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भाषा कभी बाधक नहीं हो सकती-गृहमंत्री

'हिंदी भाषा का उपयोग गौरव के साथ करें, झिझकें नहीं'

हिंदी दिवस पर राजभाषा कीर्ति व गौरव पुरस्कार बांटे

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 14 September 2021 06:22:36 PM

amit shah presenting the award during hindi diwas celebrations

नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज हिंदी दिवस-2021 समारोह में वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान राजभाषा हिंदी में उत्कृष्ट कार्य करने वाले मंत्रालयों, विभागों उपक्रमों को राजभाषा कीर्ति और राजभाषा गौरव पुरस्कार प्रदान किए। गृहमंत्री ने राजभाषा भारती पुस्तिका के 160वें अंक का विमोचन भी किया। अमित शाह ने कहा कि ये जो पुरस्कार है, वो कई लोगों को प्रेरणा और राजभाषा को बढ़ावा देने केलिए आगे बढ़ने का हौसला देता है। उन्होंने ग़ैर हिंदी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देते हुए कहा कि आप जिस प्रदेश से आते हो, उस प्रदेश की भाषा के साथ-साथ राजभाषा को भी उस प्रदेश में पहुंचाने का आपने बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि हिंदी का किसी स्थानीय भाषा से कोई मतभेद नहीं है, हिंदी भारत की सभी भाषाओं की सखी है और यह सहअस्तित्व से ही आगे बढ़ सकती है। गृहमंत्री ने इस अवसर पर बताया कि हमने जब संविधान को स्वीकारा, इसके साथ ही 14 सितंबर 1949 के एक निर्णय को भी स्वीकार किया कि इस देश की राजभाषा हिंदी होगी और लिपि देवनागरी होगी।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि 14 सितंबर हमारे लिए एक मूल्यांकन का दिन होता है कि हमने अपने देश की भाषाओं और राजभाषा केलिए क्या किया और उन्हें आगे बढ़ाने केलिए क्या किया है, उसके संरक्षण और संवर्धन केलिए क्या किया है, विशेषकर नई पीढ़ी के दिल में उनकी बोलचाल में अपनी स्थानीय भाषाओं को गौरव दिलाने केलिए क्या किया है। उन्होंने कहा कि आज जब हमने पीछे मुड़कर देखते हैं तो देश में एक समय आया था कि हमें ऐसा लगता था कि शायद भाषा की लड़ाई देश हार जाएगा, हम ये लड़ाई कभी नहीं हारेंगे, युगों-युगों तक भारत अपनी भाषाओं को संभालकर, संजोकर रखेगा और हम उन्हें लचीला व लोकोपयोगी भी बनाएंगे। गृहमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, प्रधानमंत्री ने लालक़िले की प्राचीर से आज़ादी के अमृत महोत्सव के लक्ष्यों में से एक लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत का भी रखा है, आत्मनिर्भर शब्द सिर्फ उत्पादन, वाणिज्यिक संस्थाओं केलिए नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भर शब्द भाषाओं के बारे में भी होता है और तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा। उन्होंने कहा कि अगर भाषाओं के बारे में हम आत्मनिर्भर ना बनें तो आत्मनिर्भर भारत के कोई मायने नहीं हैं।
अमित शाह ने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में स्वदेशी, स्वभाषा और स्वराज इन तीन शब्दों ने बहुत बड़ा योगदान दिया और ये आज़ादी की लड़ाई के तीन मूल स्तंभ थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने स्वदेशी को आगे बढ़ाने केलिए आत्मनिर्भर भारत का बहुत बड़ा अभियान छेड़ा है, स्वभाषा को मजबूत करने का काम हम सबने मिलकर, विशेषकर देश की नई पीढ़ी ने किया है। उन्होंने कहा कि अब कोई संकोच रखने की ज़रूरत नहीं है, देश के प्रधानमंत्री दुनिया के उच्च से उच्च अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी हिंदी में बोलते हैं, अपनी भाषा में बोलते हैं तो हमें किस चीज का संकोच है। अमित शाह ने कहा कि वो जमाना गया जब हिंदी बोलते थे तो होता था कि किस प्रकार से सामने वाला व्यक्ति मेरा मूल्यांकन करेगा, आपका मूल्यांकन आपके काम और क्षमता के आधार पर ही होगा, भाषा के आधार पर नहीं होगा। अमित शाह ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा से अच्छी अभिव्यक्ति किसी और भाषा में नहीं कर सकता और ये बात हमें अपनी नई पीढ़ी को समझानी होगी कि भाषा कभी बाधक नहीं हो सकती, हम गौरव के साथ अपनी भाषा का उपयोग करें, झिझकें नहीं। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि देश के युवा इस बात को अपने मन में बिठा लें कि हम हमारी भाषाओं को छोड़ेंगे नहीं। उन्होंने अभिभावकों से भी कहा कि भले आपका बच्चा अंग्रेजी माध्यम में पढ़ता हो, लेकिन घर में आप उसके साथ अपनी भाषा में बात करें नहीं तो वह अपनी जड़ों से कट जाएगा।
गृहमंत्री ने कहा कि कोई बाहर की भाषा हमें इस देश के गौरवपूर्ण इतिहास से परिचित नहीं करा सकती। उन्होंने कहा कि जिस दिन आप अपने बच्चे को मातृभाषा के ज्ञान से वंचित कर दोगे, वो अपनी जड़ों से कट जाएगा और जो लोग अपनी जड़ों से कट जाते हैं वो लोग कभी ऊपर नहीं जाते, ऊपर तो वही जाता है जिस वृक्ष की जड़ें गहरी, मज़बूत और फैली हों। गृहमंत्री ने कहा कि जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था, उस वक्त कई नेताओं ने स्वभाषा के प्रयोग पर बहुत बल दिया था, महात्मा गांधी ने राजभाषा को राष्ट्रीयता के साथ भी जोड़ा था, उन्होंने कहा था कि इस देश की चेतना अगर समझनी है तो हमारी भाषाओं के बिना आप समझ नहीं सकते। अमित शाह ने कहा कि गांधीजी का ये वाक्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 1920 से लेकर 1947 तक था। उन्होंने इसके लिए खुद अख़बार निकाले, गुजरात साहित्य परिषद का चुनाव भी लड़े और साहित्य परिषद के अध्यक्ष रहे और उन्होंने गुजराती शब्दकोष की रचना भी की। गृहमंत्री ने कहा कि राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय का एक महत्वपूर्ण अंग है और हमने यह तय किया है कि इस साल विशेष रूपसे राजभाषा को बढ़ावा, संरक्षित, संवर्धित और प्रचार-प्रसार केलिए विशेष प्रयास किए जाएंगे।
अमित शाह ने कहा कि हमारा देश बहुत विविधताओं से संपूर्ण है, बहुत सारे प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश हैं और सबका अपना-अपना गौरवपूर्ण इतिहास है, ये सब अलग-अलग स्थानीय भाषाओं में है। उन्होंने कहा कि देश के हर प्रदेश का इतिहास जो स्थानीय भाषा में है, उसका अनुवाद और भावानुवाद दोनों राजभाषा में होना चाहिए, जिससे एक राज्य नहीं पूरा देश इस इतिहास को पढ़ सके। उन्होंने कहा कि जो संग्राम महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के नेतृत्व में स्वराज केलिए हुआ, जो संग्राम गुजरात में हुआ उनके बारे में जानने का देश के हर बच्चे को हक़ है और वो ये सब तभी जान सकेगा, जब इसका राजभाषा में अनुवाद होगा। उन्होंने कहा कि गुरू रबींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारतीय संस्कृति एक विकसित सतदल कमल की तरह है, जिसकी प्रत्येक पंखुड़ी हमारी प्रादेशिक भाषा की तरह है और कमल हमारी राजभाषा है। गृहमंत्री ने कहा कि आजादी के आंदोलन तक 1857 से 1947 तक भारतीय भाषाओं, राजभाषा में हुई पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान है, हम उसका भी संकलन करने वाले हैं, कई सारे संग्रामों का इतिहास जो देशभर में 100 सालों तक हुए, उन सभी का इतिहास स्थानीय भाषाओं में है, उनका भी अनुवाद करने वाले हैं। अमित शाह ने कहा कि ज्ञान की अभिव्यक्ति का मातृभाषा से अच्छा माध्यम कोई हो ही नहीं सकता, जब अभिव्यक्ति अपनी भाषा में हो तो सरल और स्वभाविक हो जाती है।
गृहमंत्री ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा और राजभाषा को स्थान देने केलिए विशेष काम किया गया है, ग्रेड पांच तक की शिक्षा घर की भाषा मातृभाषा में हो इसका आग्रह रखा गया है, भारतीय भाषा को पढ़ने और सीखने केलिए हर स्कूल और उच्च शिक्षा स्तर पर एकीकृत करने की बात कही गई है, तकनीकी पाठ्यक्रम जैसे इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, उनमें पांच भाषाओं में आठ राज्यों के चौदह कॉलेज पढ़ाना शुरु करेंगे, जिनमें हिंदी, तेलुगू, तमिल, मराठी और बांग्ला में शिक्षा देने की शुरुआत करेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए भारतीय अनुवाद और व्याख्यान संस्थान की स्थापना करने की योजना भी है, जो हमारी भाषाओं को एक लंबे समय तक बल देगी, ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में भी तैयार किए जा रहे हैं, जिससे ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चे भी स्वभाषा, राजभाषा में पढ़ सकें। गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ने भी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा देश बहुत प्राचीन देश है, जिसकी संस्कृति और ज्ञान की परंपरा रही है, देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं विकसित हुईं लेकिन हिंदी सर्वाधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं और उनमें बहुत समृद्ध साहित्य की रचना भी हुई है, इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं का भी राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है। इस दौरान केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय, निशिथ प्रामाणिक, केंद्रीय गृह सचिव, राजभाषा विभाग के सचिव और भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

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