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Friday 30 May 2025 05:19:59 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत साहित्य अकादमी ने राष्ट्रपति भवन के सहयोग से ‘कितना बदल चुका है साहित्य?’ विषय पर राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में ऐतिहासिक साहित्यिक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें देशभर से प्रतिष्ठित लेखकों, कवियों और साहित्यिक विचारकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सम्मानित किया। राष्ट्रपति ने उद्घाटन भाषण में लेखकों केप्रति अपने आजीवन सम्मान और प्रशंसा को व्यक्त किया। उन्होंने कहाकि राष्ट्रपति भवन में लेखकों, कवियों और साहित्यिक विचारकों की मेजबानी करना उनकी एक प्रिय इच्छा थी। उन्होंने उत्कलमणि गोपबंधु दास की उड़िया में कही गई पंक्तियों का स्मरण किया, जिसका उन्होंने अर्थ बतायाकि ‘मैं इस देशकी धरती पर जहां भी हूं, मैं उतनीही आभारी हूं, जितनी मैं जगन्नाथ पुरी यात्रा के परिसर में होती’। उन्होंने कहाकि 140 करोड़ देशवासियों के हमारे विशाल परिवार में अनेक भाषाएं हैं और अनगिनत बोलियां हैं तथा साहित्यिक परम्पराओं की असीम विविधता है, लेकिन इस विविधता में भारतीयता का स्पंदन महसूस होता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने साहित्य से समानताएं बताते हुए वाल्मीकि रामायण से सीता-राम की कहानी को समाज में एकता की शक्ति के रूपमें उद्धृत किया। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा कियाकि भारत के सुप्रसिद्ध कथाकार, व्यासकवि फ़कीर मोहन सेनापति की 'रेवती' नामक अमर कहानी ने उनके अंतर्मन पर गहरा प्रभाव डाला, साहित्य के प्रभाव को उजागर किया, उनके अनुसार आम लोग साहित्य से प्रेरणा ले सकते हैं और अपने आदर्शों को साकार करने का प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने प्रतिभा रे के उपन्यास ‘द्रौपदी’ को मानवीय संवेदनाओं में निहित एक उत्कृष्ट साहित्य का एक आदर्श उदाहरण बताया। उन्होंने कहाकि साहित्य समय केसाथ परिवर्तित होता है, लेकिन करुणा और संवेदनशीलता जैसे कुछ तत्व हैं, जिनमें परिवर्तन नहीं होता। उन्होंने कहाकि व्यक्ति के अनुभवों पर आधारित होनेके कारण आजके साहित्य को उपदेशात्मक साहित्य नहीं कहा जा सकता। केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी इस अवसर पर उपस्थित थे। उन्होंने कहाकि साहित्य कितना बदल गया है, यह पूछने के बजाय यह विचार करना अधिक उचित होगाकि समाज में कितना बदलाव आया है, क्योंकि साहित्य समाज की भावना होती है।
संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुंशी प्रेमचंद का उदाहरण देते हुए कहाकि वे हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में देश सांस्कृतिक पुनरुत्थान के युग से गुजर रहा है और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के तत्वावधान में यह साहित्य सम्मेलन देश में एक जाग्रत सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। संस्कृति मंत्रालय की विशेष सचिव और वित्तीय सलाहकार रंजना चोपड़ा ने साहित्य अकादमी की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिसमें नेताजी सुभाष बोस पर इसका कार्य और उन्मेषा जैसे अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक आयोजन सम्मिलित हैं। उन्होंने तेजीसे होरहे तकनीकी और सामाजिक परिवर्तनों केबीच साहित्य के सामने आनेवाली चुनौतियों को स्वीकार किया। रंजना चोपड़ा ने साहित्य अकादमी की संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत सबसे प्रमुख संस्थाओं में से एकके रूपमें प्रशंसा की और हालके वर्ष में इसकी कई उपलब्धियों और प्रभावशाली गतिविधियों पर प्रकाश डाला, जिनमें नेताजी सुभाष बोस पर रिकॉर्ड समय में पुस्तक प्रकाशित करना तथा उन्मेषा जैसे अंतर्राष्ट्रीयस्तर के कार्यक्रम आयोजित करना आदि प्रमुख हैं। उन्होंने इन्हें साहित्य अकादमी की महान उपलब्धियां बताया। उन्होंने कहाकि साहित्य का भविष्य तकनीकी और सामाजिक प्रगति केसाथ विकसित होगा, जिससे इसकी मौलिकता को बनाए रखने की चुनौतियां सामने आएंगी।
कवि सम्मेलन ‘सीधे दिल से’ में विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवियों ने भागीदारी की। साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के श्रीनिवास राव ने कवियों को अंगवस्त्रम से सम्मानित किया। इस दौरान डॉ माधव कौशिक ने उर्दू दोहे और ग़ज़लें सुनाईं। अपनी कविताएं सुनाने वाले कवियों में थे-रणजीत दास (बंगाली), ममंग दाई (अंग्रेजी), दिलीप झावेरी (गुजराती), अरुण कमल (हिंदी), महेश गर्ग (हिंदी), शफी शौक (कश्मीरी), दमयंती बेशरा (संथाली) और रवि सुब्रमण्यन (तमिल)। साहित्य सम्मेलन में कवियों ने आनंद, शोक, प्रेम और उत्कंठा की अनछुई अभिव्यक्ति साझा की। सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात उर्दू कवि और विद्वान शीन काफ़ निज़ाम ने कहाकि कविता सुनी नहीं जाती, बल्कि महसूस की जाती है। उन्होंने अपनी कई लोकप्रिय उर्दू ग़ज़लें सुनाईं और सत्र का समापन किया। साहित्य सम्मेलन में भारत की साहित्यिक विविधता के उत्सव और इसकी चिरस्थायी विरासत और भविष्य की दिशा पर सार्थक चिंतन भी किया गया।