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हिमाचल का सेब राजनीति व बाज़ार का निशाना!

किसानों को चाहिए अपने सेब का मूल्य और सेब बाज़ार को मुनाफा

हिमाचल प्रदेश सरकार ने यूनिवर्सल कार्टन के नियम लागू किए

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 6 June 2024 01:03:28 PM

himachal's apples

शिमला। हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में अप्रैल-मई में हुई अप्रत्याशित बारिश और ओलावृष्टि ने सेब बागबानों की चिंता बढ़ा रखी है। हालॉकि कम पैदावार, मुनाफा और पिछले सीजन के नुकसान की भरपाई की चिंता केसाथ बागबानों की समस्या राजनीतिक और निजी लाभों से जुड़े अभियान भी हैं, जो कभी जमीनी स्तर तो कभी सोशल मीडिया के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के सेब बाज़ार में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को लेकर भ्रामक जानकारियों का प्रचार-प्रसार करने में जुटे हुए हैं। सेहत का ख्याल रखने वाला सेब एक साथ कई मार झेल रहा है।
हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू, जुब्बल, कोटखाई, कोटगढ़ और शिमला के अलावा सेब की अधिकांश खेती कुल्लू, मंडी, लाहौल, स्पीति, किन्नौर और चंबा जिलों में केंद्रित है। यहां के करीब 20 लाख से अधिक लोग सेब कारोबार से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इस तरह सेब न केवल हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, वहीं हजारों परिवारों की आजीविका का एकमात्र स्त्रोत भी है, लेकिन लगभग दो दशक से किसानों केलिए बेहतर सौदे और अधिक अवसर प्रदान करने का प्रयास कर रहीं निजी कंपनियों के खिलाफ बेबुनियादी मुहिमों ने एकबार फिर किसानों के संकट को बढ़ाने का काम किया है। जिसका नुकसान इन कंपनियों, किसानों को झेलना पड़ेगा, बल्कि मंडियों को संचालित करने वाले आढ़तियों, सेब के आवागमन से जुड़े ट्रांसपोर्टर्स को भी उठाना पड़ेगा।
हिमाचल प्रदेश के सेब बाज़ार में इस समय प्रति बॉक्स पर 800-1000 रूपए तक का नुकसान आंका गया है, यानि 40-50 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से सेब कृषकों को हानि होने का अनुमान है। हिमाचल में पिछले साल बाढ़ के कारण आधी से ज्यादा सेब की फसल बर्बाद हो गई थी, जिससे किसानों की कमाई लागत से भी कम रही। ऐसे में निजी कंपनियों ने हर साल की तरह मंडियों के विपरीत परामर्श प्रक्रिया का आयोजन कर सेबों के मूल्यों पर विचार किया गया था और मंडियों की तुलना में अधिक मूल्य पर सेब की खरीदी की गई थी। किसानों को अपनी उपज कम दामों में बेचने के लिए मजबूर किया जाता था, मगर अब किसानों को प्रति किलोग्राम के हिसाब से अच्छा दाम मिलता है। नतीजतन प्रदेश में पिछले साल राज्य कृषि विपणन बोर्ड की मंडियों में करीब 88 लाख 92 हजार और मंडियों के बाहर 89 लाख 66 हज़ार पेटियों का कारोबार हुआ था।
सेब की खरीद और भुगतान प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है। किसान अपने सामने सेबों की छंटाई देख सकते हैं और सीधे ऑनलाइन भुगतान प्राप्त कर सकते हैं। इतना ही नहीं निजी कंपनियां किसानों को परिवहन, उर्वरक और बागवानी सहायता भी प्रदान करती हैं, जिससे किसानों को अपनी फसल का बेहतर प्रबंधन करने और अधिक पैसा कमाने में मदद मिलती है। जहां पहले किसान मध्यस्थों पर निर्भर थे और उन्हें नकद भुगतान में देरी का सामना करना पड़ता था, अब वे अपना सेब बेचने को पूर्ण रूपसे स्वतंत्र हैं। सेब किसानों के पास सैकड़ों ट्रेडर्स, कमीशन एजेंट्स और मिडिल मैन हैं और किसान अब अपनी फसल किसी को भी देने के लिए आजाद हैं। एक सच यह भी हैकि कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, जैसे-मूल्य में उतार-चढ़ाव और अनुबंधों की जटिलता।
हिमाचल सरकार ने यूनिवर्सल कार्टन के नियम को लागू कर दिया है, जिससे बागवान पेटी में अब अधिकतम 24 किलो ही भर सकेंगे। इससे पहले बिचौलियों के दबाव में सेब बागवानों को एक पेटी में कभी 28 तो कभी 30 किलो सेब रखने पड़ते थे। सेब बाज़ार में इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि निजी कंपनियों का लक्ष्य लाभ कमाना है, लेकिन जब वे किसानों को बेहतर सौदे और अधिक अवसर प्रदान करती है तो यह सभी केलिए फायदेमंद होता है। यह आरोप भी काफी हद तक गलत होगा कि निजी कंपनियां हिमाचल प्रदेश के सेब बाजार पर कब्जा कर रही हैं और किसानों का शोषण कर रही हैं, क्योंकि वे किसानों को सशक्त बनाने और उन्हें उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने में मदद भी कर रही हैं।

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