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तो सुप्रीम कोर्ट की साख भी दांव पर!

नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट की चौंकाने वाली टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट पर देशभर में उठ सकते हैं गंभीर लोकापवाद

Friday 1 July 2022 11:05:26 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

supreem court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज नूपुर शर्मा मामले में यह क्या कह दिया कि अभी से ही सुप्रीम कोर्ट पर देशभर में गंभीर लोकोपवाद उठ खड़े हुए हैं। यद्यपि जनमानस में कोर्ट के न्याय पर विश्वास और उसके सम्मान की एक वैश्विक साख है, तथापि विभिन्न अदालती मामलों में कुछ ऐसे भी फैसले सामने आने लगे हैं, जिनपर लोकापवाद हैं और कोर्ट की साख पर आंच दिखाई दे रही है। परिणामस्वरूप अवमानना की कार्रवाई की परवाह किए बिना अब जनसामान्य और मीडिया में जजों, उनके फैसलों और न्यायिक प्रणाली पर मुंह खुलने लगे हैं। दरअसल भाजपा की प्रवक्ता रही नूपुर शर्मा ने सुप्रीमकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थीकि उसकी जान को गंभीर खतरा हो गया है, इसलिए उसके खिलाफ अलग-अलग राज्यों में जो केस दर्ज हुए हैं, वे सभी उसकी सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली ट्रांस्फर कर दिए जाएं, मगर ऐसा लगाकि सुप्रीम कोर्ट शायद पहले से तय किए बैठा था और उसने तपाक से ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई कि देश में जो हालात बने हैं, उसके लिए उनका बयान जिम्मेदार है। सुप्रीमकोर्ट ने कहाकि उसकी बेलगाम ज़ुबान ने पूरे देश को आग में झोंक दिया है, जिसके लिए वह देश से सार्वजनिक रूपसे और टीवी पर आकर माफी मांगे। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को अपनी याचिका भी वापस लेने को मजबूर कर दिया है। इसके बाद नूपुर शर्मा को उन सभी जगहों पर जाना होगा, जहांसे भी उसे समन आएगा।
सुप्रीमकोर्ट में नूपुर शर्मा की याचिका खारिज होते ही अब निश्चित रूपसे उसके जीवन का खतरा बढ़ गया है, क्योंकि उसका सिर कलम कर हत्या करने, उसके साथ रेप करके उसके टुकड़े करने की धमकी देनेवाले इस्लामिक आतंकवादियों की और ज्यादा हिम्मत बढ़ गई है। गौरतलब हैकि ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे और शिवलिंग के मामले पर टीवी चैनल पर बहस में एक पैनलिस्ट तस्लीम रहमानी और एक और मुस्लिम स्कॉलर के भगवान शिव पर बार-बार अत्यधिक अपमानजनक और आपत्तिजनक कटाक्ष पर भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने भी कहा थाकि कुछ लोग हिंदू आस्था का लगातार मजाक उड़ा रहे हैं। उसने भी पैगम्बर के बारे में हदीस में दी गई जानकारी का उल्लेख कर दिया था। सांप्रदायिक कंटेंट शेयर करने के लिए कुख्यात आल्ट यूट्यूब चैनल के संचालक मोहम्मद जुबैर ने टीवी डिबेट के इस अंश को एडिट कर उसे पैगंबर के अपमान से जोड़कर जहां-तहां शेयर कर दिया। देश-विदेश में इसका यह संदेश गयाकि नूपुर शर्मा ने पैगंबर का अपमान किया है, जबकि नूपुर शर्मा ने वही कहा था जो हदीस में लिखा था। वह नूपुर शर्मा का अपना बयान नहीं था, लेकिन एक कहावत हैकि कौआ कान ले गया, जिसपर कान नहीं देखा गया और लोग कौवे के पीछे दौड़ पड़े। टीवी बहस में भगवान शिव का बार-बार अपमान करने वाला पैनलिस्ट तस्लीम रहमानी और मुस्लिम स्कॉलर, टीवी डिबेट को एडिट करके शेयर करने वाला मोहम्मद जुबैर तो पिक्चर से गायब हो गए और नूपुर शर्मा इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर लेली गई।
टीवी समाचार चैनलों ने इस मामले में आग में घी का काम किया और वे असदउद्दीन ओवैसी, कट्टरपंथी मौलानाओं, मुस्लिमपरस्त राजनीतिक दलों के नेताओं के नूपुर शर्मा के द्वारा नबी के कथित अपमान की निंदा करने के बयान और उसपर डिबेट चलाते रहे। नूपुर शर्मा की बात नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गई है। टीवी चैनल अगर उस टीवी डिबेट की स्थिति स्पष्ट कर दिए होते तो यह मामला उसी समय समाप्त हो जाता। नूपुर शर्मा ने ग़लत दिशा में मामला बढ़ते देख, अपनी बात स्पष्ट करते हुए न केवल अपने मुंहसे उल्लेख किया हदीस का वह कथन वापस ले लिया, बल्कि मुस्लिम समाज से माफी भी मांग ली थी, लेकिन अपवाद को छोड़कर सभी टीवी चैनल पैगंबर पर अपनी ब्रेकिंग न्यूज़ और टीआरपी बढ़ाने में ही लगे रहे। ओवैसी और इस्लामिक कट्टरपंथी मीडिया का एक वर्ग उस कथित फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को नहीं घेर रहा है, जो वास्तव में इस झूंठी बेअदबी का सूत्रधार है। किसी इस्लामिक विद्वान ने भी अपने समाज को यह समझाने की कोशिश नहीं कीकि यह नूपुर शर्मा का अपना बयान नहीं है, बल्कि यह बात पहले से ही हदीस और इस्लामिक किताबों में है। दरअसल इस मामले को तूल देने के पीछे कुछ और ही बड़ी कहानी है, जिसे पूरा देश जानता है और वह है ज्ञानव्यापी मस्जिद की सच्चाई सामने आना, जिसमें इस्लामिक कट्टरपंथियों को भय हैकि अब यह मस्जिद भी उनके हाथ से गई और इसीकी आड़ में मोदी और भाजपा का प्रबल विरोध।
ज्ञानव्यापी मस्ज़िद के सारे तर्क सुप्रीमकोर्ट में फेल होने के बाद वाराणसी कोर्ट में भी झटके पर झटके लगने, मस्ज़िद की सच्चाई सामने आने के बाद उसे बचाने के सारे रास्ते बंद होने से मुस्लिम कट्टरपंथियों के हाथ यह टीवी डिबेट लग गई और उसे दुनियाभर में पैगम्बर के अपमान से जोड़कर उछाल दिया गया। देश में तनावपूर्ण माहौल बना दिया गया है। मामला पैगम्बर के अपमान के नाम पर दबाव बनाकर ज्ञानव्यापी मस्जिद को बचाने की कोशिश करना है, साथ ही साथ भारतीय जनता पार्टी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ताबड़तोड़ हमले करना है, जिनके एक्शन के कारण देश में इस्लामिक आतंकवाद की जड़ें उखड़ रही हैं। देश के कई विपक्षीदल भी इन विघटनकारी शक्तियों के साथ खड़े हैं। कहा जा रहा हैकि उन्हें भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान से मतलब है। इसमें भारत विरोधी पाकिस्तान और कुछ इस्लामिक देश भी पूरी तरह सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। वास्तव में जो हो रहा है, वह मीडिया, देश-दुनिया और देश का सुप्रीम कोर्ट भी देख रहा है। यह सच्चाई सभी को पता हैकि नूपुर शर्मा का कितना दोष है, कितना नहीं। नूपुर शर्मा के खिलाफ देशभर में दर्जनों एफआईआर दर्ज होती हैं और उसे जहां-तहां के थानों में पेश होने केलिए नोटिस जारी होरहे हैं, देश में एक तनावपूर्ण वातावरण बनाया जा रहा है।
नूपुर शर्मा की जान का खतरा इस हद तक बढ़ चुका हैकि उसको सरकार को दिल्ली में विशेष सुरक्षा देनी पड़ती है। नूपुर शर्मा केलिए हर राज्य में दर्ज एफआईआर का सामना करने जाना संभव नहीं है, इसीलिए वह सुप्रीम कोर्ट जाती हैकि उसके खिलाफ देशभर में जो मुकद्में दर्ज हुए हैं, वह दिल्ली में एक जगह स्थानांतरित कर दिए जाएं, ताकि वह अपनी पैरवी कर सके। यहीं से एक खेल शुरू होता है। एक अप्रत्याशित घटनाक्रम न्याय का मार्ग छोड़कर राजनीति के मार्ग पर चलता है, जिसकी परिणिति आज जब हुई तो सभी भौंचक्के रह गए। देश की विघटनकारी शक्तियां और राजनीतिक पार्टियां जश्न मनाने लगीं हैं, लेकिन जो न्यायिक मामलों के जानकार हैं, विशेषज्ञ हैं, वे सुप्रीम कोर्ट की नूपुर शर्मा पर राजनेताओं जैसी तल्ख टिप्पणियां मान रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर मंथन हो रहा है, उसके सुप्रीमकोर्ट की साख पर आंच के रूपमें दूरगामी परिणाम देखे जा रहे हैं। नूपुर शर्मा पर बिना जांच और चार्जशीर्ट के सुप्रीम कोर्ट के फैसले और टिप्पणी पर बड़े-बड़े संविधान विशेषज्ञों के मुंह खुले के खुले रह गए हैं। कई सवाल सुप्रीम कोर्ट से अपना उत्तर मांगने को खड़े हो गए हैं। जैसे-सुप्रीम कोर्ट के पास इस मामले में वो कौनसे तथ्य हैं, जिनके आधार पर वह नूपुर शर्मा से कह रहा हैकि उसके कारण देश का माहौल खराब हुआ है और वह टीवी पर आकर देश से माफी मांगे।
नूपुर शर्मा ने क्या वास्तव में देश का माहौल खराब किया है? सुप्रीम कोर्ट के पास नूपुर शर्मा के कारण देश का माहौल खराब होने से संबंधित कोई जांच रिपोर्ट है, जिसमें उसको दोषी ठहराया गया है? नूपुर शर्मा ने तो सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थीकि दूसरे राज्यों में उसके खिलाफ दर्ज मामले सुनवाई केलिए दिल्ली ट्रांस्फर कर दिए जाएं, क्योंकि वहां जानेसे उसकी जान को गंभीर खतरा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। न्यायिक विशेषज्ञों का सवाल हैकि क्या यह कोई एविडेंस बेस्ड निर्णय है या किसी की पर्सनल ओपिनियन? सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी से पहले इस मामले की कोई जांच कराई थी? जिसपर ये ऑब्जरवेशन दिए गए। नूपुर शर्मा के कथन के बारेमें अभी तक कोई ऐसी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट सामने नहीं हैकि उसीके कारण पूरे देश में आग लग गई है और उसने जो कहा है, वह बिल्कुल गलत है। विधि विशेषज्ञ बता रहे हैंकि बुखारी 5134 इंटरनेट पर मौजूद है, जो हदीस का चैप्टर वन मैरिजेज है, उसमें वही लिखा है जो नूपुर शर्मा ने कहा है, इसलिए वे कह रहे हैंकि उसवक्त इन प्रोसेस आफ नेचुरल जस्टिस में नूपुर शर्मा से कम से कम यह तो पूछा जाना चाहिए थाकि उसने जो कहा है, वह कहां से लिया है? उसका आधार क्या है?
न्यायिक विशेषज्ञ कहते हैंकि कुछ भी हो, संविधान में एक प्रोसेस है नेचुरल जस्टिस का। नूपुर शर्मा ना तो हिस्टोरियन है ना लेखक है और ना वो कोई स्कॉलर है। उसने जो कहा है वह उसने कहीं तो पढ़ा होगा? कहीं से तो उसकी जानकारी ली होगी या फिर उसने झूंठ बोला है? इस बात की जानकारी करने का मौका नूपुर शर्मा को दिया जाना चाहिए था। नूपुर शर्मा के बारे में जो डायरेक्शन प्रोसेस हुआ है, आखिर उसका आधार क्या है? न्याय देने केलिए जब कसाब को भी पूरा अवसर दिया जाता है तो टिप्पणी के पहले नूपुर शर्मा को अपनी सफाई का अवसर क्यों नहीं दिया गया? सुप्रीम कोर्ट का यह ऑब्जरवेशन अब पब्लिक डोमेन में आ चुका है। इसपर देश में नई बहस शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर लोगों के कमेंट आ रहे हैं और अधिकांश कमेंट में सुप्रीम कोर्ट से कड़ी असहमति जताई जा रही है। क्या सही है और क्या गलत है, जनता सुप्रीम कोर्ट से पूछ रही हैकि यह आपका पर्सनल ऑब्जर्वेशन है या जजमेंट? न्यायपालिका पर न्याय और पारदर्शिता की बड़ी जिम्मेदारी है। न्यायपालिका की साख बचाना भी जजेज की जिम्मेदारी है। अब यह संभव नहीं रहा हैकि जजेज के भी फैसलों पर प्रतिक्रिया नहीं होगी। यदि कोई महिला कोर्ट के संरक्षण में आ रही है, जिसको जान से मारने, गला काटने, उसका रेप करने की धमकियां मिल रही हों तो क्या उसको उल्टे फटकार लगाई जाएगी कि जाइए पहले टीवी चैनल पर देश से माफी मांगिए, क्योंकि तुमने देश का माहौल खराब किया है।
दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एसएन ढींगरा ने तो नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वेशन को ‘गैरजिम्मेदाराना’, ‘गैरकानूनी’ और ‘अनुचित’ बताया है। उनका कहना हैकि अगर कोई कोर्ट की शरण में आ रहा है तो सर्वप्रथम उसको संरक्षित कीजिए, आप उसे नसीहतें भी दे सकते हैं, क्योंकि आप कानून के संरक्षक हैं और नागरिकों के भी रक्षक हैं। उनका कहना है कि नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बहुत गैर जिम्मेदाराना है, सुप्रीम कोर्ट को कोई अधिकार नहीं हैकि वह केस से हटकर इस प्रकार की टिप्पणी करे, सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रकार से नूपुर शर्मा को बिना सुने, उसको अपनी सफाई पेश करने का कोई अवसर दिए उसपर फैसला भी दे दिया है, ना गवाही हुई ना कोई इन्वेस्टिगेशन हुआ। वे कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर नहीं है, यह बात अच्छी तरह समझनी होगी। कानून कहता हैकि किसी आदमी को दोषी ठहराने केलिए पहले उसपर चार्ज फ्रेम करें, फिर अभियोजन उसके साक्ष्य प्रस्तुत करेगा, इसके बाद व्यक्ति को मौका मिलता हैकि वह साक्ष्यों के खिलाफ अपना बयान दे। उसे यहभी मौका मिलता हैकि वह अपने गवाह पेश करे, फिर अदालत का यह कर्तव्य होता हैकि वह सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखकर अपना फैसला दे। इस मामले में इस प्रक्रिया की उपेक्षा नज़र आती है।
लेकिन क्या हुआ? नूपुर शर्मा गई तो थी अपनी सभी एफआईआर एक जगह ट्रांस्फर कराने केलिए, मगर सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के कथन का स्वत: संज्ञान ले लिया, उसका अनुरोध मानने या ना मानने के बजाय उस पर तल्ख टिप्पणियां कर डालीं। न्यायिक विशेषज्ञों के अनुसार इस मामले में यहीं पर एक महत्वपूर्ण तथ्य जुड़ गया हैकि अगर ट्रायल कोर्ट का जज सुप्रीम कोर्ट के जज से कहे कि वह अदालत मे आकर गवाही दें और बताएं कि नूपुर शर्मा का बयान जनता को कैसे भड़काने वाला है तो सुप्रीम कोर्ट के जज साहब को उस अदालत में पेश होना ही होगा। उन्हें ट्रायल कोर्ट को तथ्यों के साथ बताना होगा कि कैसे उन्होंने यह कहा है। ट्रायल कोर्ट का जज अगर कानून के अनुपालन में यह हिम्मत कर जाए कि वह सुप्रीम कोर्ट के जज को कोर्ट में बुलाकर उनसे कहे कि नूपुर शर्मा के बयान पर वह अपनी गवाही पेश करें कि नूपुर शर्मा ने क्या गलत कहा? क्यों गलत कहा? और आप उसका प्रभाव किस रूपमें देखते हैं? या कुछ लोगों के कहने पर और टीवी मीडिया में देखकर पढ़कर ही आपने अपनी राय बना ली? तब क्या होगा? यह काम सुप्रीम कोर्ट का नहीं हैकि वह ट्रायल करे। सबसे पहले निचली अदालत में जाना पड़ता है, जोकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि आप मेरे पास क्यों आए? ट्रायल के लिए मजिस्ट्रेट है।
रिटायर्ड जस्टिस ढींगरा का सवाल हैकि सुप्रीम कोर्ट यह बात कैसे और क्यों भूल गयाकि ट्रायल तो मजिस्ट्रेट करता है और मैं खुद क्यों ट्रायल कर रहा हूं? विशेषज्ञों का कहना हैकि यह गैरकानूनी है, गैर जिम्मेदाराना तो हैही, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कम से कम सैकड़ों ऐसे फैसले दे चुका हैकि जजों को अपने केस से बाहर जाकर गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए, जज केस से संबंधित बयान दें। गंभीर मामला होने पर सुप्रीम कोर्ट का ही अधिकार हैकि वह नूपुर शर्मा की सुरक्षा की दृष्टि से उसकी समस्त एफआईआर किसी एक स्थान पर स्थानांतरित कर दे। सुप्रीम कोर्ट ने उसपर तो कोई सुनवाई की नहीं, केस जबरन वापस करा दिया और एक राजनीतिक बयान भी दे दिया, जिसका आज सभी लोग आश्चर्यचकित संज्ञान ले रहे हैं, उसपर गंभीर विवाद और सुप्रीम कोर्ट पर लोकापवाद उठ खड़े हुए हैं। नूपुर शर्मा के बयान से पहले क्या कभी इस प्रकार के तनाव नहीं हुए? हत्याएं नहीं हुईं? संविधान विशेषज्ञ कहते हैंकि सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करके अपना आदेश एक तरह से जनता के पास भेज दिया है। सड़क पर खड़ा कोई व्यक्ति यह बोलता तो शायद उसके कोई मायने नहीं होते, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज की मौखिक टिप्पणी का बहुत महत्व होता है। लोग उसको तुरंत बहुत सीरियसली ले लेते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर देशभर में बहस छिड़ गई हैकि सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कहना चाहिए कि नहीं? यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं और समाज एवं देश पर इस टिप्पणी का क्या असर होगा? यह टिप्पणी आदेश का हिस्सा है या नहीं? लेकिन टिप्पणी तो टिप्पणी है, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है। सुप्रीम कोर्ट ने देशकी जनता को एक मौका दे दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर बहस करे। न्यायिक विशेषज्ञ कहते हैंकि मीडिया या पब्लिक डोमेन में यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की मान मर्यादा को घटाएगी, यह टिप्पणी नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसा माना जा रहा हैकि जनसामान्य में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर नकारात्मक बहस छिड़ जाए, जिसका असर उन जजों पर भी पड़ सकता है, जिनकी छवि अत्यंत उज्जवल न्याय और पारदर्शी है। संविधान विशेषज्ञों का कहना हैकि किसी के विरुद्ध कई जगहों पर केसेज की सुनवाई एक ही जगह कराने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को ही है, एक हाईकोर्ट दूसरे हाईकोर्ट से केस नहीं मंगवा सकता। नूपुर शर्मा ने सही फोरम चुना था, उसकी पिटीशन सही थी, जिसका एक मजबूत आधार यह था कि उसकी जान को गंभीर खतरे हैं।
संविधान विशेषज्ञ कह रहे हैंकि नूपुर शर्मा के खिलाफ जहां-जहां एफआईआर हुई हैं, वहां नोटिस भेजकर सुप्रीम कोर्ट को पूछना थाकि उनको क्या एतराज हैकि यह सभी एफआईआर एक जगह स्थानांतरित कर दी जाएं, तब इन सभी को सुनते और फैसला देते कि ये एफआईआर एक ही जगह होनी चाहिएं कि नहीं। बजाय इसके सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के वकील को भी डांट दिया, केस का रुख ही बदल दिया और नूपुर शर्मा एवं दिल्ली पुलिस तक पर गंभीर टिप्पणियां कर डालीं। अगर सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली पुलिस ने इतनी शिकायत है तो दिल्ली पुलिस को भी नोटिस देते कि नूपुर शर्मा को अभीतक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। वैसे भी यह ऐसा कोई पहला केस नहीं है। ऐसे बहुत से केस हैं, जिनमें एफआईआर होती है, लेकिन गिरफ्तारी नहीं होती, क्योंकि ऐसे कई मामलों में तत्काल गिरफ्तारी के कारणों जांच की आवश्यकता होती है। संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गाइडेंस लेडाउन की हैं, 489A, 406 आदि केसेज़ में एफआईआर दर्ज होने पर किसी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर सकते। वे कहते हैंकि पुलिस ने नूपुर शर्मा केलिए रेड कारपेट बिछा रखी है तो यह पुलिस से पूछिए, पुलिस की जवाबदेही है नकि पूछने से पहले ही उसपर गंभीर टिप्पणी कर देना।
नूपुर शर्मा को सत्ता का अहंकार और उसपर टिप्पणियां मामले का रुख ही बदल गईं, जो जिस पदपर बैठा होता है, उसको उस पद का मान तो होता ही है। क्या सुप्रीम कोर्ट के जज को अपनी सत्ता की शक्ति का पता नहीं है? नूपुर शर्मा का सोच समझकर बोलने का दायित्व है तो सुप्रीम कोर्ट का भी तो दायित्व हैकि वह उससे भी ज्यादा सोच समझकर अपनी टिप्पणियां दे। इसीलिए नूपुर शर्मा पर यह टिप्पणी पब्लिक डोमेन में सुप्रीम कोर्ट की साख को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है, इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं। नूपुर शर्मा को अब उन सभी हाईकोर्ट में जाना होगा, जहां पर यह केसेज दर्ज हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तो नूपुर शर्मा केलिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं। हालॉकि वह दोबारा सुप्रीम कोर्ट जा सकती है, लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो रुख है, उसमें उसे रिलीफ मिलने संशय हो सकता है। उसे सभी हाई कोर्ट में जाकर यह रिक्वेस्ट करनी पड़ेगी कि सुरक्षा के दृष्टिगत उसका केस किसी एक जगह स्थानांतरित कर दिया जाए। नूपुर शर्मा का केस यहां पर कमजोर हो गया है, क्योंकि वह जिस अदालत में जाएगी, उसके ट्रायल मजिस्ट्रेट सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के भारी दबाव में होंगे और कदाचित किसी भी ट्रायल कोर्ट में इतना साहस नहीं हैकि वह सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को अनदेखा कर जाए।
संविधान विशेषज्ञ कहते हैंकि ट्रायल कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के जज को इस मामले में गवाह के रूपमें उपस्थित होने को कह सकता हैकि वह आकर अपनी टिप्पणी का क्लास एग्जामिनेशन कराएं कि यह कैसे है? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का जज भी कानून से ऊपर नहीं है। अगर किसी जज ने यह साहस दिखाया तो वास्तव में यह ट्रायल असली और ऐतिहासिक होगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एक आदर्श टिप्पणी के रूपमें रहेगी और इसका कोर्ट के फैसलों में संज्ञान लिया जाता रहेगा। संविधान विशेषज्ञ कहते हैंकि जबतक सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी वापस नहीं ली जाती है, तबतक देश में सांप्रदायिक तनाव जैसे मामलों में जज सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को आधार बनाएंगे। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर देशव्यापी बहस का रास्ता खुल गया है और यह सुप्रीम कोर्ट की साख केलिए अच्छा नहीं माना जा रहा है। संविधान विशेषज्ञ इस टिप्पणी को न्यायालयों के सम्मुख एक गंभीर चुनौती के रूपमें देख रहे हैं और कह रहे हैंकि नूपुर शर्मा के बयान के कारण देश का वातावरण खराब हो रहा है, इसका आधार सुप्रीम कोर्ट को सिद्ध तो करना ही चाहिए। 

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