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Tuesday 27 May 2025 04:34:38 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि युद्ध से सबसे अच्छा बचाव तभी होता है, जब हम शक्तिमान हों, जब आप युद्ध केलिए हमेशा तैयार रहें, तब शांति सुनिश्चित होती है, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा केलिए हमें स्वदेशी शक्ति की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि शक्ति केवल तकनीकी क्षमता या पारंपरिक हथियारों से नहीं आती, बल्कि यह जनता से भी आती है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के 7वे चरण के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। उपराष्ट्रपति ने नागरिकों को उनके कर्तव्यों के पालन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहाकि हम अपने मौलिक अधिकारों की बात तो करते हैं, मगर मौलिक कर्तव्यों केप्रति पूरी तरह उदासीन रहते हैं, अगर हम केवल अपने अधिकारों पर ध्यान दें और कर्तव्यों की अनदेखी करें तो हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक नागरिक के अपने दायित्व को पूरा नहीं कर सकेंगे।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि संविधान में शुरू में ये कर्तव्य नहीं थे, हमारे संविधान निर्माताओं ने अपेक्षा की थीकि हम इन कर्तव्यों केप्रति स्वाभाविक रूपसे समर्पित रहेंगे, लेकिन बादमें जब इसकी आवश्यकता महसूस हुई तो इन्हें 42वें और 86वें संविधान संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया। उपराष्ट्रपति ने मौलिक कर्तव्यों का सार बतायाकि राष्ट्रीय कल्याण को प्राथमिकता देना, लोक व्यवहार, अनुशासन, सार्वजनिक संवाद, पर्यावरण और जीवन में भलाई की सभी बातों में अपना योगदान देना। उन्होंने कहाकि लोग सोचते हैंकि हम योगदान कैसे करें? स्वदेशी का विचार आर्थिक राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है, आर्थिक राष्ट्रवाद का मतलब हैकि हम स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग करें, ‘वोकल फॉर लोकल’ को अपनाएं, यह हमारे कारीगरों को प्रेरित करेगाकि वे हमारी आवश्यकताओं को पूरा करें। उन्होंने कहाकि लेकिन अगर हम उन वस्तुओं का आयात करते हैं, जिन्हें देश में बनाया जा सकता है तो तीन समस्याएं उत्पन्न होती हैं, एक विदेशी मुद्रा भंडार में अनावश्यक छेद, दूसरा अपने देशके लोगों से रोज़गार छीनना और तीसरा उद्यमशीलता को कुंद करना।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि हर व्यक्ति योगदान दे सकता है, वह क्या पहनता है, क्या खाता है, कौन से जूते पहनता है, लेकिन हम विदेशी चीजों केप्रति आकृष्ट होते हैं और यह भूल जाते हैंकि इससे हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचती है, इसलिए मैं कहता हूंकि आर्थिक राष्ट्रवाद जनता का कार्य है। जगदीप धनखड़ ने कहाकि पहलगाम की घटना और ऑपरेशन सिंदूर ने हमारी सोच को पूरी तरह बदल दिया है, अब हम पहले से कहीं अधिक राष्ट्रवादी हो गए हैं, इसका उदाहरण यह हैकि सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर विदेशों में भारत का शांति और आतंकवाद केप्रति शून्य सहिष्णुता का संदेश दिया है। उन्होंने कहाकि हालिया घटनाओं से हमें यह स्पष्ट हो जाना चाहिएकि हमारे पास अब एकही रास्ता है, एकजुट रहना और मजबूत बनना। उन्होंने कहाकि संस्थानों की तरह राजनीतिक दलों की भी राष्ट्रीय उद्देश्य केप्रति नैतिक जिम्मेदारी होती है, क्योंकि अंततः सभी संस्थाओं का केंद्र बिंदु है-राष्ट्रीय विकास, राष्ट्रीय कल्याण, सार्वजनिक कल्याण, पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी। उन्होंने कहाकि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रगति जैसे विषयों पर सभी दलों को राष्ट्रहित को अपने राजनीतिक हितों से ऊपर रखना चाहिए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के महत्व को रेखांकित करते हुए कहाकि भारतीय संसद एक साधारण विधायी निकाय नहीं है, यह आज 140 करोड़ लोगों की इच्छा का प्रतिबिंब है, यह एकमात्र वैधानिक संवैधानिक मंच है, जो जनता की वास्तविक इच्छा को प्रकट करता है। इसलिए संसद की विशेष भूमिका है, एक यह कानून बनाने की अंतिम संस्था है और दूसरा यह कार्यपालिका को उत्तरदायी ठहराती है। उन्होंने कहाकि शासन कुछ मूल सिद्धांतों से संचालित होता है, पारदर्शिता जवाबदेही और अब आधुनिक समय में संस्थाओं का श्रेष्ठ प्रदर्शन भी इसमें शामिल हो गया है। उन्होंने कहाकि संसद बहस, संवाद, चर्चा और विमर्श का सर्वोच्च मंच है। सहयोग और सहमति के महत्व पर बल देते हुए उन्होंने कहाकि विभाजनकारी मुद्दों, ज्वलंत मुद्दों और अत्यंत संवेदनशील विषयों को सहयोग, समन्वय और सहमति केसाथ सुलझाया जाए। उन्होंने कहाकि संविधान हमारे सभ्यतागत विकास को भी दर्शाता है, जब आप संविधान की मूलप्रति को देखेंगे तो उसमें 22 चित्र मिलेंगे, जो भारत के गौरवशाली अतीत को दर्शाते हैं, गुरुकुल, सिंधु घाटी सभ्यता, श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की अयोध्या वापसी (जो मौलिक अधिकारों वाले भाग 3 में हैं)।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि संविधान के राज्य के नीति निदेशक तत्वों वाले हिस्से में भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन को गीता उपदेश देना दर्शाया गया है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि संविधान जहां हमें मौलिक अधिकार देता है, वहीं वह हमें नागरिक कर्तव्यों के निर्वहन की भी आज्ञा देता है। उन्होंने कहाकि अधिकार तब और अधिक सार्थक हो जाते हैं, जब वे लागू किए जा सकते हों। उपराष्ट्रपति ने कहाकि भारत दुनिया के कुछ गिने-चुने देशों में है, जहां आप अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं, लेकिन नागरिकों और संस्थाओं को अपने अधिकारों और शक्तियों का प्रयोग संविधान की मर्यादाओं के भीतर रहकर करना चाहिए, जैसे हम अपने पड़ोसी से प्रेम करते हैं, वैसे ही हमें उसकी सीमाओं में दखल नहीं देना चाहिए, न शारीरिक रूपसे, न अन्य रूपों में। उन्होंने कहाकि इसी तरह संविधान की सीमाओं का सम्मान हर परिस्थिति में आवश्यक है, यदि इसमें कोई विघ्न आता है तो आप खतरे को भांप सकते हैं।