राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष होने पर स्मरणोत्सव का शुभारंभ
वंदे मातरम को समर्पित स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी कियास्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 7 November 2025 03:41:39 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर नई दिल्ली में एकवर्ष तक चलने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि 7 नवंबर एक ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि राष्ट्र वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है। उन्होंने कहाकि यह पावन अवसर हमारे नागरिकों को नई प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करेगा, इस दिन को इतिहास के पन्नों में अंकित करने केलिए वंदे मातरम को समर्पित स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया। प्रधानमंत्री ने माँ भारती केलिए अपना जीवन समर्पित करने वाले भारत के वीर विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने कहाकि वंदे मातरम केवल एक शब्द नहीं है, यह एक मंत्र है, एक ऊर्जा, एक स्वप्न है और एक पवित्र संकल्प है। उन्होंने कहाकि वंदे मातरम माँ भारती केप्रति भक्ति और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है, यह एक शब्द हमें हमारे इतिहास से जोड़ता है, हमारे वर्तमान को आत्मविश्वास से भर देता है और हमारे भविष्य को यह विश्वास दिलाने का साहस देता हैकि कोईभी संकल्प पूर्ण होने से परे नहीं है और कोईभी लक्ष्य हमारी पहुंच से परे नहीं है। वंदे मातरम के सामूहिक गायन को अभिव्यक्ति की सीमाओं से परे एक सचमुच उदात्त अनुभव बताते हुए नरेंद्र मोदी ने कहाकि इतने सारे स्वरों केबीच एक विलक्षण लय, एकीकृत स्वर, साझा रोमांच और निर्बाध प्रवाह उभरा। उन्होंने सद्भाव की उस प्रतिध्वनि और तरंगों की चर्चा की जिसने हृदय को ऊर्जा से भर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि वंदे मातरम का सार भारत का शाश्वत विचार है। उन्होंने विस्तार से बतायाकि यह विचार मानव सभ्यता के उदय से ही आकार लेने लगा था, प्रत्येक युग को एक अध्याय के रूपमें देखते हुए विभिन्न राष्ट्रों के उदय, विभिन्न शक्तियों के उदय, नई सभ्यताओं के विकास, शून्य से महानता की उनकी यात्रा और अंततः शून्य में विलीन होने का साक्षी रहा। उन्होंने कहाकि भारत ने इतिहास के निर्माण और विनाश, विश्व के बदलते भूगोल को देखा है, इस अनंत मानव यात्रा से भारत ने सीखा नए निष्कर्ष निकाले और उनके आधार पर अपनी सभ्यता के मूल्यों और आदर्शों को आकार दिया, एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान गढ़ी। नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत शक्ति और नैतिकता केबीच संतुलन को समझता है और इस प्रकार एक परिष्कृत राष्ट्र के रूपमें उभरा, शुद्ध सोने की तरह जो अतीत के घावों के बावजूद अमर है। उन्होंने कहाकि भारत की अवधारणा और उसके पीछे की दार्शनिक शक्ति वैश्विक शक्तियों के उत्थान और पतन से अलग है और स्वतंत्र अस्तित्व की एक विशिष्ट भावना में निहित है। उन्होंने कहाकि जब इस चेतना को लिखित और लयबद्ध रूपमें अभिव्यक्त किया गया तो इसने वंदे मातरम जैसी रचना को जन्म दिया। नरेंद्र मोदी ने कहाकि यही कारण हैकि औपनिवेशिक काल में वंदे मातरम इस संकल्प का उद्घोष बन गयाकि भारत स्वतंत्र होगा, माँ भारती के हाथों दासता की बेड़ियां टूट जाएंगी और उसकी संतानें अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बनेंगी।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों को याद करते हुएकि बंकिमचंद्र का आनंदमठ केवल एक उपन्यास नहीं है, यह एक स्वतंत्र भारत का स्वप्न है, प्रधानमंत्री ने आनंदमठ में वंदे मातरम के गहन महत्व पर बल दिया और कहाकि बंकिम बाबू की रचना की प्रत्येक पंक्ति, प्रत्येक शब्द और प्रत्येक भावना गहरे अर्थ रखती है। उन्होंने कहाकि यद्यपि यह गीत औपनिवेशिककाल में रचा गया था, फिरभी इसके शब्द सदियों की गुलामी की छाया में कभी सीमित नहीं रहे, यह पराधीनता की स्मृतियों से मुक्त रहा, इसीलिए वंदे मातरम हर युग और हर काल में प्रासंगिक बना हुआ है। नरेंद्र मोदी ने गीत की पहली पंक्ति ‘सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम शस्यश्यामलाम मातरम’ को उद्धृत किया और इसे प्रकृति के दिव्य आशीर्वाद से सुशोभित हमारी मातृभूमि केप्रति श्रद्धांजलि के रूपमें व्याख्यायित किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि भारत की नदियां, पहाड़, जंगल, पेड़ और उपजाऊ मिट्टी में हमेशा से प्रचुरता प्रदान करने की शक्ति रही है, सदियों से दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियां सुनती आ रही है, कुछ ही सदियों पहले भारत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-चौथाई हिस्सा था, हालांकि जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की, तब भारत उस स्वर्णिम युग से बहुत दूर जा चुका था। विदेशी आक्रमणों, लूटपाट और शोषणकारी औपनिवेशिक नीतियों ने देश को गरीबी और भुखमरी से ग्रस्त कर दिया था, फिरभी बंकिम बाबू ने एक समृद्ध भारत के दृष्टिकोण का आह्वान किया, जो इस विश्वास से प्रेरित थाकि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौतियां क्यों न हों भारत अपने स्वर्णिम युग को पुनर्जीवित कर सकता है और इस प्रकार उन्होंने वंदे मातरम का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि औपनिवेशिककाल में अंग्रेज़ भारत को हीन और पिछड़ा बताकर अपने शासन को उचित ठहराने की कोशिश करते थे। उन्होंने कहाकि वंदे मातरम की पहली पंक्ति ही इस झूंठे प्रचार को पूरी ताकत से ध्वस्त कर देती है, इसलिए वंदे मातरम सिर्फ़ आज़ादी का गीत नहीं था, इसने करोड़ों भारतीयों के सामने एक आज़ाद भारत की एक तस्वीर भी पेश की: सुजलाम सुफलाम भारत का सपना। नरेंद्र मोदी ने कहाकि यह जब बंकिम बाबू ने 1875 में बंगदर्शन में वंदे मातरम प्रकाशित किया तो कुछ लोगों ने इसे केवल एक गीत माना, लेकिन जल्द ही वंदे मातरम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आवाज़ बन गया, हर क्रांतिकारी के होठों पर एक मंत्र, हर भारतीय की भावनाओं की अभिव्यक्ति बन गया। उन्होंने कहाकि स्वतंत्रता आंदोलन का शायद ही कोई अध्याय हो जहां वंदे मातरम किसी न किसी रूपमें मौजूद न हो। प्रधानमंत्री ने कहाकि 1896 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कलकत्ता अधिवेशन में वंदे मातरम गाया था, 1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ, राष्ट्र को विभाजित करने केलिए अंग्रेजों ने एक खतरनाक प्रयोग किया और वंदे मातरम उन साजिशों के खिलाफ एक चट्टान की तरह खड़ा था। प्रधानमंत्री ने याद कियाकि बंगाल के विभाजन के विरोध के दौरान सड़कें एक एकीकृत आवाज़ वंदे मातरम से गूंज उठी थीं। यह याद करते हुएकि जब बारीसाल अधिवेशन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गईं, तबभी उनके होठों पर शब्द थे-वंदे मातरम, प्रधानमंत्री ने कहाकि वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी, जो विदेश से काम कर रहे थे, एक-दूसरे को वंदे मातरम कहकर अभिवादन करते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि कई क्रांतिकारियों ने फांसी के तख्ते पर खड़े होकर भी वंदे मातरम का उच्चारण किया, ऐसी अनगिनत घटनाएं, इतिहास की अनगिनत तारीखें, विविध क्षेत्रों और भाषाओं वाले एक विशाल राष्ट्र में ऐसे आंदोलन हुए जहां एक नारा, एक संकल्प, एक गीत हर आवाज़ में गूंजता था-वंदे मातरम। उन्होंने महात्मा गांधी की 1927 की टिप्पणी को उद्धृत कियाकि वंदे मातरम हमारे सामने अविभाजित भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत का राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभिक स्वरूप से लेकर आजके तिरंगे के रूपमें समय केसाथ विकसित हुआ है, लेकिन एकबात अपरिवर्तित रही हैकि जबभी ध्वज फहराया जाता है, हर भारतीय के हृदय से सहज ही भारत माता की जय! और वंदे मातरम! के शब्द निकलते हैं। उन्होंने कहाकि जब राष्ट्र राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष का जश्न मना रहा है तो यह देश के महान नायकों, अनगिनत शहीदों को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने वंदे मातरम का उद्घोष करते हुए फांसी को गले लगा लिया, जिन्होंने वंदे मातरम का उद्घोष करते हुए कोड़ों की मार झेली, जो वंदे मातरम का मंत्र पढ़ते हुए बर्फ की सिल्लियों पर अडिग रहे। प्रधानमंत्री ने कहाकि आज 140 करोड़ भारतीय वंदे मातरम का उच्चारण करते हुए राष्ट्र केलिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले प्रत्येक ज्ञात, अज्ञात और गुमनाम व्यक्ति को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में कभी दर्ज नहीं किए गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि वैदिककाल से ही भारत के लोग राष्ट्र की इसी मातृरूप में पूजा करते आए हैं, वंदे मातरम के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में नई चेतना का संचार किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि जो लोग राष्ट्र को केवल एक भू-राजनीतिक इकाई के रूपमें देखते हैं, उनके लिए राष्ट्र को माँ मानने का विचार आश्चर्यजनक लग सकता है, लेकिन भारत अलग है, भारत में माँ जन्म देने वाली, पालन-पोषण करने वाली और जब उसकी संतान संकट में होती है तो वह बुराई का नाश करने वाली भी होती है। उन्होंने कहाकि हमारा विज़न एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का है, जो ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अग्रणी हो, एक ऐसा राष्ट्र जो ज्ञान और नवाचार की शक्ति से समृद्ध हो और एक ऐसा राष्ट्र जो राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में आत्मनिर्भर हो। प्रधानमंत्री ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रमें भारत की अभूतपूर्व प्रगति और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूपमें इसके उदय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहाकि जब विरोधियों ने आतंकवाद के जरिए भारत की सुरक्षा और सम्मान पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया तो दुनिया ने देखाकि नया भारत मानवता की सेवा में कमला और विमला की भावना का प्रतीक तो है ही, साथही आतंकवाद के विनाश केलिए दस अस्त्रों की धारक दुर्गा बनना भी जानता है। उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त कियाकि 1937 में वंदे मातरम के महत्वपूर्ण पद्य, जो इसकी आत्मा है को अलग कर दिया गया, यह गीत खंडित हो गया। उन्होंने कहाकि इसी विभाजन ने देश के विभाजन के बीज बोए। प्रधानमंत्री ने सवाल उठायाकि इस महान राष्ट्रीय मंत्र केसाथ ऐसा अन्याय क्यों किया गया? और आगाह कियाकि यही विभाजनकारी मानसिकता आज भी राष्ट्र केलिए चुनौती बनी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगाह कियाकि हमें उन लोगों का सामना करना पड़ेगा, जो हमें गुमराह करना चाहते हैं और नकारात्मक मानसिकता वाले लोग जो संदेह और संकोच का बीज बोने का प्रयास करेंगे। उन्होंने राष्ट्र से आनंदमठ के उस प्रसंग को याद करने का आग्रह किया, जहां भवानंद वंदे मातरम गाते हैं और एक अन्य पात्र प्रश्न करता हैकि अकेला व्यक्ति क्या हासिल कर सकता है। तब वंदे मातरम से प्रेरणा मिलती है, करोड़ों बच्चों और करोड़ों हाथों वाली माँ कभी शक्तिहीन कैसे हो सकती है? प्रधानमंत्री ने कहाकि आज भारत माता केपास 140 करोड़ बच्चे और 280 करोड़ हाथ हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत से अधिक युवा हैं। उन्होंने कहाकि भारत केपास दुनिया का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभ है। उन्होंने कहाकि आज हमारे लिए वास्तव में क्या असंभव है? वंदे मातरम के मूल स्वप्न को पूरा करने से हमें कौन रोक सकता है? प्रधानमंत्री ने कहाकि हम 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ रहे हैं, इस अभूतपूर्व युग में प्रत्येक नई उपलब्धि स्वतःस्फूर्त नारा वंदे मातरम को उद्घाटित करती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि वंदे मातरम का मंत्र अमृतकाल यात्रा में माँ भारती की असंख्य संतानों को सशक्त और प्रेरित करता रहेगा। इस कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।