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गीता प्रेस सिर्फ प्रेस नहीं है, जीवंत आस्था है!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गीता प्रेस के शताब्दी समारोह में शामिल

पहली बार देश का कोई प्रधानमंत्री गीता प्रेस गोरखपुर पहुंचा

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Saturday 8 July 2023 01:56:35 PM

pm narendra modi attends centenary celebrations of gita press

गोरखपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर में ऐतिहासिक गीता प्रेस के शताब्दी समारोह को संबोधित किया और साथही वे चित्रमय शिव पुराण ग्रंथ का विमोचन कर गीता प्रेस परिसर में लीला चित्र मंदिर भी गए। उन्होंने भगवान श्रीराम के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि सावन के महीने में और इंद्रदेव के आशीर्वाद से उन्हें गोरखपुर के गीता प्रेस में उपस्थित होने का अवसर मिला है, जो भगवान शिव के अवतार गुरु गोरखनाथ का पूजा स्थल और कई संतों की कर्मस्थली है। अपनी गोरखपुर यात्रा के बारेमें प्रधानमंत्री ने कहाकि यह विकास और विरासत दोनों के साथ-साथ चलने का अद्भुत उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने कहाकि गीता प्रेस सिर्फ एक प्रिंटिंग प्रेस नहीं है, बल्कि एक जीवंत आस्था है। उन्होंने कहाकि गीता प्रेस का कार्यालय करोड़ों लोगों केलिए किसी मंदिर से कम नहीं है। उन्होंने कहाकि गीता केसाथ कृष्ण आते हैं, कृष्ण केसाथ करुणा और कर्म होता है और ज्ञान केसाथ-साथ वैज्ञानिक शोध की भावना भी बलवती होती है। प्रधानमंत्री ने गीता का उदाहरण देते हुए कहाकि वासुदेव सर्वम् यानी वो सर्वस्व है, सबकुछ वासुदेव से ही है और सबकुछ वासुदेव में ही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि वर्ष 1923 में गीता प्रेस के रूपमें जिस आध्यात्मिक प्रकाश का उदय हुआ था, वह आज पूरी मानवता का मार्गदर्शक बन गया है। उन्होंने इस मानवीय मिशन की स्वर्णिम शताब्दी का साक्षी बनने केलिए स्‍वयं को सौभाग्यशाली मानकर परमात्‍मा को धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि सरकार ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार से सम्‍मानित किया है। गीता प्रेस से महात्मा गांधी के भावनात्मक जुड़ाव का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि गांधीजी गीता प्रेस के बारेमें कल्याण पत्रिका के माध्‍यम से लिखते थे। उन्होंने कहाकि वो महात्‍मा गांधीजी ही थे, जिन्होंने यह सुझाव दिया थाकि कल्याण पत्रिका में विज्ञापन प्रकाशित नहीं किए जाने चाहिए और इस सुझाव का अभीभी पालन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त कीकि देश ने गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करके गीता प्रेस को अपना सम्मान दिया, जो गीता प्रेस के योगदान और इसकी 100 साल पुरानी विरासत का सम्मानस्‍वरूप है। गौरतलब हैकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गीता प्रेस गोरखपुर जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं।
प्रधानमंत्री ने कहाकि इन 100 वर्ष में गीता प्रेस ने करोड़ों पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जो लागत से कम कीमत पर बेची जाती हैं और घर-घर पहुंचाई जाती हैं। उन्होंने गीता प्रेस की पुस्‍तकों के ज्ञान प्रवाह का उल्‍लेख किया और कहाकि इससे बड़ी संख्‍या में पाठकों को आध्यात्मिक और बौद्धिक संतुष्टि मिली तथा साथही साथ समाज केलिए समर्पित नागरिकों का निर्माण भी हुआ। प्रधानमंत्री ने उन विशिष्‍ट समर्पित व्‍यक्तियों को शुभकामनाएं दीं, जो बिना किसी प्रचार के इस ज्ञान यज्ञ में नि:स्वार्थ रूपसे योगदान और सहयोग कर रहे हैं। उन्‍होंने सेठजी जयदयाल गोयन्दका और भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसी हस्तियों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने रेखांकित कियाकि गीता प्रेस जैसा संगठन न केवल धर्म और कर्म से जुड़ा है, बल्कि इसका राष्ट्रीय चरित्र भी है, गीता प्रेस भारत को संगठित करती है, भारत की एकजुटता को सशक्त करती है। नरेंद्र मोदी ने देशभर में इसकी 20 शाखाओं के बारेमें सूचित करते हुए कहाकि देश के प्रत्येक रेलवे स्टेशन पर गीता प्रेस के स्टॉल देखे जा सकते हैं। उन्होंने बतायाकि गीता प्रेस 15 विभिन्न भाषाओं में 1600 ग्रंथ प्रकाशित करती हैं और विभिन्न भाषाओं में भारत के मूल विचारों को जन-जन तक पहुंचाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि गीता प्रेस एक प्रकार से 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की भावना का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहाकि यह कोई संयोग नहीं हैकि गीता प्रेस ने 100 साल की अपनी यात्रा ऐसे समय में पूरी की है, जब देश अपनी स्‍वाधीनता के 75 साल का उत्‍सव मना रहा है। उन्होंने वर्ष 1947 से पहले जब भारत अपने पुनर्जागरण केलिए विभिन्न क्षेत्रों में लगातार प्रयासरत था उस समय को याद करते हुए कहाकि भारत की आत्मा को जागृत करने केलिए विभिन्न संस्थान प्रयत्‍नशील रहे, इसके परिणामस्‍वरूप 1947 तक भारत मन और आत्मा केसाथ गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने केलिए पूरी तरह से तैयार था। उन्होंने कहाकि गीता प्रेस की स्थापना भी इसके लिए एक प्रमुख आधार बनी। प्रधानमंत्री ने उस समय पर दु:ख व्यक्त किया जब सौ साल पहले का ऐसा समय जब सदियों की गुलामी ने भारत की चेतना को धूमिल कर दिया था और विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत के पुस्तकालयों को जला दिया था। उन्होंने कहाकि ब्रिटिशकाल में गुरुकुल और गुरु परंपरा लगभग नष्ट हो गई थी। उन्होंने भारत के पवित्र ग्रंथों के विलुप्त होने की शुरुआत पर भी प्रकाश डाला, क्योंकि उस समय प्रिंटिंग प्रेस उच्च लागत के कारण आम आदमी की पहुंच से बाहर थी।
प्रधानमंत्री ने कहाकि गीता और रामायण के बिना हमारा समाज कैसे चलेगा? उन्होंने कहाकि जब मूल्यों और आदर्शों के स्रोत सूखने लगते हैं तो समाज का प्रवाह अपने आप रुक जाता है, जब-जब अधर्म व आतंक का प्रकोप बढ़ा और सत्य पर खतरे के बादल मंडराने लगे, तब-तब श्रीमद् भागवद्गीता हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनकर उभरी है। प्रधानमंत्री ने गीता का संदर्भ देते हुए बतायाकि जब कभी धर्म और सत्य की सत्ता पर संकट आता है, तब भगवान उसकी रक्षा केलिए धरती पर अवतरित होते हैं। गीता के दसवें अध्याय, जिसमें भगवान के किसी भी रूपमें प्रकट होने की बात की गई है का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि कभी-कभी मानवीय मूल्यों और आदर्शों को पुनर्जीवित करने केलिए गीता प्रेस जैसी संस्थाओं का जन्म होता है। उन्होंने कहाकि गीता प्रेस ने 1923 में अपनी स्थापना केसाथ ही भारत में चेतना और चिंतन के प्रवाह को तीव्र कर दिया। उन्होंने कहाकि गीता सहित हमारे धर्मग्रंथ एकबार फिर घर-घर में गुंजायमान होने लगे और हमारा मन भारत के मानस में घुल-मिल गया। उन्होंने कहाकि पारिवारिक परंपराएं और नई पीढ़ियां इन ग्रंथों से जुड़ने लगीं और हमारी पवित्र पुस्तकें आने वाली पीढ़ियों केलिए आधार बनने लगीं।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि गीता प्रेस इस बात का प्रमाण हैकि जब आपके उद्देश्य शुद्ध होते हैं, आपके मूल्य शुद्ध होते हैं, तब सफलता पर्याय बन जाती है। उन्होंने रेखांकित कियाकि एक संस्था के रूपमें गीता प्रेस ने हमेशा सामाजिक मूल्यों को समृद्ध किया है और लोगों केलिए कर्तव्य का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने गंगा नदी की स्वच्छता, योग विज्ञान, पतंजलि योग सूत्र के प्रकाशन, आयुर्वेद से जुड़े आरोग्य अंक लोगों को भारतीय जीवनशैली से परिचित कराने केलिए, जीवनचर्य अंक समाज की सेवा के आदर्शों, सेवा अंक और दान महिमा का उदाहरण दिया। नरेंद्र मोदी ने कहाकि इन सभी प्रयासों के पीछे देश सेवा की प्रेरणा जुड़ी हुई है और राष्ट्रनिर्माण का संकल्प रहा है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि संतों की तपस्या कभी निष्फल नहीं होती, उनके संकल्प कभी खोखले नहीं होते। गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने और अपनी विरासत पर गर्व करने को लेकर लालकिले से अपने संबोधन का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि देश विकास और विरासत दोनों को साथ लेकर आगे बढ़ रहा है, एक तरफ जहां भारत डिजिटल प्रौद्योगिकी में नए कीर्तिमान बना रहा है, वहीं काशी गलियारे के पुनर्विकास के बाद काशी में विश्वनाथ धाम का दिव्यस्वरूप भी उभरकर आया है।
प्रधानमंत्री ने विश्वस्तरीय अवसंरचना के निर्माण, साथही केदारनाथ और महाकाल महालोक जैसे तीर्थों की भव्यता का साक्षी बनने का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलायाकि सदियों बाद अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का स्वप्न भी साकार होने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने छत्रपति शिवाजी महाराज के समय के चिन्ह को प्रदर्शित करने वाली नई नौसेना प्रतीक का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कर्तव्य की भावना को प्रेरित करने केलिए राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करने, जनजातीय परंपराओं और जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करने केलिए देशभर में संग्रहालयों के निर्माण और पवित्र प्राचीन मूर्तियों, जिन्हें चुराकर देश के बाहर भेज दिया गया था को पुनर्स्थापित करने की बात भी कही। प्रधानमंत्री ने कहाकि विकसित और आध्यात्मिक भारत का विचार हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें दिया था और आज उसे सार्थक होते देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि हमारे साधु-संतों की साधना भारत के सर्वांगीण विकास को ऐसी ही ऊर्जा देती रहेगी। प्रधानमंत्री ने समापन करते हुए कहाकि हम एक नए भारत का निर्माण करेंगे और विश्व कल्याण के अपने विजन को सफल बनाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर रेलवे स्टेशन से गोरखपुर-लखनऊ और जोधपुर-अहमदाबाद (साबरमती) वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को भी झंडी दिखाकर रवाना किया। प्रधानमंत्री ने लगभग 498 करोड़ की लागत से गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास का शिलान्यास भी किया और गोरखपुर रेलवे स्टेशन के प्रस्तावित मॉडल का निरीक्षण किया। गोरखपुर-लखनऊ वंदे भारत एक्सप्रेस अयोध्या से होकर गुजरेगी और पर्यटन को बढ़ावा देने केसाथ राज्य के महत्वपूर्ण शहरों के रेल परिवहन संपर्क में सुधार करेगी। जोधपुर-साबरमती वंदे भारत एक्सप्रेस, क्षेत्र के सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए जोधपुर, आबू रोड और अहमदाबाद जैसे प्रसिद्ध स्थानों केलिए रेल-परिवहन संपर्क का विस्तार करेगी। लगभग 498 करोड़ रुपये की लागत से गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास का शिलान्यास भी किया गया है। पुनर्विकसित होने केबाद गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं प्राप्त होंगी। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर के सांसद रवि किशन, गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के महासचिव विष्णु प्रसाद चांदगोठिया, अध्यक्ष केशोराम अग्रवाल और गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।

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