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'भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं'

प्रधानमंत्री ने विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय व अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ की पहल

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Thursday 20 April 2023 06:46:59 PM

pm narendra modi

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा हैकि भगवान बुद्ध व्यक्ति से आगे बढ़कर एक बोध हैं, बुद्ध एक अनुभूति हैं, जो व्यक्ति से आगे बढ़कर है, वे एक सोच हैं, जो स्वरूप से आगे बढ़कर है और बुद्ध चित्रण से आगे बढ़कर एक चेतना हैं। उन्होंने कहाकि बुद्ध की यह चेतना शाश्वत है। उन्होंने ये उद्गार आज नई दिल्ली के होटल अशोक में विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहाकि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े इतने सारे लोगों की उपस्थिति बुद्ध के प्रसार का प्रतिनिधित्व करती है, जो मानवता को एक सूत्र में बांधती है। उन्होंने दुनिया के कल्याण केलिए वैश्विक स्तरपर भगवान बुद्ध के करोड़ों अनुयायियों की सामूहिक इच्छा और संकल्प की ताकत कोभी रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर फोटो प्रदर्शनी का अवलोकन किया और बुद्ध प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए। उन्होंने उन्नीस प्रतिष्ठित भिक्षुओं को भिक्षु वस्त्र (चीवर दान) भी भेंट किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में दुनिया के विभिन्न हिस्से से आए लोगों का स्वागत किया। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित कियाकि अतिथि देवो भव: की भावना बुद्ध की इस भूमि की परंपरा है और बुद्ध के आदर्शों के अनुरूप जीवन जीने वाले इतने सारे विभूतियों की उपस्थिति हमें स्वयं बुद्ध के हमारे आसपास होने का अनुभव कराती है। प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त कियाकि यह पहला विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन सभी देशों के प्रयासों केलिए एक प्रभावी मंच तैयार करेगा। उन्होंने इस महत्वपूर्ण आयोजन केलिए संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ को धन्यवाद दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म केसाथ अपने व्यक्तिगत जुड़ाव पर प्रकाश डाला, उनका गृहक्षेत्र वडनगर एक प्रमुख बौद्ध केंद्र रहा है, ह्वेन त्सांग ने वडनगर का दौरा किया था। बौद्ध विरासत केसाथ जुड़ाव को और गहरा करते हुए नरेंद्र मोदी ने सारनाथ के संदर्भ में काशी का जिक्र भी किया।
विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन भारत की आजादी के 75वें वर्ष के दौरान उस समय हो रहा है, जब देश आजादी का अमृतकाल मना रहा है प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को रेखांकित कियाकि भारत केपास अपने भविष्य केलिए विशाल लक्ष्य और वैश्विक कल्याण के नए संकल्प भी हैं। उन्होंने कहाकि वैश्विक स्तरपर भारत के हाल में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के पीछे स्वयं भगवान बुद्ध की प्रेरणा है। परियक्ति (सिद्धांत), पटिपत्ति (व्यवहार) और पटिवेध (सिद्धि) के बौद्ध मार्ग को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत की पिछले 9 वर्ष की यात्रा के दौरान इन्हीं तीन बिंदुओं को अपनाने के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहाकि भारत ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार केलिए समर्पणभाव से काम किया है। उन्होंने आईबीसी के सहयोग से भारत और नेपाल में बौद्ध सर्किट के विकास, सारनाथ एवं कुशीनगर, कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और लुम्बिनी में बौद्ध विरासत और संस्कृति के भारत अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के जीर्णोद्धार के बारे में चर्चा की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानवता के मुद्दों केप्रति भारत में एक अंतर्निहित सहानुभूति केलिए भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को श्रेय दिया। उन्होंने शांति मिशन और तुर्किए में भूकंप जैसी आपदाओं के दौरान बचाव कार्य में भारत के प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने कहाकि 140 करोड़ भारतीयों की इस भावना को दुनिया देख रही है, समझ रही है और स्वीकार कर रही है। उन्होंने कहाकि आईबीसी जैसे मंच समान विचारधारा वाले और समान हृदय वाले देशों को बुद्ध के धम्म और शांति का प्रसार करने का अवसर दे रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि समस्या से समाधान तक पहुंचने की यात्रा ही बुद्ध की वास्तविक यात्रा है, उन्होंने अपने महलों के जीवन और साम्राज्य को इसलिए त्याग दिया, क्योंकि उन्हें दूसरों के जीवन का दर्द महसूस हुआ। उन्होंने इस बात पर जोर दियाकि एक सुखी विश्व के लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यह हैकि स्व से निकलकर संसार और संकुचित सोच को त्यागकर समग्रता के बुद्ध के मंत्र को अपनाया जाए।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि एक बेहतर और स्थिर दुनिया तभी हासिल की जा सकती है, जब हम संसाधनों की कमी से जूझने वाले देशों केबारे में विचार करें, यह समय की मांग हैकि हर व्यक्ति और राष्ट्र की प्राथमिकता देशहित केसाथ विश्वहित भी हो। प्रधानमंत्री ने कहाकि वर्तमान समय इस सदी का सबसे चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आतंकवाद एवं धार्मिक कट्टरता की समस्या और विभिन्न प्रजातियों के लुप्त होने और ग्लेशियरों के पिघलने केसाथ-साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौती सामने है। उन्होंने कहाकि इन सबके बीच ऐसे लोग हैं, जो बुद्ध और सभी प्राणियों के कल्याण में विश्वास करते हैं, यही आशा यही विश्वास इस धरती की सबसे बड़ी ताकत है, जब यह आशा एक हो जाएगी तो बुद्ध का धम्म पूरे विश्व की आस्था बन जाएगी और बुद्ध की अनुभूति मानवता की आस्था बन जाएगी। नरेंद्र मोदी ने बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहाकि आधुनिक समय की सभी समस्याओं का समाधान भगवान बुद्ध की प्राचीन शिक्षाओं के माध्यम से होता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि भगवान बुद्ध ने स्थायी शांति केलिए युद्ध, हार और जीत के विचार को त्यागने का उपदेश दिया।
प्रधानमंत्री ने कहाकि दुश्मनी का मुकाबला दुश्मनी से नहीं किया जा सकता और खुशहाली एकता में निहित है, इसी तरह भगवान बुद्ध की यह शिक्षा कि दूसरों को उपदेश देने से पहले स्वयं के आचरण को देखना चाहिए, आजकी दुनिया में प्रचलित दूसरों पर अपने विचारों को थोपने के खतरे को दूर कर सकती है। प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध की अपनी पसंदीदा शिक्षा ‘अप्प दीपो भवः’ की चर्चा करते हुए भगवान की शिक्षाओं की शाश्वत प्रासंगिकता के बारेमें विस्तार से बात की। उन्होंने कुछ साल पहले संयुक्तराष्ट्र में दिएगए इस कथन की याद दिलाई कि हम वो देश हैं, जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि बुद्ध का मार्ग भविष्य का मार्ग और स्थिरता का मार्ग है, अगर दुनिया ने बुद्ध की शिक्षाओं का पालन किया होता तो उसे जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना नहीं करना पड़ता। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह संकट इसलिए आया, क्योंकि कुछ देशों ने दूसरों और आने वाली पीढ़ियों के बारेमें सोचना बंद कर दिया, यह गलती विनाशकारी अनुपात में जमा हुई। बुद्ध ने व्यक्तिगत लाभ के बारेमें सोचे बिना अच्छे आचरण अपनाने का उपदेश दिया, क्योंकि ऐसा व्यवहार समग्र कल्याण की ओर ले जाता है।
प्रधानमंत्री ने बुद्ध की प्रेरणाओं से प्रभावित भारत की पहल ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट' या ‘मिशन लाइफ’ पर प्रकाश डालते हुए कहाकि अगर लोग जागरुक होकर अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं तो जलवायु परिवर्तन की इस बड़ी समस्या से भी निपटा जा सकता है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि मिशन लाइफ बुद्ध की प्रेरणाओं से प्रभावित है और यह बुद्ध के विचारों को आगे बढ़ाता है। प्रधानमंत्री ने भौतिकवाद और स्वार्थ की परिभाषाओं से बाहर आने और भवतु सब मंगलन की भावना को आत्मसात करने की जरूरत पर जोर दिया, यानी बुद्ध को प्रतीक ही नहीं, बल्कि विचार भी बनाना चाहिए। उन्होंने कहाकि यह संकल्प तभी पूरा होगा, जब हम पीछे न मुड़ने और हमेशा आगे बढ़ने के बुद्ध के वचनों को याद रखेंगे। प्रधानमंत्री ने विश्वास जतायाकि ये सारे संकल्प सभी केसाथ आने से सफल होंगे। केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू, केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल एवं मीनाक्षी लेखी और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव डॉ धम्मपिया इस अवसर पर उपस्थित थे।
विश्व बौद्ध सम्मेलन का विषय समकालीन चुनौतियों का जवाब: प्रथाओं केलिए दर्शन है। यह शिखर सम्मेलन बौद्ध और सार्वभौमिक चिंताओं के संबंध में वैश्विक बौद्ध धम्म नेतृत्व और विद्वानों को एकसाथ लाने का एक प्रयास है, ताकि इन मामलों को सामूहिक रूपसे संबोधित करने के लिए नीतिगत परामर्श प्रस्तुत किया जा सके। सम्मेलन में होनेवाले विचार-विमर्श के दौरान इस बात का पता लगाया जाएगाकि समकालीन परिस्थितियों में कैसे बुद्ध के धम्म के मौलिक मूल्यों से प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त किये जा सकते हैं। सम्मेलन में दुनियाभर के प्रतिष्ठित विद्वान, संघ के अग्रणी व्यक्ति और धर्म के अनुयायी भाग ले रहे हैं, जो वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे तथा बुद्ध धम्म में इनके समाधान की तलाश करेंगे, जो सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित होंगे। दो दिनी सम्मेलन में चार विषयों केतहत विचार-विमर्श किया जाएगा, बुद्ध का धम्म और शांति, बुद्ध का धम्म, पर्यावरण संकट, स्वास्थ्य और स्थायित्व, नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण, बुद्ध धम्म तीर्थयात्रा, जीवंत विरासत और बुद्ध के अवशेष, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के देशों केसाथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों का सुदृढ़ आधार।

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