ अर्चना तिवारी भी उपस्थित थीं।

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