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जेएनयू का फीस विवाद खत्म-एचआरडी

जेएनयू के छात्र अपना आंदोलन खत्म करें-निशंक

उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशें लागू

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 14 January 2020 01:24:02 PM

ramesh pokhriyal 'nishank'

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने दावा किया है कि जेएनयू के फीस संबंधित मामले को संस्थान के विद्यार्थियों और शिक्षक संघ के प्रतिनिधियों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद सुलझा लिया गया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने आंदोलनकारी जेएनयू विद्यार्थियों से मुलाकात के दौरान मामले को देखने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद एचआरडी मंत्रालय ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति के सदस्‍यों में विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्‍यक्ष वीएस चौहान, एआईसीटीई के अध्‍यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे और विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव रजनीश जैन शामिल थे। इस उच्चस्तरीय कमेटी ने जेएनयू में सामान्य कामकाज को बहाल करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को सभी हितधारकों के साथ बातचीत करके समाधान निकालने की सलाह दी थी।
जेएनयू
के लिए उच्‍चाधिकार समिति की सिफारिशों, विद्यार्थियों और जेएनयू प्रशासन के प्रति‍निधियों के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव की 10 और 11 दिसंबर को हुई बैठक के आधार पर सहमति बनी थी कि विद्यार्थियों से विंटर सीजन में रजिस्ट्रेशन के लिए कोई यूटिलिटी और सर्विस चार्ज नहीं लिया जाएगा। हालांकि बदले हॉस्टल रूम चार्ज लागू होंगे, लेकिन इसमें बीपीएल के विद्यार्थियों को 50 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इसके परिणामस्वरूप जेएनयू ने बैठक में बनी सहमति पर लिए गए फैसलों के बारे में विद्यार्थियों को सूचित कर दिया था, ऐसे में फीस का मुद्दा अब खत्म हो चुका है, क्योंकि विद्यार्थियों की प्रमुख मांग मान ली गई है। इसी का परिणाम है कि अब तक पांच हजार से अधिक विद्यार्थियों ने अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया है।
एचआरडी मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने छात्रों का आह्वान किया है कि वे अपना आंदोलन समाप्‍त करें। रमेश पोखरियाल ने कहा कि जेएनयू में विद्यार्थियों से रजिस्ट्रेशन के लिए कोई यूटिलिटी और सर्विस चार्ज नहीं लिया जा रहा है, ऐसे में फीस का मुद्दा अब निरर्थक है, ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों द्वारा किया जा रहा आंदोलन अनावश्यक और राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि हम जेएनयू को प्रमुख अकादमिक और अनुसंधान संस्‍थान बनाए रखने के लिए संकल्पित हैं। उन्होंने यह आह्वान भी किया है कि उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों को राजनीति का अखाड़ा न बनने दिया जाए।

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