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26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' मनाएंगे

श्रीगुरु गोबिंदजी के साहिबज़ादों को पीएम ने याद किया

पीएम की श्रीगुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व पर घोषणा

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 9 January 2022 04:01:44 PM

greetings on the parkash purab of sri guru gobind singh ji

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीगुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व पर उनके चार सुपुत्रों वीर साहिबज़ादा शहीद जोरावर सिंह, शहीद फतेह सिंह, शहीद अजीत सिंह और शहीद जुझार सिंह की शहादत की याद में इस वर्ष से 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूपमें मनाए जाने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट्स श्रृंखला में कहाकि मुझे यह साझा करते हुए गर्व हो रहा हैकि वीर बाल दिवस श्रीगुरु गोबिंद सिंह के साहिबज़ादों के साहस और न्याय के प्रति उनके संकल्प केलिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने बतायाकि श्रीगुरु गोबिंद सिंह के चारों सुपुत्र एक दीवार में जिंदा चुनवाए जाने के कारण शहीद हुए थे और इन महान बालकों ने धर्म के नेक सिद्धांतों से विचलित होने की बजाय मृत्यु का वरण किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि माता गुजरी, श्रीगुरु गोबिंद सिंह और उनके चार साहिबज़ादों की वीरता तथा आदर्श लाखों लोगों को शक्ति और साहस प्रदान करते हैं, श्रीगुरु गोबिंद सिंह अन्याय के आगे कभी नहीं झुके। प्रधानमंत्री ने कहाकि श्रीगुरु ने एक ऐसे विश्व की कल्पना की थी, जो समावेशी और सामंजस्यपूर्ण हो और यही आज के समय की मांग हैकि अधिक से अधिक लोग उनके त्याग और बलिदान के बारे में जानें। प्रधानमंत्री ने श्रीगुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व पर देशवासियों को बधाई देते हुए कहाकि उनका जीवन और संदेश लाखों लोगों को शक्ति और साहस देता है। उन्होंने कहाकि मैं हमेशा यह संजोकर रखूंगा कि हमारी सरकार को उनके 350वें प्रकाश उत्सव को मनाने का अवसर मिला है। उन्होंने अपनी पटना यात्रा की कुछ झलकियां भी साझा कीं।
गौरतलब हैकि श्रीगुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। वे श्रीगुरू तेग बहादुर की शहादत के उपरांत 11 नवंबर 1675 को 10वें गुरू बने। श्रीगुरु गोबिंद सिंह अपने युग के एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक गुरू थे। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की, जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। उन्होंने इसदिन श्रीआनंदपुर साहिबजी में एक बहुत बड़े सम्मेलन का आयोजन किया और उसमें शामिल लोगों से पांच सिरों की मांग की, जिनमें 5 लोग अपना सर देने के लिए तैयार हो गए, जिन्हें उन्होंने अमृत पिलाकर पंजप्यारों का नाम दिया और खुद भी उनसे अमृत पान किया। तभीसे उनको कहा जाने लगा 'वाहो वाहो गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला' पूरे सिख जगत में वैसाखी का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उन्होंने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरू रूपमें सुशोभित किया था।
श्रीगुरू गोबिन्द सिंह का विचित्र नाटक अकाल उसत्त, चंडी दी वार उनकी आत्मकथा है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रंथ का एक भाग है, जो श्रीगुरू गोबिन्द सिंहजी की कृतियों के संकलन का नाम है। उन्होंने जुल्म और पापों को खत्म करने केलिए और कमजोरों व गरीबों की रक्षा के लिए मुगलों से 14 युद्ध लड़े, सभी युद्धों में विजय प्राप्त की। उन्होंने धर्म की रक्षा केलिए परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम और उपाधियों से भी जाने जाते हैं। वे जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय योद्धा थे, वहीं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक और संस्कृत जैसी कई भाषाओं के विद्वान थे। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के भी संरक्षक थे, उनके दरबार में 52 कवि और लेखक रहते थे, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता है। वे भक्ति और शक्ति के अद्वितीय संगम थे।
श्रीगुरू गोबिन्द सिंह ने संगत को सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और नाही किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं-भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। श्रीगुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे, उस समय उनके पिता श्रीगुरु तेग बहादुरजी असम में धर्म उपदेश देने गए थे। उनके बचपन का नाम गोविंद राय था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होंने अपने प्रथम चार वर्ष बिताए, वहीं पर अब तखतश्री हरिमंदर जी पटना साहिब स्थित है।
कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने के विरुद्ध फरियादी श्रीगुरु तेग बहादुरजी के दरबार में आए थे। कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए और स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूपसे उनके पिता श्रीगुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया। इसके पश्चात वैशाखी के दिन श्रीगुरू गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरू घोषित हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा कि उनके चार सुपुत्रों वीर साहिबज़ादा शहीद जोरावर सिंह, शहीद फतेह सिंह, शहीद अजीत सिंह और शहीद जुझार सिंह की शहादत की याद में इस वर्ष से 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' मनाया जाएगा यह सिख पंथ केलिए ही नहीं, बल्कि समूची वीरता और मानवता केलिए बड़ा सम्मान माना जा रहा है। इस प्रकार से सिख जगत केलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उज्जवल भावनाएं सर्वदा प्रकट होती रहती हैं। भारत के सिख समाज ने उनकी इस घोषणा की तहेदिल से सराहना की है। 

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