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शिक्षा में नैतिक शिक्षा जरूरी-निशंक

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राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन-national seminar inaugurated

देहरादून। मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने सहारनपुर रोड स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के सभागार में भारतीय शिक्षा शोध संस्थान लखनऊ और उत्तराखण्ड तकनीकी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। परम्परागत भारतीय शिक्षा में भटकाव और वर्तमान संदर्भ में पुनः भारतीयकरण के व्यवहारिक उपक्रम विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड में संस्कृत को द्वितीय राज भाषा का दर्जा दिया गया है। योग और आयुर्वेद को शैक्षिक पाठ्यक्रमों से जोड़ा जा रहा है। प्राचीन भारतीय ज्ञान पद्वति में ऋषि कणाद, चरक सुश्रुत और आर्य भट्ट जैसे महान वैज्ञानिक विद्वान हुए हैं, जिनके ज्ञान का लोहा आज का आधुनिक विश्व भी मानता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा में भारतीय संस्कृति के अनुरूप नैतिक शिक्षा का समावेश भी होना चाहिए।
उन्होंने रामायण के भगवान श्रीराम, सीता और भरत के चरित्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इनका अनुसरण करना चाहिए। भारतीय शिक्षण परम्परा को ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए शिक्षकों को भी आगे आना होगा। आज चन्द्रगुप्त जैसे छात्रों की कमी नहीं है, लेकिन शिक्षकों को भी चाणक्य जैसे ज्ञान और समर्पण के साथ छात्रों के हित में आगे आना होगा।
मुख्यमंत्री डॉ निशंक ने कहा कि आज भुला दिये गये प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। उत्तराखण्ड शिक्षा के हब के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है और यहां पर आईआईटी और आईआईएम जैसे शिक्षण संस्थान हैं। भारतीय शिक्षा शोध संस्थान के निदेशक डॉ जगतपाल सिंह तोमर ने बताया कि 1980 में स्थापित शोध संस्थान शिक्षा में भारतीय संस्कृति के समावेश को बढ़ावा देने पर शोध करता है। शैक्षिक पाठ्यक्रम में गीता, रामायण और महाभारत के आख्यानों को भी स्थान दिया जाना चाहिए। कार्यक्रम में सूचना आयुक्त विनोद नौटियाल, विद्याभारती के संरक्षक ब्रह्मदेव शर्मा भाईजी, ज्योत्सना सक्सेना, डॉ शंकरदत्त ओझा, डॉ आरपी कर्मयोगी, चन्द्रपाल सिंह नेगी, रेणुका माथुर आदि उपस्थित थे।

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