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युवा देश का इतिहास समझ रहे हैं-राष्ट्रपति

'अपने ज्ञान की शक्ति से दुनिया का नेतृत्व करने को तैयार रहें'

जनजातीय अनुसंधान अस्मिता अस्तित्व एवं विकास कार्यशाला

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 29 November 2022 02:35:51 PM

president droupadi murmu

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से 'जनजातीय अनुसंधान-अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास' पर राष्ट्रीय कार्यशाला के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में मुलाकात की। राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान से 'स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान' पुस्तक की प्रथम प्रति भी प्राप्त की। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहाकि प्रौद्योगिकी और परंपराओं केसाथ आधुनिकता एवं संस्कृति का सम्मिश्रण समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि हमें ज्ञान की शक्ति से दुनिया का नेतृत्व करने केलिए तैयार रहना चाहिए, जनजातीय समाज के ज्ञान का प्रचार और विकास भारत को ज्ञान महाशक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि जनजातीय समाज के लोग, लेखक तथा शोधकर्ता अपने विचारों, कार्यों और शोध से आदिवासी समाज के विकास में अपना अमूल्य योगदान देंगे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विश्वास व्यक्त कियाकि युवाओं का झुकाव हमारे समाज के इतिहास और संस्कृति की विशेषताओं के बारेमें शोध और लेखन की ओर होगा। उन्होंने कहाकि भारत तभी आगे बढ़ सकता है, जब हमारे युवा हमारे देशके गौरवशाली इतिहास को समझने केसाथ देश और समाज की समृद्धि के सपने देखें एवं इन सपनों को साकार करने केलिए हर संभव प्रयास करें। राष्ट्रपति ने आजादी के अमृत महोत्सव के एक भाग के रूपमें स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नेताओं के योगदान को प्रदर्शित करनेवाली फोटो प्रदर्शनियों एवं संगोष्ठियों सहित प्रमुख विश्वविद्यालयों में कार्यक्रमों के आयोजन केलिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सराहना की। उन्होंने कहाकि युवा हमारे इतिहास और परंपराओं को समझने केलिए प्रेरित हो रहे हैं और ऐसे आयोजनों से आदिवासी युवाओं को अपने पूर्वजों के बलिदान और अपने समाज के स्वाभिमान की महान परंपरा पर गर्व होगा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि इतिहास हमें बताता हैकि जनजातीय समाज ने कभी दासता स्वीकार नहीं की, देशपर किसीभी हमले का प्रत्युत्तर देने में वे हमेशा सबसे आगे रहते थे, देशभर में जनजातीय समुदायों के संथाल, हूल, कोल, बिरसा, भील जैसे कई विद्रोहों में किएगए संघर्ष और उनके बलिदान सभी नागरिकों को प्रेरित कर सकते हैं। राष्ट्रपति ने इस तथ्य की ओर इंगित करते हुएकि हमारे देशमें अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 10 करोड़ से अधिक है, कहाकि हमारे सामने इन सभी तक विकास का लाभ पहुंचाने और साथही उनकी सांस्कृतिक पहचान बरकरार रखने की चुनौती है, इसके अलावा उनके विकास केलिए चर्चाओं और शोध में उनकीभी भागीदारी आवश्यक है। राष्ट्रपति ने कहाकि 'स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान' पुस्तक प्रकाशित करना एक अच्छी पहल है। उन्होंने कहाकि इस पुस्तक के माध्यम से आदिवासी समुदायों के संघर्ष और बलिदान की गाथाओं का पूरे देशमें व्यापक प्रचार-प्रसार होगा।

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