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जर्मनी के निवेशकों के लिए खास स्थान

‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ में प्रधानमंत्री का संबोधन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 12 April 2013 11:56:00 AM

prime minister manmohan singh

बर्लिन। बर्लिन में ‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ के समापन समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि चांसलर एंगेला मेर्केल के मई 2011 में दिल्ली में शुरू किए गए इस खूबसूरत समारोह की यह श्रृंखला न केवल भारत-जर्मनी के 62 वर्षों के राजनयिक रिश्तों की प्रतीक रही है, बल्कि इसने भारत और जर्मनी के लोगों के आपसी दीर्घकालिक जुड़ाव को भी व्यक्त किया है। उन्‍होंने कहा कि द्विपक्षीय संबंध दोनों देशों के लोगों के बीच के सदियों के संपर्क की आधारशिला पर आधारित हैं, जर्मनी के महान सपूत प्रोफेसर मैक्स मूलर ने एक सदी से भी पूर्व हमें दोनों देशों के रिश्तों को जोड़ने वाले विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया था, भारत में हम मैक्स मूलर के जीवन और उनकी सीख को अब तक संजोए हैं, भारत के प्रति उनके रूझान की वजह से राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने उन्हें काफी सराहा। मैक्स मूलर ने एक बार कहा था कि यदि मुझसे पूछा जाए कि धरती पर कहां के लोगों ने जीवन की समस्याओं पर गहराई से विचार किया है और इसका समाधान प्राप्त किया है तो मैं भारत की ओर इशारा करूंगा।
उन्‍होंने कहा कि आधुनिक रूप ग्रहण करने वाली हमारी प्राचीन भूमि में इस प्रकार के बौद्धिक विचारों ने हमें गर्व की भावना से भर दिया है, ऐसा करने में मैक्स मूलर ने अपने समय के कई विद्वानों की भांति योगदान दिया, जिसने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन और संघर्ष की आधारशिला के प्रति जनमानस में एक नया भाव भरा। उन्‍होंने कहा कि बेशक ‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ जैसे समारोह मनोरंजन के लिए होते हैं, पर साथ ही जानकारी और शिक्षा प्रदान करना भी इनका उद्देश्य होता है, खुशी है कि यह समारोह बर्लिन के ऐतिहासिक शहर में आयोजित किया गया, यह एक ऐसा शहर है जो बदलाव और पुनरूद्धार के विशिष्ट इतिहास और लक्षणों से परिपूर्ण है, एक महान विभाजक शहर से लेकर यूरोपीय एकीकरण के प्रतीक केंद्र के रूप में यह जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय भूमिका और उत्तरदायित्व, महान यूरोपीय परियोजना में योगदान और भिन्नता की बजाय एकता से परिभाषित यूरोप के भविष्य का परिचायक है।
मनमोहन ‌सिंह ने कहा कि केवल यूरोप के लिए, बल्कि समूचे विश्व के लिए यह मुश्किलों से भरा समय है, पर मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय उपायों और सामूहिक प्रयासों से यूरोप वर्तमान आर्थिक चुनौतियों से उबरने में कामयाब रहेगा, विश्व को सफल और सौहार्द से परिपूर्ण यूरोप की आवश्यकता है, आर्थिक रूप से यूरोप के दोबारा पटरी पर आने, इसकी वृद्धि और वैश्विक मामलों में इसकी भूमिका के लिए भारत भी तत्पर है। उन्‍होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रभाव भारत पर भी पड़ा है और साथ ही पिछले दो वर्ष में हमारी आर्थिक वृद्धि में गिरावट हुई है, विकास को दोबारा गति देने के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं, भारत जैसे विशाल आकार, विभिन्नताओं और जटिलताओं वाले देश में नीतियों पर बहस होना स्वाभाविक है, पर इन बहसों की वजह से हम देश और लोगों के दीर्घावधि हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ मुश्किल निर्णय लेने से पीछे नहीं हटे हैं, बल्कि हम इन चर्चाओं का स्वागत करते हैं, ताकि हमारी नीतियां अधिक सशक्त और टिकाऊ बन सकें।
उन्‍होंने भारतवासियों से कहा कि भविष्य में, बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए आठ प्रतिशत से अधिक के वार्षिक विकास दर का लक्ष्य रखा गया है, भारत ने पिछले दशक में यह वृद्धि दर रिकॉर्ड की है और विश्वास है कि निकट भविष्य में भी यह वृद्धि दर बनी रहेगी, हमारी आर्थिक नींव सुदृढ़ है, भारत साहस, उद्यमिता और नवाचार की भावना से परिपूर्ण है, निवेश के सुअवसर खुले हैं, भारत सरकार निवेश बढ़ाने, विदेशी निवेशकों को आकृष्ट करने और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए कृत संकल्प है, इसके लिए घरेलू तथा विदेशी दोनों क्षेत्र के निवेशकों के लिए भारत को आकर्षक बनाने की ओर काम हुआ है और हमारे हृदय में जर्मनी के निवेशकों के लिए खास स्थान है। उन्‍होंने कहा कि भारत की चिंता केवल वृद्धि दर की नहीं, बल्कि वृद्धि की गुणवत्ता और स्वास्थ्य तथा शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में लोगों की जीवन स्थितियों पर भी हमारा ध्यान है, हम चाहते हैं कि हमारी वृद्धि समावेशी और टिकाऊ हो, यह केवल सामाजिक और राजनैतिक अनिवार्यता नहीं है, बल्कि टिकाऊ दीर्घावधि वृद्धि के लिए उपयुक्त आर्थिक आधार भी है, इसलिए हमने आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कौशल विकास और स्वच्छ तथा अक्षय ऊर्जा पर विशेष बल दिया है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि जर्मनी से दस समझौते हुए हैं, जिनमें भारत में विशिष्ट और सशक्त हरित ऊर्जा गलियारा और उच्चतर शिक्षा के लिए संयुक्त कोष शामिल है, बदले हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थान के लिए भारत और जर्मनी की साझा आकांक्षाएं हैं, दोनों ही बगैर किसी परमाणु हथियारों वाले विश्व के लक्ष्य का समर्थन करते हैं, भारत और यूरोपीय संघ के बीच हम विस्तृत व्यापार और निवेश समझौते में शामिल हैं और वैश्विक आर्थिक स्थिति में दोबारा सुधार के लिए जी-20 में काफी निकटता से परामर्श करते हैं, हम अफगानिस्तान में स्थिर और शांतिपूर्ण स्थिति चाहते हैं, इसके साथ ही हम तेजी से बदलते एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्थिर वैश्विक स्थिति का लक्ष्य रखते हैं। उन्‍होंने कहा कि वर्तमान विश्व परस्पर सौहार्द पर आश्रित है और साझा समस्याओं से जूझ रहा है, यह गिरती अथवा उभरती शक्तियों का नहीं अपितु अवसरों और आशाओं के फैलाव का समय है, यह ऐसा समय है जब तेजी से बदलाव हो रहे हैं, यह आपस में जुड़ने, संपर्क स्थापित करने और एक दूसरे को मदद करने का समय है।
उन्‍होंने कहा कि 1956 में जर्मनी की अपनी पहली यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने अपने देश की आशाओं और जर्मनी में भरोसे तथा भारत-जर्मन संबंधों के प्रति विश्वास व्यक्त किया था, उस स्वप्न से लेकर अब तक हमने काफी लंबी दूरी तय की है, विश्वास है कि 21वीं सदी के अवसरों और चुनौतियो में भारत और जर्मनी अपने-अपने देश के नागरिकों और इस विश्व के लोगों के लिए परस्पर साथ निभाना जारी रखेंगे। उन्‍होंनेभारत और जर्मनी सरकार और इसके बाहर के प्रत्येक व्यक्ति का धन्यवाद दिया, जिन्होंने इस समारोह और आयोजन के लिए कड़ी मेहनत की।

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