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‘तंबाकू मुक्‍त भारत’ का लक्ष्‍य हासिल हो सकेगा?

सरिता बरारा

Friday 07 June 2013 05:19:44 AM

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नई दिल्‍ली। विश्‍व में तंबाकू के प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष इस्‍तेमाल के कारण प्रति वर्ष करीब 60 लाख व्‍यक्तियों की मृत्‍यु हो जाती है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) के अनुसार यदि इस आदत पर अंकुश के लिए तत्‍काल प्रभावी कदम नहीं उठाये गये, तो वर्ष 2030 तक यह संख्‍या 80 लाख तक पहुंच सकती है। भारत में प्रत्‍येक 10 में से एक वयस्‍क व्‍यक्ति की मृत्‍यु तंबाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है। तंबाकू प्रति वर्ष 15 लाख कैंसर, 42 लाख हृदय रोगों और 37 लाख फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनता है। मुंह के कैंसर के सर्वाधिक रोगी अपने ही देश में पाये जाते हैं।
अधिकृत आंकड़ों के अनुसार बीड़ी, सिगरेट, गुटका, खाने के तंबाकू और सूंघने के तंबाकू आदि के रूप में देश में 4300 लाख (टन) तंबाकू खप जाता है। करीब 14 करोड़ पुरुष और चार करोड़ महिलाएं तंबाकू सेवन की आदी हैं और 15 से 49 वर्ष के आयु-वर्ग में 57 प्रतिशत पुरुष और 10 प्रतिशत महिलाएं, किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करती हैं। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय का अनुमान है कि तंबाकू वर्ष 2020 तक भारत में प्रति वर्ष 13 प्रतिशत व्‍यक्तियों की मृत्‍यु का जिम्‍मेदार बन जाएगा। तंबाकू सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति में यदि कोई हस्‍तक्षेप न किया गया, तो तीन करोड़ 84 लाख बीड़ी और सिगरेट पीने वाले व्‍यक्तियों में क्रमश: तीन करोड़ 84 लाख और एक करोड़ 32 लाख व्‍यक्ति समय से पहले काल ग्रास बन जाएंगे। दूसरे दर्जे का धूम्रपान भी एक बड़ी समस्‍या है। कुछ तंबाकू उत्‍पादों को सुरक्षित माना जाता है जो कि गलत विश्‍वास है, क्‍योंकि तंबाकू का सेवन हररूप में नुकसानदेह है।
गुटका, पैकेट जैसे मुद्दों को लेकर 2011 और 2012 में खाद्य सुरक्षा खाद्य मानक कानून में कई संशोधन किये गये। इन संशोधनों के परिणामस्‍वरूप 24 राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारें तंबाकू वाले गुटके और पान मसाले पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं, लेकिन उन प्रतिबंधों के अमल पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा हुआ है। उच्‍चतम न्‍यायालय ने पिछले महीने ही संबद्ध राज्‍यों से प्रतिबंधों पर अमल को लेकर रिपोर्ट मांगी है। सितंबर 2012 में जारी नये नियमों के अनुसार तंबाकू उत्‍पादों की पैकिंग पर चित्रात्‍मक चेतावनी में तंबाकू के इस्‍तेमाल से प्रभावित होने वाले मानव अंगों को दर्शाना और लाल रंग में ‘धूम्रपान जानलेवा है’, तंबाकू ‘जानलेवा है’ लिखना अनिवार्य कर दिया गया है। यह सब तंबाकू की पैकिंग के 40 प्रतिशत क्षेत्र में होना चाहिए।
स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय और डब्‍ल्‍यूएचओ के तत्‍वावधान में हाल ही में कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के सम्‍मेलनों में तंबाकू उत्‍पादों के विज्ञापनों और प्रायोजन पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की गई। सम्‍मेलन में कहा गया कि प्रतिबंधों के बावजूद तंबाकू उत्‍पादों के विज्ञापनों की भरमार रहती है। सम्‍मेलन में शामिल गैर-सरकारी संगठनों में युवाओं में स्‍वास्‍थ्‍य से संबद्ध सूचना के सम्‍प्रेषण से जुड़ा संगठन-‘हृदय’ और वालेंटरी हेल्‍थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया-‘वीएचएआई शामिल थे। तंबाकू-उत्‍पादों के विज्ञापन, सिगरेट और अन्‍य तंबाकू उत्‍पाद व्‍यापार, उत्‍पादन, आपूर्ति और वितरण नियमन कानून 2003 के तहत प्रतिबंधित हैं।
डब्‍ल्‍यूएचओ के अध्‍ययन के अनुसार धूम्रपान के आदी 70 प्रतिशत व्‍यक्ति धूम्रपान छोड़ने की इच्‍छा तो रखते हैं, लेकिन प्रति वर्ष उनमें से केवल 30 प्रतिशत व्‍यक्ति ही उसकी कोशिश करते हैं, जबकि उसमें सफलता केवल तीन से पांच प्रतिशत व्‍यक्तियों को ही मिल पाती है। इस वर्ष-विश्‍व तंबाकू विहीन दिवस (31 मई 2013) का आदर्श वाक्‍य है-‘तंबाकू उत्‍पादों के विज्ञापन संवर्द्धन और प्रायोजन पर प्रतिबंध’।
डब्‍ल्‍यूएचओ के 2013 के अभियान का उद्देश्‍य तंबाकू उद्योग को, तंबाकू उत्‍पादों के विज्ञापन, संवर्द्धन और प्रायोजन पर प्रतिबंधों को कुंद करने से रोकने के लिए स्‍थानीय, राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय प्रयासों को तेज करना है, क्‍योंकि तंबाकू जनित बीमारियों से प्रति वर्ष मरने वाले 60 लाख व्‍यक्तियों में छह‍ लाख व्‍यक्ति अप्रत्‍यक्ष धूम्रपान से मरते हैं। नि:संदेह जब तक नियमों, कानूनों और जन-जागरूकता, के जरिये तंबाकू-उपभोग की सभी किस्मों से छुटकारा नहीं पा लिया जाता, ‘तंबाकू मुक्‍त भारत’ का लक्ष्‍य हासिल नहीं किया जा सकता।

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