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आदमखोर बाघ फर्रूख़ाबाद में पकड़ा गया

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लखनऊ। फर्रूखाबाद जिले में कल देर रात पकड़े गए आदमखोर बाघ को लखनऊ चिड़ियाघर में लाकर विशेष देखरेख में रखा गया है। सड़क मार्ग से लाये गये इस बाघ की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। जांच में सामान्य पाये जाने के बाद ही उसे विशेष देखरेख में नियमित बाड़े में रखा जाएगा।
चिड़ियाघर की निदेशक रेनू सिंह ने बताया कि बाघ की विशेष देखरेख के दौरान उसके साथ विशेषज्ञ वनकर्मी तैनात किये गए हैं। बाघ प्रजाति के जीवन के बारे में जानकारी रखने वाले वन कर्मियों को ही उसके पास भेजा जा रहा है। आदमखोर बाघ के पकड़ में आने के बाद उसे सामान्य स्थिति तक लाने में एक सप्ताह तक लग जाता है। पकड़ में आने पर ऐसे बाघों में आमतौर पर 'घबडाहट' की स्थिति देखी जाती है। लगभग तीन माह की लुका-छिपी और दस से ज्यादा लोगों को शिकार बनाने वाले इस बाघ को गुरूवार की रात में फर्रूखाबाद जिले के नवाबगंज क्षेत्र में हीरासिंह गांव में पकड़ा जा सका।
इसी बाघ ने पीलीभीत जिले के जंगलों में लोगों की नींद हराम कर रखी थी। आदमखोर बनने के बाद बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम सक्रिय हो गई थी, मगर बार-बार चकमा देता घूम रहा यह बाघ फर्रूखाबाद के जंगलों में चला गया। उसने पीलीभीत से शाहजहांपुर के वंड क्षेत्र तक अपना शिकार किया। दियोरिया और वंडा क्षेत्र के लगभग आठ लोगों को उसने अपना निवाला बनाया। उसे पकड़ने के पहले सरेया गांव के समीप पिंजडा भी लगाया गया था और 50 के लगभग क्लोज सर्किट कैमरे भी जंगलों में विभिन्न स्थानों पर लगाये गए थे। पिछले दो माह के भीतर बाघ ने पीलीभीत जिले के दियोरिया कलां रेंज में आठ लोगों को अपना शिकार बनाया। पीलीभीत में ही अब से डेढ वर्ष पूर्व बाघ ने गांव तुरहि के निकट कपाइन के हेल्पर ग्राम घुंथचाई निवासी गंगाराम को निवाला बनाया था। बमुश्किल ग्रामीणों ने घेराबंदी करके गंगाराम के क्षत विक्षत शव को गन्ने के खेत से निकाला था। तब से ये बाघ खूंखार हो गया था और खतरनाक हमलावर बन गया था।
बाघ सात जून को कम्पार्टमेंट चार स्थित सिद्धबाबा देव स्थल पर गांव परेठा निवासी वेदप्रकाश को उठा ले गया। वेदप्रकाश, देव स्थल के समीप खलौत घाट पर नहाने जा रहा था। बाध ने इसके बाद ग्राम जगतपुर निवासी लड्डू सिंह पर ट्रैक्टर से खेत जोतते समय हमला किया पर उसने भाग कर जान बचा ली। बाईस जून को गांव भगौतेपुर निवासी बुलाकीराम को बाघ ने खा लिया। चौबीस जुलाई को गांव डियूहना के श्यामलाल को कटरआ बीनते समय मारकर बाघ खा गया। दिलावरपुर के जमुना प्रसाद को बाघ ने मार डाला। तेईस अगस्त को बाघ ने खुटार थाना क्षेत्र के गांव टोडरपुर निवासी अधेड़ प्रताप सिंह को खा लिया।
पीलीभीत के वन रेंजों से सटे जंगल के समीप के गांवों की स्थिति हमेशा दहशत भरी रही है। यदि पिछले तीन दशक पर नजर डालें तो लगभग तीन सौ से अधिक लोग बाघों का निशाना बन चुके हैं। सरकारी आंकडे भी 295 लोगों की मौत का खुलासा करते हैं। इसका कारण यह माना जाता है कि जंगलों की भूमि पर अतिक्रमण करके बडी संख्या में पेड काटे जा रहे हैं। इसमें वन विभाग की पूरी मिलीभगत रहती है। जंगलों का दायरा सिकुड़ने से जंगली जानवर गांवों की ओर रूख कर रहे हैं। सन् 1977 से लेकर अब तक 295 लोग बाघों का निशाना बन चुके हैं।
पीलीभीत जिले के डियूरिया लखीमपुर खीरी के पलिया मैलानी और शाहजहांपुर जिले के खुटार रेंज में सन् 1977 से 27 अगस्त 2010 तक नरभक्षी लगभग तीन सौ से अधिक मानव हत्याएं कर चुके हैं। इसमें 50 से अधिक लोग जंगल के अंदर और बाकी खेतों में काम करते समय बाघों का निवाला बने। इस बीच लगभग डेढ दर्जन बाघ-बाघिन को नरभक्षी घोषित कर वन विभाग को मारना पड़ा। लगभग तीन दर्जन बाघ बाघिनों के शव संदिग्ध हालत में पड़े मिले। वन विभाग ने इन बाघों को डूबने से मौत दर्शा कर फाइलें बंद कर दीं। इसमें कई बाघों की मौत ट्रेन से कटकर या टकराकर अथवा सड़क दुर्घटना से हुई। चार बाघों को वन विभाग ने लखनऊ चिड़ियाघर में पकड कर भिजवाया।
यह साफ है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली हमेशा संदेह के घेरे में रही है। आंकडे पूरी तरह साफ नहीं हैं और लाखों करोड़ों रूपये वन्य जीव जन्तु और वन संपदा की सुरक्षा पर खर्च होने के बावजूद सभी कुछ असुरक्षित है। न तो जंगल सुरक्षित हैं और न ही उसमें निवास कर रहे वन्य प्राणि। मानव सुरक्षा से तो वन विभाग का जैसे कोई लेना देना ही नहीं है। जिस तेजी से वन संपदा का विनाश हो रहा है उससे यह अंदाजा लगाना कठिन है आगे और कितनी भयानक स्थिति होगी। वन विभाग केवल इतना ही कर रहा है कि वन माफियाओं से मिलकर अतिक्रमण करा रहा है। आंकडे और कार्रवाइयां फाइलों पर ही हो रही है। उच्च अधिकारी जानते हुये भी खामोश हैं।

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