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'मिठलबरा' का दूसरा संस्करण 'मिठलबरा पार्ट-टू'

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गिरीश पंकज की पुस्तक-girish pankaj's book

रायपुर।वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज के उपन्यास 'मिठलबरा की आत्मकथा' का अब 'मिठलबरा पार्ट-टू' भी आ रहा है, लेकिन इसे गिरीश पंकज नहीं, बल्कि दिल्ली के पत्रकार एवं फिल्म लेखक पंकज शुक्ल लिख रहे हैं। यह उपन्यास इलेक्ट्रानिक मीडिया में राज कर रहे मिठलबराऔ पर होगा। 'मिठलबरा' के इस पार्ट-टू का मीडिया के लोगों को इंतजार है।
पिछले तीस साल से सक्रिय पत्रकारिता कर रहे गिरीश पंकज का उपन्यास पत्रकारिता की आड़ में मालिकों की दलाली करने वाले कुछ संपादकों की असलियत बयान करता है। उपन्यास का नया संस्करण 'मिठलबरा' शीर्षक दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इसका उड़िया भाषा में भी पहले अनुवाद हो चुका है और उपन्यास अब तेलुगु में भी अनूदित हो गया है। इस उपन्यास के लिए गिरीश पंकज को मानसिक यातनाएं भी झेलनी पड़ीं, लेकिन उपन्यास के लिए उन्हें भोपाल में करवट सम्मान भी मिल चुका है।
गिरीश पंकज का कहना है कि यह उपन्यास पत्रकारिता के भीतर चल रहे उस खेल को बेनकाब करता है, जो पत्रकारिता के मूल्यों के खिलाफ है। उपन्यास में उन कुछ संपादकों की असलियत पर प्रकाश डाला गया है जो इस बात की कोशिश करते हैं, कि उनके मालिकों को पद्मश्री मिल जाए या सत्ता या समाज में सर्वोच्च मान्यता मिले। इसके लिए वे किस हद तक जा सकते हैं और किस प्रकार वो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं इस पर प्रकाश डाला गया है। मालिकों और संपादकों की दलाली पर कुछ पत्रकार, ईमानदार पत्रकारों को नौकरी से हटाने का खेल करते रहते हैं। इन विषयों पर तीखी आलोचनात्मक टिप्पणियां हैं। मिठलबरा में संपादकों की खबर, छत्तीसगढ़ की भाषा में कुछ इन शब्दों में ली गई है, जिसका अर्थ है, ऐसा आदमी जो, मक्कारी का खेल तो खेलता है, मगर मुस्कराहट के साथ।
इस उपन्यास का नया संसकरण मिठलबरा शीर्षक से दिल्ली से प्रकाशित हो गया है। ये उपन्यास अब तेलुगु में भी अनूदित हो गया है। इसका अनुवाद, ईनाडु के पूर्व संवाददाता आरजी राव ने किया है। अनुवाद इन दिनों हिंदी-तेलुगु में प्रकाशित मासिक भिलाईवाणी में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हो रहा है। इसके बाद यह उपन्यास, पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो जाएगा। इस कृति का उड़िया भाषा में भी पहले अनुवाद हो चुका है। मिठलबरा पर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर का एक छात्र शोध कार्य भी कर  चुका है।

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