स्वतंत्र आवाज़
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माओवादियों के धमकी भरे ई-मेल

स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम

नई दिल्ली। स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम को नेपाल के हालात पर उसकी एक स्टोरी ‘नेपाल पर विघटन की काली छाया’ के संबंध में चेतावनी और धमकी भरे कुछ ई-मेल प्राप्त हुए हैं। ई-मेल भेजने वालों ने अपना ई-मेल पता प्रकट नहीं किया है। ई-मेल में भारतीयों के विरुद्घ बहुत भद्दे और गंदे शब्दों का प्रयोग किया गया है और अलग-अलग ई-मेल में भविष्य में नेपाल के संबंध में कुछ लिखने पर चेतावनी, गालियां और धमकियां दी गई हैं।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम ई-मेल से आईं उन धमकियों और उनकी भाषा को यहां लिखकर खुद भी शिष्टाचार और लेखन की मर्यादाओं के बाहर नहीं जाना चाहता है। लेकिन ई-मेल भेजने वालों ने जिस प्रकार भारतीयों के बारे में जिस गंदे तरीके से ई-मेल किये हैं उसमें यह माओवादियों की ही करतूत लगती है। हालॉकि यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि ये ई-मेल माओवादियों की ही करतूत हैं लेकिन कतर से आए एक ई-मेल से माओवादियों पर शक जाता है। बंदूकों, कारबाइनों और मशीनगनों की ताकत पर नेपाल की भोली-भाली जनता को जिस तरह से माओवादियों ने अपने पक्ष में मतदान के लिए मजबूर किया उसे केवल मीडिया ने बल्कि पूरी दुनिया ने देखा है।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम ने अपनी स्टोरी में लिखा है कि किस प्रकार माओवादियों की आतंकवादी पहचान के कारण नेपाल में कमल दहल प्रचंड की सरकार के गठन में बाधाएं ही बाधाएं आ रही हैं। पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड कल तक जो बंदूक की भाषा बोल रहे थे उन्हें अब लोकतंत्र के तगड़े झटके लग रहे हैं जिनमें वे और उनके समर्थक बौखलाए हुए हैं। उन्हें अपनी कोई आलोचना बर्दाश्त नहीं है इसलिए नेपाल में माओवादी नेता कमल दहल प्रचंड खुद भी दुनिया ही सामने मीडिया को धमका रहे हैं।। कुछ ही समय पहले उनके जिद्दी बयानों और विध्वंसक नीतियों के कारण काठमांडू में उनके पुतले भी फूंके गए हैं। नेपाल के लोकतांत्रिक भविष्य को जानने के लिए यह काफी हैं।
नेपाल के माओवादियों का असली चेहरा स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम को आए ईमेल में बहुत साफ दिखाई पड़ता है। ईमेल में धमकियां दी गई हैं कि भविष्य में नेपाल और नेपाल के माओवादियों के बारे में न लिखा जाए - (गालियां)। अलग-अलग शब्दावली का प्रयोग करते हुए धमकियों में कहा गया है कि तुम..... इंडियन को हम.....नफरत करते हैं। स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम की नेपाल पर स्टोरी ‘नेपाल पर विघटन की काली छाया’ के बारे में आए एक ईमेल में दोहा (कतर) से इस स्टोरी के सकारात्मक विश्लेषण की भी प्रशंसा की गई है। ईमेल करने वाले ने यूं तो स्पष्ट किया है कि वह माओवादी नहीं है लेकिन उसने नेपाल की राजशाही को नकारते हुए सुझाव दिया है कि भारत नेपालियों के बारे में सही सोचे। तभी नेपालियों में भारत का विश्वास कायम हो सकता है।
किसी भी देश में वहां की जनता की इच्छा का सम्मान सबसे ऊपर माना जाता है। नेपाल में कारबाईनों और मशीनगनों की नोंक पर लोकतंत्र लाने की कोशिश की गई है जिसे हिंसक माओवादियों के अलावा कोई भी लोकतंत्र मानने को तैयार नहीं है। इससे माओवादी नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड को नेपाल का पहला प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा करने में बहुत बाधाएं हैं। इन बाधाओं का संबंध माओवादियों के हिंसात्मक और विध्वंसात्मक होना प्रमुख है। अभी यह तय नहीं है कि नेपाल का वास्तव में लोकतांत्रिक स्वरूप कैसे निश्चित होगा। यदि माओवादियों की नेपाल को स्वीकार्यता होती तो अब तक वहां के सभी दल इनको सत्ता सौंपने में अड़ंगेबाजी नहीं करते। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी माओवादियों की सत्ता को स्वीकार करने से संकोच कर रहा है इसलिए नेपाल के सामने स्थिरता का वातावरण बना है।
स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम ने अपने विश्लेषण में चुनाव के पहले ही व्यक्त कर दिया था कि नेपाल में माओवादियों की हिंसक गतिविधियों के कारण वहां की जनता लोकतंत्र को नहीं समझ पाएगी और वही सबके सामने मौजूद है। नेपाल की जनता के जनादेश का सम्मान करते हुए स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम पोर्टल यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि उसका इरादा किसी के बहुमत में घुसपैठ करके उसका मनमाना विश्लेषण करना नहीं है। जिन ईमेल धारकों ने ईमेल किए हैं उनको यहां शब्दशः उल्लेख नहीं किया जा सकता। लेकिन पोर्टल ऐसी शब्दावली का समर्थन नहीं करता है। ऐसे ईमेल करने वालों के बारे में हम ठीक से यह दावा भी नहीं कर सकते हैं कि यह ईमेल माओवादियों ने ही किए होंगे। किन्तु जब उनका आदर्श गोली और बंदूक है तो हमारा भी शक उन्हीं पर ही जाना स्वाभाविक है। कमल दहल प्रचंड के नेपाली मीडिया कांतिपुर टाइम्स को एक मंच से दी गई का उल्लेख करना भी यहां प्रासंगिक हो जाता है जिसमें उन्होंने मीडिया को हैसियत बताने की धमकी दी थी और बाद में राजनीतिक पलटबाजी करते हुए कहने लगे कि उनका कहने का मतलब धमकी नहीं था जबकि वास्तव में वह धमकी दे रहे हैं।
फिर भी हम यहां उन पाठकों धन्यवाद प्रस्तुत करते हैं जिन्होंने नेपाल पर हमारे विश्लेषण पर सकारात्मक और प्रशंसनात्मक ईमेल भी किए हैं। उन आलोचनाओं और धमकियों का भी स्वागत है जो स्वतंत्र आवाज़ डॉट काम को प्राप्त हुई हैं। नेपाल एक ऐसी जनता का देश है जो बहुत सौम्य है और जिसे सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक प्रगति की बहुत अधिक आवश्यकता है। उस जनता को बंदूक की नोंक पर माओवादियों को वोट करने के लिए जिस तरह से मजबूर किया गया इसे नेपाल के माओवादी आखिर कब तक दुनिया से छिपाएंगे? उधर माओवादी नेता कमल प्रचंड की भारत में हिंसा फैला रहे माओवादियों को तुरंत हथियार डालने की चेतावनी का शायद ही असर सामने आए। यह प्रचंड की एक राजनीतिक चाल भी हो सकती है क्योंकि प्रचंड को इस समय विश्व समुदाय के समर्थन की दरकार है जिनमें भारत का समर्थन उनके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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