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Monday 2 September 2024 04:09:12 PM
ऋषिकेष (उत्तराखंड)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पश्चिम बंगाल में 9 अगस्त को एक स्वास्थ्य योद्धा के खिलाफ हुई हिंसा को पूरी मानवता को शर्मिंदा करने वाली क्रूरता की चरम सीमा बताया है। ऋषिकेष में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में विद्यार्थियों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहाकि ऐसी बर्बर घटनाएं पूरी सभ्यता को शर्मिंदा करती हैं और भारत के आदर्शों को तहस नहस कर देती हैं। उन्होंने कुछ भटके हुए लोगों द्वारा 'लक्षणात्मक विकृति' शब्द के इस्तेमाल पर दुःख व्यक्त करते हुए कहाकि इस तरह के बयान हमारे असहनीय दर्द को और बढ़ाते हैं तथा हमारी घायल अंतरात्मा पर नमक छिड़कते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहाकि जब मानवता शर्मसार होती है, तब कुछ भटके हुए लोगों की आवाज़ें चिंता का कारण बनती हैं, उनके इस प्रकार के विचार केवल हमारे असहनीय दर्द को बढ़ाते हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि सही शब्दों में कहें तो 'लक्षणात्मक विकृति' शब्द इस्तेमाल करनेवाले लोग हमारी घायल अंतरात्मा पर नमक छिड़क रहे हैं और वे कह रहे हैंकि यह एक लक्षणात्मक विकृति है, एक सामान्य घटना है। उन्होंने कहाकि जब यह बात कोई ऐसा व्यक्ति कहता है जो संसद सदस्य है, एक वरिष्ठ वकील है, तो यह अपराध चरम सीमा पर पहुंच जाता है, इस तरह के राक्षसी विचारों केलिए कोई बहाना नहीं हो सकता। उन्होंने कहाकि मैं ऐसे गुमराह व्यक्तियों से अपनी इस प्रकार की सोचपर फिरसे विचार करने और सार्वजनिक रूपसे माफी मांगने को कहता हूं, क्योंकि यह ऐसी घटना नहीं है, जिसे राजनीतिक चश्मे से देखा जाना चाहिए, यह आपकी निष्पक्षता को खत्म कर देता है। अपने संवैधानिक पद के आधार पर चिकित्सा जगत और इस देश की महिलाओं केप्रति अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहाकि मैं आपके सामने हूं, वास्तव में एक संवैधानिक पद पर रहते हुए मुझे अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा, मुझे उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूपमें अपने पद को उचित ठहराना होगा। उन्होंने कहाकि ऐसी घटनाओं से हमारा दिल घायल होता है, हमारी अंतरात्मा रो रही है और हमारी आत्मा जवाबदेही की मांग कर रही है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चिकित्सा पेशेवरों के काम को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए 'निष्काम सेवा' के रूपमें संदर्भित करते हुए बिना किसी अपेक्षा के सिर्फ अपना कर्तव्य निभाते हुए किसी भी रूपमें डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों की घोर निंदा की। डॉक्टरों की कार्यस्थल पर सुरक्षा केलिए अपनी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था बनाने पर जोर दिया, जहां स्वास्थ्य योद्धा पूरी तरह से सुरक्षित रहें। उपराष्ट्रपति ने कहाकि एक डॉक्टर सिर्फ एक हद तक ही सहायता कर सकता है, एक डॉक्टर खुद को भगवान नहीं बना सकता, वो भगवान के बराबर है, इसलिए जब कोई मर जाता है, भावनाओं और बेकाबू भावनाओं के कारण डॉक्टरों को वो सम्मान नहीं दिया जाता जो उन्हें मिलना चाहिए, डॉक्टरों, नर्सों, कंपाउंडरों, स्वास्थ्य योद्धाओं की सुरक्षा को पूरी तरह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। गैर सरकारी संगठनों की चयनात्मक चुप्पी की आलोचना करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहाकि कुछ गैर सरकारी संगठन एक घटना को लेकर सड़क पर हैं तो एक दूसरी घटना पर कुछ भी ना बोलने की स्थिति में हैं, हमें उनसे सवाल करना होगा, उनकी चुप्पी 9 अगस्त को इस जघन्य अपराध के अपराधियों के दोषी कुकृत्य से भी बदतर है।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि जो लोग राजनीति करना चाहते हैं और ब्राउनी पॉइंट अर्जित करना चाहते हैं, वे अपनी अंतरात्मा की आवाज का जवाब नहीं दे रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने और एक ऐसी व्यवस्था तैयार करने के समाज के दायित्व को रेखांकित करते हुए जहां महिलाएं सुरक्षित महसूस करें उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहाकि जिसने भी यह किया है, उसे उत्तरदायी ठहराया जाएगा, लेकिन समाज को भी उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए, समाज अपने दायित्व से बच नहीं सकता। उन्होंने कहाकि मैं इसे सरकार या राजनीतिक दलों का मामला नहीं बनाना चाहता, यह समाज का मामला है, यह हमारे लिए अस्तित्व संबंधी चुनौती है, इसने हमारे अस्तित्व की बुनियाद को हिलाकर रख दिया है, इसने सवाल उठाया हैकि भारत किसके लिए खड़ा है और हजारों वर्ष से किसके लिए खड़ा है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि यह ब्राउनी पॉइंट अर्जित करने, राजनीतिक लाभ प्राप्त करने का अवसर नहीं है, यह गैर पक्षपातपूर्ण है, इसके लिए द्विदलीय ठोस प्रयासों की आवश्यकता है, लोकतंत्र में सभी हितधारकों को एक मंच पर आनेकी आवश्यकता है।