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भारत में कुपोषण की स्थिति भयानक

पर्यावरण प्रदूषण पर चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन

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लखनऊ। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ में पौधे और पर्यावरण प्रदूषण पर चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन वैज्ञानिक चर्चाओं का था। पर्यावरण जैसे पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी पर्यावरण, जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन के तीन प्रमुख पहलुओं के संबंध में प्रतिभागियों ने प्रस्तुतियां प्रस्तुत कीं। डॉ राकेश तुली ने आनुवंशिक रूप से परिष्कृत खाद्य फसलों के विकास अवसरों एवं चुनौतियों पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत ट्रांसजीनी फसलों में चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 1990-1992 में वैश्विक कुपोषण डाटा के अनुसार भारत में लगभग 207 करोड़ (वैश्विक डाटा के अनुसार 26 प्रतिशत) कुपोषण के शिकार हैं जो 2003-2005 में बढ़कर (वैश्विक डाटा के अनुसार 28 प्रतिशत) हैं। यह आंकड़े उपसहारा देशों के डाटा की तुलना में चेतावनी स्वरूप हैं।

उन्होंने कहा कि मंदी और खाद्यय कीमतों में वृद्धि, कुपोषण का मुख्य कारण है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ट्रांसजीनी कृषि कई समस्याओं को सुलझाने में सहायक हो सकती है। भारत में विटामिन ए से युक्त गोल्डेन राइस कई स्थानों में प्रयुक्त किये जाने के लिए विचाराधीन है। यह कुपोषण को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। बीटी कपास के उदाहरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बीटी कपास की खेती में केवल दोगुना वृद्धि ही नहीं हुई हैं अपितु कीटनाशकों की खपत का स्तर भी घटा है। उन्होंने कहा कि अनुमान है कि भारत की जनसंख्या 2050 तक 9 अरब होगी। जीएम फसलें शस्य उपज की वृद्धि में आदर्श विकल्प होंगी।

इस सत्र में पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी पर जीएम खाद्य पर पैनल चर्चा में कई विशेषज्ञों जैसे प्रोफेसर क्रूपा यूएसए, डॉ राकेश तुली, डॉ पीवी साने, डॉ पीके सेठ, डॉ शाही यूएसए ने प्रतिभागिता की। जीएम फसलों का उत्पादन और जीएम फसलों से संबंधित नीति नियामक पर इस पैनल में चर्चा की गयी। पैनल ने यह महसूस किया कि जीएम फसलों के मुद्दे पर जनजागरूकता की आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने यह संस्तुति की कि जीएम फसलों को अपनाने से पूर्व नीति और नियामकों की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। डॉ बीपी मिश्रा, पर्यावरणीय विज्ञान विभाग, मिजोरम यूनिवर्सिटी ने मेघालय के सैक्रेड ग्रोव्ज में काष्ठीय पौधों की विविधता और वितरण पर अपने व्याख्यान में कहा कि जहां पर प्रदूषण कम है वहां पर सैक्रेड ग्रोव्ज की बहुतायत है।

समकालीन पर्यावरणीय विषयों पर एक सत्र में मोनिका वर्मा, ग्रामीण विकास एवं प्रौघोगिकी आईआईटी दिल्ली ने दीमक के नियंत्रण में वनस्पति कीटनाशकों की प्रासंगिकता पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि वनस्पति कीटनाशक संश्लिष्ट कीटनाशकों के लिए एक आशाजनक विकल्प के रूप में समान रूप से प्रभावी है। दीमक न केवल काष्ठ संरचना के लिए गंभीर कीट है, यह कृषि में फसल उत्पादन की क्षति में भी उत्तरदायी है। उन्होंने कहा कि दोनों जलीय और विलायक कार्बनिक निकोटिएना टोबेकम, एशाडिरेक्टा इण्डिका, रिकीनस कम्यूनिस, कैनाबिस सेटिवा सामान्य कीटों के विरूद्ध प्रभावी है।

जलवायु परिवर्तन पर एक सत्र में डॉ एलिना पैयोलेट्टी इटली ने वन पारिस्थितिक तंत्र में वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर बोलते हुए सतत वन प्रबंधन के लिए वन की पोषणज स्थिति की सूचना की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। डॉ विनय पी अनेजा, समुद्र पृथ्वी और वायुमण्डलीय विज्ञान, विभाग उत्तरकेरोलिना राज्य ने अपने सायंकालीन व्याख्यान में कहा कि कृषि उत्सर्जन न केवल उत्पादन पर्टिकुलेट मैटर, यूट्रोफिकेशन, अम्लीकरण, आविषों और रोगजनकों के लिए प्रभावित करता है अपितु ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में विशिष्ट योगदान भी देता है।

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